केंद्र की मोदी सरकार ट्रिपल तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) और निकाह हलाला संबंधी मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2017 में केंद्रीय कैबिनेट ने कुछ संशोधन को मंजूरी दे दी है। जिसमें तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) के मामले को गैर जमानती अपराध तो माना गया है मगर अब मजिस्ट्रेट को यह अधिकार दिया गया है कि वह आरोपी को ज़मानत दे सकता है। इसके अलावा, पत्नी तथा उसके रक्तसंबंधियों को FIR दर्ज कराने का हक होगा।
पिछले साल शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में विपक्ष के विरोध के कारण लटके मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2017 में संशोधन को केंद्रीय कैबिनेट नें मंजूरी दे दी है। गुरुवार हुई कैबिनेट की बैठक में तीन तलाक को गैर जमानती अपराध तो माना गया है लेकिन अब मजिस्ट्रेट को जमानत देने का अधिकार दे दिया गया है। साथ ही विधेयक में एक और संशोधन किया गया है जिसमें पीड़ित के रिश्तेदार जिससे उसका खून का रिश्ता हो भी शिकायत दर्ज कर सकता है।
ट्रिपल तलाक देने के दोषी पति को जेल भेज दिया जाएगा तो पीड़ित महिला का क्या होगा- इससे पहले एनसीपी नेता मजिद मेनन ने कहा कि अगर ट्रिपल तलाक का जमानती अपराध माना जाता है तो इससे कुछ को राहत होगी।
उनका कहना है कि ट्रिपल तलाक देने के दोषी पति को जेल भेज दिया जाएगा तो पीड़ित महिला का क्या होगा? उसे मेन्टेनेंस कौन देगा? ट्रिप तलाक बिल में और भी बदलाव जरूरी होगी। जब राज्यसभा में आयेगा तब अपनी बात रखेंगे।
ट्रिपल तलाक संशोधन विधेयक को सरकार से मंजूरी मिलने से पहले वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद केटीएस तुलसी ने कहा कि ट्रिपल तलाक को जमानती अपराध भी नहीं होना चाहिए। मैं इसके खिलाफ हूं। पर्सनल लॉ में पनीशमेंट का प्रावधान नहीं होना चाहिए। ऐसा होने से दुरुपयोग होने का स्कोप बढ़ जाता है।
कांग्रेस का विरोध ट्रिपल तलाक को आपराधिक करने से है- ट्रिपल तलाक संशोधन विधेयक को सरकार की मंजूरी से पहले कांग्रेस नेता अभिषेक मनू सिंघवी ने कहा कि ट्रिपल तलाक को अगर जमानती अपराध माना जाता है तो इसके एक पहलू में सुधार होगा। ये सुझाव सकारात्मक है। यह एक सही पहल है सरकार की ओर से लेकिन यह आंशिक है। कांग्रेस का विरोध ट्रिपल तलाक को आपराधिक करने से है।
गौरतलब है कि ट्रिपल तलाक बिल को पहले ग़ैरज़मानती अपराध माना गया था। इसमें दोषी पाए जाने पर तीन साल की जेल के अलावा जुर्माना देने का प्रावधान था। कानून के मुताबिक, एक बार में तीन तलाक या 'तलाक ए बिद्दत' पर लागू होगा और यह पीड़िता को अपने तथा नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने के लिए मजिस्ट्रेट से गुहार लगाने की शक्ति दी गई।
इस काननू के तहत पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट से नाबालिग बच्चों के संरक्षण का भी अनुरोध कर सकती है और मजिस्ट्रेट इस मुद्दे पर अंतिम फैसला करेंगे। मसौदा कानून के तहत, किसी भी तरह का तीन तलाक (बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से) गैरकानूनी होगा। मसौदा कानून के अनुसार, एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी और शून्य होगा और ऐसा करने वाले पति को तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है। यह गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध होगा।
दरअसल साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में मोदी सरकार इस विधेयक को एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश करना चाहती है। बता दें कि पिछले सत्र में राज्यसभा में इस विधेयक पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में तीखी नोंक झोंक देखने को मिली थी। जब विपक्ष की तरफ से विधेयक को त्रुटिपूर्ण बताते हुए प्रवर समिति में भेजने की मांग की गई थी। कांग्रेस की तरफ से लोकसभा में बिल में पीड़ित महिला को पति के जेल जाने के बाद गुजारा भत्ता दिए जाने का संशोधन पेश किया गया था लेकिन यह संशोधन निचले सदन में गिर गया।