RCEP : ‘फ्रंट फुट' पर खेला भारत, पीएम मोदी ने कहा - मेरा विवेक इजाजत नहीं देता

भारत ने सोमवार को फैसला किया कि वह 16 देशों के आरसेप (RCEP) व्यापार समझौते का हिस्सा नहीं बनेगा। सरकार के इस फैसलें से देश के किसानों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) और डेयरी क्षेत्र को बड़ी मदद मिलेगी। भारत ने घरेलू उद्योगों के हित में सोमवार को एक बड़ा फैसला लिया। भारत RCEP यानी क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी में शामिल नहीं होगा और देश के बाजार सस्ते विदेशी सामान से नहीं भरेंगे। RCEP एक ऐसा समझौता है, जिस पर साइन करने से भारत चीन के चंगुल में बुरी तरह फंस सकता था। लेकिन लेकिन मोदी सरकार ने घरेलू उद्योगों के हितों को देखते हुए इस समझौते में शामिल न होने का फैसला लिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने RCEP शिखर सम्मेलन में हिस्सा तो लिया लेकिन वहां भारत के हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया। वित्त मंत्रालय की सचिव (पूर्व) विजय ठाकुर सिंह ने कहा, भारत ने आरसीईपी में शामिल नहीं होने के फैसले से अवगत करा दिया है। यह हमारी मौजूदा आर्थिक स्थिति के साथ-साथ समझौते के निष्पक्ष और संतुलन के आकलन को दर्शाता है। वार्ता में भारत के मूल हितों से जुड़े कई मुद्दे अनसुलझे रहे, जिसके बाद हमने इससे बाहर होने का फैसला किया।

सूत्रों ने कहा कि आरसीईपी में भारत का रुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व और दुनिया में भारत के बढ़ते कद को दर्शाता है। भारत के इस फैसले से भारतीय किसानों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) और डेयरी क्षेत्र को बड़ी मदद मिलेगी। सूत्रों ने कहा कि इस मंच पर भारत का रुख काफी व्यावहारिक रहा है। भारत ने जहां गरीबों के हितों के संरक्षण की बात की वहीं देश के सेवा क्षेत्र को लाभ की स्थिति देने का भी प्रयास किया। सूत्रों ने बताया कि भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा को खोलने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। इसके साथ ही मजबूती से यह बात रखी कि इसका जो भी नतीजा आए वह सभी देशों और सभी क्षेत्रों के अनुकूल हो।

सरकारी सूत्रों ने कहा, 'अब वे दिन हवा हुए जबकि व्यापार के मुद्दों पर वैश्विक शक्तियों के समक्ष भारतीय वार्ताकार दबाव में आ जाते थे. इस बार भारत ‘फ्रंट फुट' पर खेला है और उसने व्यापार घाटे को लेकर देश की चिंताओं को उठाया है. साथ ही भारत ने भारतीय सेवाओं और निवेश के लिए अन्य देशों को अपने बाजारों को और खोलने का दबाव भी बनाया है.'

आरसीईपी समझौता 10 आसियान देशों और 6 अन्य देशों यानी ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता है। इस समझौते में शामिल 16 देश एक-दूसरे को व्यापार में टैक्स कटौती समेत तमाम आर्थिक छूट देंगे।

अगर भारत RCEP समझौते पर राजी हो जाता तो क्या होता?

RCEP में शामिल होने के लिए भारत को आसियान देशों, जापान और दक्षिण कोरिया से आने वाली 90 फीसदी वस्तुओं पर से टैरिफ हटाना पड़ता। इसके अलावा, चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से आने वाले 74 फीसदी सामान को टैरिफ से मुक्त करना पड़ता। ऐसे में भारतीय बाजार में सस्ते चाइनीज सामान की बाढ़ आ जाती। चीन का अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर चल रहा है जिससे उसे नुकसान उठाना पड़ रहा है। चीन अमेरिका से ट्रेड वॉर से हो रहे नुकसान की भरपाई भारत और अन्य देशों के बाजार में अपना सामान बेचकर करना चाहता है। ऐसे में RCEP समझौते को लेकर चीन सबसे ज्यादा उतावला है। ये कदम भारत के लिए आत्मघाती साबित हो सकता था। RCEP के 16 सदस्य देशों की जीडीपी पूरी दुनिया की जीडीपी का एक-तिहाई है और दुनिया की आधी आबादी इसमें शामिल है। इस समझौते में वस्तुओं व सेवाओं का आयात-निर्यात, निवेश और बौद्धिक संपदा जैसे विषय शामिल हैं। चीन के लिए ये एक बड़े अवसर की तरह है क्योंकि उत्पादन के मामले में बाकी देश उसके आगे कहीं नहीं टिकते। चीन इस समझौते के जरिए अपने आर्थिक दबदबे को कायम रखने की कोशिश में है।

‘मेक इन इंडिया' अब ‘बाय फ्राम चाइना' हो गया है : राहुल

विपक्षी दल कांग्रेस आरसीईपी को लेकर सरकार पर लगातार हमलावर था। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को सरकार पर यह कहते हुए कटाक्ष किया कि ‘मेक इन इंडिया' अब ‘बाय फ्राम चाइना' (चीन से खरीदो) हो गया है। राहुल ने आरईसीपी से जुड़ी एक खबर का हवाला देते हुए यह दावा भी किया कि आरईसीपी से भारत में सस्ते सामान की बाढ़ आ जाएगी जिससे लाखों नौकरियां जाएंगी और अर्थव्यवस्था को गहरा नुकसान पहुंचेगा।

पीएम मोदी ने कही यह बात

प्रधानमंत्री ने कहा, 'भारत व्यापक क्षेत्रीय एकीकरण के साथ मुक्त व्यापार और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का पक्षधर है। आरसीईपी वार्ताओं की शुरुआत के साथ ही भारत इसके साथ रचनात्मक और अर्थपूर्ण तरीके से जुड़ा रहा है। भारत ने आपसी समझबूझ के साथ ‘लो और दो' की भावना के साथ इसमें संतुलन बैठाने के लिए कार्य किया है।'

मोदी ने कहा, 'जब हम अपने चारों तरफ देखते हैं तो सात साल की आरसीईपी वार्ताओं के दौरान वैश्विक आर्थिक और व्यापार परिदृश्य सहित कई चीजों में बदलाव आया है। हम इन बदलावों की अनदेखी नहीं कर सकते।'

मोदी ने कहा, 'इस समझौते का मौजूदा स्वरूप RCEP की बुनियादी भावना और मान्य मार्गदर्शक सिद्धांतों को पूरी तरह जाहिर नहीं करता है। यह मौजूदा परिस्थिति में भारत के दीर्घकालिक मुद्दों और चिंताओं का संतोषजनक रूप से समाधान भी पेश नहीं करता।'

मोदी ने कहा, 'जब मैं आरसीईपी करार को सभी भारतीयों के हितों से जोड़कर देखता हूं, तो मुझे सकारात्मक जवाब नहीं मिलता। ऐसे में न तो गांधीजी का कोई जंतर और न ही मेरी अपनी अंतरात्मा आरसीईपी में शामिल होने की अनुमति देती है।'