152 साल से चली आ रही अप्रैल-मार्च वित्त वर्ष की परंपरा बदलने जा रही है सरकार, आम आदमी की जिंदगी पर होगा ये असर!

सरकार देश में 152 साल से चली आ रही अप्रैल-मार्च की वित्त वर्ष की परंपरा बदलने जा रही है। देश में वित्त वर्ष की शुरुआत अप्रैल के बजाय जनवरी से हो सकती है। सरकार इसकी तैयारी में लगी है। सीएनबीसी आवाज़ को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक, इस बजट में सरकार इसकी घोषणा कर सकती है। ऐसे में केंद्र सरकार को बजट नवंबर में पेश करना होगा।

आम आदमी की जिंदगी पर बहुत ज्यादा असर नहीं होगा

एक्सपर्ट्स कहते हैं कि अगर वित्त वर्ष की तारीख में बदलाव होता है तो इससे आम आदमी की जिंदगी पर बहुत ज्यादा असर नहीं होगा, सिर्फ टैक्स प्लानिंग, टैक्स फाइलिंग, कंपनियों के तिमाही नतीजों और शेयर बाजार के लिए वेस्टर्न स्टॉक मार्केट के जैसा पैटर्न और चलन दिखने की उम्मीद है। वित्त वर्ष वित्तीय मामलों में हिसाब के लिए आधार होता है। हर साल 1 अप्रैल से शुरू होकर अगले साल 31 मार्च तक चलने वाली इसकी 12 माह की अवधि वित्तीय वर्ष कही जाती है।

पीएम मोदी ने वित्त वर्ष में बदलाव की वकालत करते हुए कहा था कि एक तेजतर्रार व्यवस्था विकसित किए जाने की जरूरत है, जो विविधता के बीच काम कर सके। उन्होंने कहा था, समय के खराब प्रबंधन की वजह से कई अच्छी पहल और योजनाएं वांछित नतीजे देने में विफल रहती हैं। वित्त वर्ष को जनवरी-दिसंबर करने की घोषणा करने वाला मध्य प्रदेश पहला राज्य है। सूत्रों ने कहा कि बजट प्रक्रिया को पूरा करने में दो माह का समय लगता है। ऐसे में बजट सत्र की संभावित तारीख नवंबर का पहला सप्ताह हो सकती है। भारत में वित्त वर्ष एक अप्रैल से 31 मार्च तक होता है। इस व्यवस्था को 1867 में अपनाया गया था, जिससे भारतीय वित्त वर्ष का ब्रिटिश सरकार के वित्त वर्ष से तालमेल किया जा सके। उससे पहले तक भारत में वित्त वर्ष की शुरुआत एक मई को शुरू होकर 30 अप्रैल तक होती थी।

नीति आयोग के एक नोट में भी कहा गया था कि वित्त वर्ष में बदलाव जरूरी है, क्योंकि मौजूदा प्रणाली में कामकाज के सत्र का उपयोग नहीं हो पाता। संसद की वित्त पर स्थायी समिति ने भी वित्त वर्ष को स्थानांतरित कर जनवरी-दिसंबर करने की सिफारिश की थी।