लोकसभा चुनाव : 1957 सबसे सस्ता, इतिहास का सबसे महंगा चुनाव होगा 2019, प्रति वोटर 50 रुपये खर्च

देश में जल्द लोकसभा चुनाव होने वालें है। लोकसभा चुनावों की तारीखों के ऐलान के बाद पार्टियाँ अपने-अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर रही है। इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव सात चरणों में होंगे। इसकी घोषणा भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने की है। 11 अप्रैल को पहले चरण के लिए वोट डाले जाएंगे, जबकि 19 मई को सातवें चरण के लिए वोट डाले जाएंगे। मतों की गिनती 23 मई को होगी। लोकसभा के साथ ही ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और आंध्र प्रदेश विधानसभा के चुनाव भी होंगे। तीन बड़े राज्य उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार में सातों चरणों में मतदान होगा। देश में लोकसभा चुनाव कराना बड़ा खर्चीला होता है। हर 5 साल में भारत को इसके लिए पहले से बड़ी कीमत चुकानी होती है। 2019 के लोकसभा चुनावों में कितना खर्च हुआ, इसका पता तो चुनावों के बाद ही चलेगा, लेकिन 2014 के चुनावों में खर्च के लिहाज से अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई थी। 2014 के चुनावों में चुनाव सामग्री और उपकरणों पर खर्च के साथ ही हर वोटर को पोलिंग बूथ तक लाने के लिए की जानेवाली रकम में भी बहुत बड़ी वृद्धि देखी गई थी।

सबसे कम खर्चीला चुनाव 1957 में हुआ, 10 करोड़ रुपये हुए खर्च

अब तक हुए लोकसभा चुनावों में सबसे कम खर्चीला चुनाव 1957 में हुआ दूसरा लोकसभा चुनाव था। उस वक्त हुए इन चुनावों का खर्च करीब 10 करोड़ रुपये था। सबसे खर्चीला चुनाव 2014 में हुआ। भारत में 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में 35,547 करोड़ रुपये (500 करोड़ डॉलर) खर्च हुए थे।

2014 के चुनाव अब तक के सबसे खर्चीले चुनाव थे। 2014 के चुनावों में पूर्व में हुए सभी लोकसभा चुनावों के कुल खर्च का लगभग तीन चौथाई हिस्सा खर्च सिर्फ पिछले लोकसभा चुनावों में हुआ। इस खर्च में चुनाव उपकरणों की खरीद, इंस्टॉलेशन काउंटिंग स्टाफ और मतदान अधिकारियों की नियुक्ति पोलिंग बूथ और वहां पर टेंपररी फोन सुविधा, मतदान की स्याही, अमोनिया पेपर जैसी चीजों पर हुआ खर्च शामिल है।

प्रति वोटर होने वाला खर्च लगातार बढ़ा

हर चुनाव के साथ-साथ प्रति वोटर होने वाले खर्च में भी वृद्धि हुई है। पहले लोकसभा चुनाव में यह कीमत 1 रुपया से भी कुछ कम था और अगले 6 लोकसभा चुनावों तक यह आंकड़ा 1 रुपये के आसपास ही रहा। वही 2014 के लोकसभा चुनाव में इसमें पिछले चुनाव की तुलना में तीन गुना अधिक रही। 2014 लोकसभा चुनावों में प्रति वोटर खर्च लगभग 50 रुपये रहा।

इस बार मतदाताओं की संख्या कई देशों की जनसंख्या से अधिक

भारत के पहले लोकसभा चुनाव में करीब 20 करोड़ मतदाता थे। हर चुनाव में मतदाताओं की संख्या में बड़ी वृद्धि दर्ज होती रही है। इस बार 900 मिलियन मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे और यह आंकड़ा अमेरिका, ब्राजील और इंडोनेशिया की कुल जनसंख्या से अधिक है। ये तीनों ही देश जनसंख्या के लिहाज से तीसरे, चौथे और पांचवें सबसे अधिक आबादी वाले देश हैं।

भारतीय चुनाव प्रक्रिया किस मॉडल पर आधारित है?

भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था ब्रितानी वेस्टमिन्स्टर मॉडल पर आधारित है। ब्रिटेन में आम चुनाव के लिए एक ही दिन मतदान होता है, शाम होते-होते एग्ज़िट पोल आ जाते हैं और रातों-रात मतगणना करके अगली सुबह तक लोगों को चुनाव नतीजे भी मिल जाते हैं। मगर भारत में ऐसा नहीं होता है। मतदान के दौरान सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए इतने बड़े देश में कई चरणों में मतदान कराए जाते हैं। हर चरण के मतदान के बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम को मतगणना तक सुरक्षित रखा जाता है। चुनाव आयोग के निर्देशानुसार अब अंतिम चरण का मतदान समाप्त होने के बाद ही एग्ज़िट पोल प्रसारित हो सकते हैं। उसके भी कुछ दिन बाद मतगणना सुबह से शुरू होती है। पहले जब मतपत्रों से चुनाव होते थे तब रुझान आने में शाम हो जाती थी और नतीजे साफ़ होते-होते काफ़ी वक़्त लगता था मगर अब ईवीएम के चलते दोपहर तक रुझान स्पष्ट हो जाते हैं और शाम तक नतीजे भी लगभग पता चल जाते हैं।

लोकसभा में कितनी सीटें हैं?

संविधान के मुताबिक़ लोकसभा सीटों की अधिकतम संख्या 552 हो सकती है। फ़िलहाल लोकसभा सीटों की संख्या 545 है, जिनमें से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 543 सीटों के लिए आम चुनाव होते हैं। इनके अलावा अगर राष्ट्रपति को लगता है कि एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व काफ़ी नहीं है तो वह दो लोगों को नामांकित भी कर सकते हैं।

कुल सीटों में से 131 लोकसभा सीटें रिज़र्व होती हैं। इन 131 में अनुसूचित जाति के लिए 84 और अनुसूचित जनजाति के लिए 47 सीटें रिज़र्व हैं। यानी इन सीटों पर कोई अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते हैं।

किसी भी पार्टी को बहुमत के लिए कम से कम 272 सीटें चाहिए होती हैं। अगर बहुमत से कुछ सीटें कम भी पड़ जाएं तो दूसरे दलों के साथ गठबंधन करके भी सरकार बनाई जा सकती है। राजनीतिक दलों का गठबंधन चुनाव से पहले भी हो सकता है और नतीजों के बाद भी। लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद लेने के लिए विपक्षी पार्टी के पास कम से कम कुल सीटों की 10 फ़ीसदी संख्या होनी चाहिए यानी 55 सीटें। 2014 के आम चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को सिर्फ़ 44 सीटें ही मिल पाई थीं।

भाजपा ने 2014 में 282 सीटों के साथ बहुमत तो पाया था लेकिन फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के 268 सदस्य ही लोकसभा में रह गए हैं। कुछ सीटों को बीजेपी ने उपचुनाव में गंवा दिया। पार्टी के कुछ लोकसभा सदस्यों ने जैसे बीएस येदियुरप्पा और बी श्रीरामुल्लू ने विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए लोकसभा से इस्तीफ़ा दे दिया था। लेकिन फिर भी गठबंधन वाले राजनीतिक दलों के सहयोग से बीजेपी की सरकार सुरक्षित है।