कर्नाटक सरकार का बड़ा फैसला : लिंगायत को दिया अलग धर्म का दर्जा

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की सरकार ने लिंगायत समुदाय को लेकर बड़ा फैसला लिया है। फैसले में लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा दिया गया है। यह दर्जा राज्य अल्पसंख्यक कानून के तहत दिया गया है। कर्नाटक सरकार ने नागभूषण कमेटी के सुझाव को स्वीकार कर लिया है। कर्नाटक सरकार की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद यह अब केंद्र की बीजेपी सरकार के पास भेजी जाएगी। सिद्धारमैया सरकार के इस कदम को बड़ा राजनीतिक फैसला माना जा रहा है। दरअसल, कर्नाटक में करीब 21 फीसदी लिंगायत समुदाय के लोग हैं। साथ ही बीजेपी के मुख्यमंत्री पद दावेदार बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समाज से आते हैं।

आपको बता दें कि कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में चुनावी अभियान का आगाज कर चुके हैं। कर्नाटक में इसी साल अप्रैल या मई महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं। राहुल गांधी प्रदेश के प्रभावशाली लिंगायत समुदाय से जुड़े धार्मिक मठों में गए थे। अभी कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है और राहुल की पूरी कोशिश है कि कर्नाटक कांग्रेस के हाथ से न फिसले।

लिंगायत समुदाय


कर्नाटक की राजनीति में अहम रोल निभाने वाला लिंगायत समुदाय आखिर क्या है और इसे लेकर इतनी राजनीति क्यों हो रही है? भक्तिकाल के दौरान 12वीं सदी में समाज सुधारक बासवन्ना ने हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। उन्होंने वेदों को खारिज कर दिया और मूर्तिपूजा का विरोध किया। उन्होंने शिव के उपासकों को एकजुट कर वीरशैव संप्रदाय की स्थापना की।

मान्यता है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही हैं, लेकिन लिंगायत लोग ऐसा नहीं मानते। उनका मानना है कि वीरशैव लोगों का अस्तित्व समाज सुधारक बासवन्ना के उदय से भी पहले से था। लिंगायत का कहना है कि वे शिव की पूजा नहीं करते बल्कि अपने शरीर पर इष्टलिंग धारण करते हैं। यह एक गेंदनुमा आकृति होती है, जिसे वे धागे से अपने गले या बाजू पर बांधते हैं।

लिंगायत और सियासत


राजनीतिक विश्‍लेषक लिंगायत को एक जातीय पंथ मानते हैं, ना कि एक धार्मिक पंथ। राज्य में ये अन्य पिछड़े वर्ग में आते हैं। अच्छी खासी आबादी और आर्थिक रूप से ठीकठाक होने की वजह से कर्नाटक की राजनीति पर इनका प्रभावी असर है। 80 के दशक की शुरुआत में रामकृष्ण हेगड़े ने लिंगायत समाज का भरोसा जीता। हेगड़े की मृत्यु के बाद बीएस येदियुरप्पा लिंगायतों के नेता बने। 2013 में बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो लिंगायत समाज ने भाजपा को वोट नहीं दिया। नतीजतन, कांग्रेस फिर से सत्ता में लौट आई।

अब बीजेपी फिर से लिंगायत समाज में गहरी पैठ रखने वाले येदियुरप्पा को सीएम कैंडिडेट के रूप में आगे रख रही है। अगर कांग्रेस लिंगायत समुदाय के वोट को तोड़ने में सफल होती है तो यह कहीं न कहीं बीजेपी के लिए नुकसानदेह साबित होगी।