
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के दूसरे मून मिशन चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2 ) की लॉन्चिंग तकनीकी कारणों की वजह से आखिरी घंटे में रोक दी गई। लॉन्च से 56:24 सेकंड पहले चंद्रयान-2 का काउंटडाउन रोक दिया गया है। अगली तारीख की घोषणा जल्द की जाएगी। इसरो की ओर से भारत के बहुप्रतीक्षित चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग सुबह-सुबह 2:51 बजे श्रीहरिकोटा से होनी थी। इसरो वैज्ञानिक ये पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि लॉन्च से पहले ये तकनीकी कमी कहां से आई। इसरो प्रवक्ता बीआर गुरुप्रसाद ने इसरो की तरफ से बयान देते हुए कहा कि जीएसएलवी-एमके3 लॉन्च व्हीकल (रॉकेट) में खामी आने की वजह से लॉन्चिंग रोक दी गई है। लॉन्चिंग की अगली तारीख जल्द ही घोषित की जाएगी।
बता दे, इसरो चंद्रयान-2 को पहले अक्टूबर 2018 में लॉन्च करने वाला था। बाद में इसकी तारीख बढ़ाकर 3 जनवरी और फिर 31 जनवरी कर दी गई। लेकिन कुछ अन्य कारणों से इसे 15 जुलाई तक टाल दिया गया। इस दौरान बदलावों की वजह से चंद्रयान-2 का भार भी पहले से बढ़ गया। ऐसे में जीएसएलवी मार्क-3 में भी कुछ बदलाव किए गए थे।
वैज्ञानिकों की 11 साल की मेहनत को लगा झटकाइस रुकावट की वजह से इसरो वैज्ञानिकों की 11 साल की मेहनत को छोटा सा झटका लगा है। हालांकि, इसरो वैज्ञानिकों द्वारा अंतिम क्षणों में यह तकनीकी कमी खोज लेना बड़ा कदम है। अगर इस कमी के साथ रॉकेट छूटता तो बड़ा हादसा हो सकता था। यह वैज्ञानिकों की महारत है कि उन्होंने गलती खोज ली है। इसे जल्द ही ठीक करके वे लॉन्च की नई तारीख घोषित करेंगे। चंद्रयान-2 वास्तव में चंद्रयान-1 मिशन का ही नया संस्करण है। इसमें ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) शामिल हैं। चंद्रयान-1 में सिर्फ ऑर्बिटर था, जो चंद्रमा की कक्षा में घूमता था। चंद्रयान-2 के जरिए भारत पहली बार चांद की सतह पर लैंडर उतारेगा। यह लैंडिंग चांद के दक्षिणी ध्रुव पर होगी। इसके साथ ही भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारने वाला पहला देश बन जाएगा।
ये हैं संभावित कारण- क्रायोजेनिक इंजन में लिक्विड हाइड्रोजन भरते समय सही तापमान या दबाव का न होना। क्योंकि जिस समय काउंटडाउन रोका गया उससे ठीक पहले लिक्विड हाइड्रोजन भरने का काम पूरा हुआ था।
- बाहुबली रॉकेट जीएसएलवी-एमके3 की बैटरी में दिक्कत हो सकती है।
ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर क्या काम करेंगे? चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी और लैंडर के बीच कम्युनिकेशन करना है। इसके साथ ही ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा, ताकि चांद के अस्तित्व और विकास का पता लगाया जा सके। वहीं, लैंडर और रोवर चांद पर एक दिन (पृथ्वी के 14 दिन के बराबर) काम करेंगे। लैंडर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते हैं या नहीं। जबकि, रोवर चांद की सतह पर खनिज तत्वों की मौजूदगी का पता लगाएगा।