देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को उनके विचारों के लिए और अहिंसा के लिए जाना जाता था। अपने कार्यों और आन्दोलनों की मदद से उन्होंने देश को आजादी दिलाने में बहुत बड़ा योगदान दिया हैं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अगुआई के लिए अपनी पहचान बना चुके महात्मा गांधी को दलितों के सामाजिक उत्थान के लिए भी जाना जाता हैं। आज हम आपको महात्मा गांधी से जुड़ा एक किस्सा बताने जा रहे हैं, जो उनकी 'महात्मा' की उपाधि की व्याख्या करता हैं।
महात्मा गांधी जी छुआछूत के खिलाफ थे। एक बार उन्होंने अपने आश्रम में दलित और सवर्ण के विवाह की अनुमति दी। हालांकि उस समय भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अगुआई कर रही कांग्रेस गांधी जी द्वारा दलितों के सामाजिक उत्थान हेतु चलाये गये इन कदमों से सहमति नहीं रखती थी क्योंकि उसका मानना था कि 'सामाजिक सुधार' को 'स्वतंत्रता आन्दोलन' से पृथक रखा जाना चाहिए।
कांग्रेस के इस रवैये के कारण डॉ भीमराव अम्बेडकर अंग्रेजी राज का साथ दे रहे थे और 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के समय वे वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य होते थे इतना ही नहीं वे गांधी के प्रखर आलोचक भी थे। अपने इस व्यवहार के पीछे उनका मानना था कि कांग्रेस के ब्राह्मण बाहुल्य ढांचे से दलितों का भला नहीं हो सकता था। 1947 में जब देश स्वतंत्र हुआ तो डॉ। अंबेडकर के इसी प्रकार के विचारों के चलते कांग्रेस के नेतागण विशेष रूप से जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल उन्हें अपने पहले मंत्रिमंडल में साथ रखने को तैयार न थे।
लेकिन गांधी जी ने हस्तक्षेप करके यह समझाने का प्रयास किया कि कि आजादी कांग्रेस को नहीं मिली है बल्कि देश को मिली है इसलिए पहले मंत्रिमंडल में सबसे अच्छी प्रतिभाओं को शामिल किया जाना चाहिये चाहे वह किसी भी दल अथवा समुदाय की क्यों न हो। गांधी के इस सकारात्मक हस्तक्षेप के बाद ही डॉ। अम्बेडकर देश के पहले कानून मंत्री बन सके थे। गांधी जी के लिये मन में किसी के लिये बैर अथवा पूर्वाग्रह नहीं था इसीलिये गांधीजी को बड़े दिल वाला भी कहा जाता है।