बिहार लोकसभा चुनाव की तैयारी में भाजपा, सहयोगी पार्टियों के लिए सीटों का फार्मूला तय

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा द्वारा अलग-अलग राज्यों पर फोकस किया जा रहा है, इसी लिस्ट में बिहार भी शामिल है। पार्टी ने यहां पिछले लोकसभा चुनाव जैसे नतीजे दोहराने की रणनीति बना ली है और इसी के साथ सीट बँटवारे पर भी फोकस किया जा रहा है। पार्टी चिराग पासवान और पशुपति पारस को कुल 6 सीटें दे सकती है, इनके अलावा अलग-अलग सहयोगियों में भी सीटों का बंटवारा किया जाएगा।

सूत्रों के मुताबिक, भाजपा जीतनराम मांझी की पार्टी को एक और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को दो सीटें दे सकती है। बिहार में कुल 40 लोकसभा सीटें हैं, पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू ने साथ में चुनाव लड़ा था लेकिन इस बार दोनों पार्टियों के रास्ते अलग हैं। ऐसे में भाजपा जदयू वाली सीटों की भरपाई अपने सहयोगियों को देकर करना चाहती है।

भाजपा के लिए चिंताजनक सर्वे

बिहार में लोक सभा की 40 सीटें हैं। भाजपा नेता अमित शाह का दावा है कि 2024 के आम चुनाव में एनडीए सभी सीटों पर जीत हासिल करेगा, लेकिन एक ताजा सर्वे भाजपा नेता के दावे पर सवालिया निशान लगा रहा है। 2019 के आम चुनाव में भाजपा को 39 सीटें मिली थीं, लेकिन तब से अभी तक स्थितियां काफी बदल चुकी हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रूप में एनडीए की सीटों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा से दूर जा चुका है - और इंडिया टुडे के सर्वे को देखें तो अब तक की सबसे बड़ी चुनौती उसी छोर से मिल रही है।

देश भर में तो सर्वे के आंकड़े लोक सभा की 306 सीटों के साथ भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने का संकेत दे रहे हैं, लेकिन बिहार को लेकर जो आंकड़े सामने आये हैं, वे काफी चौंकाने वाले लगते हैं। बिहार की 40 लोक सभा सीटों में से NDA को 14 जबकि INDIA गठबंधन को 26 सीटें मिलती देखी गयी हैं।

भाजपा साध रही है तमाम सीमकरण

भाजपा नीतीश कुमार के लव-कुश समीकरण को न्यूट्रलाइज करने के लिए लगातार कोशिश कर रही है और ज्यादातर जातीय समीकरण साधने की तैयारी में जुट गयी है। सितंबर, 2022 में अमित शाह ने सीमांचल दौरे में भविष्य का खाका खींच दिया था। अब तो तस्वीर भी धीरे धीरे साफ होने लगी है। अमित शाह ने कहा था, भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए अपना मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर देगी।

जब संजय जायसवाल को हटाकर सम्राट चौधरी को बिहार भाजपा की कमान सौंपी गयी तो इसे भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर भी देखा जाने लगा। सम्राट चौधरी के बहाने भाजपा असल में लव-कुश समीकरण को साधने की कोशिश कर रही है।

लव-कुश राजनीति का एक बड़ा चेहरा उपेंद्र कुशवाहा भी हैं, ये बात अलग है कि चुनावी राजनीति में अब वो कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। 2014 में भाजपा के साथ मिलकर वो 3 सीटें जीतने में सफल जरूर रहे हैं। 2019 से पहले ही एनडीए छोड़ देने के बाद पांच साल में घूमते फिरते उपेंद्र कुशवाहा फिर से भाजपा के साथ आ चुके हैं। भाजपा उनके हिस्से में सीटें तो कुछ खास देने से रही, लेकिन नीतीश कुमार के खिलाफ चुनाव प्रचार में लवकुश चेहरे के तौर पर पेश तो कर ही सकती है।

उपेंद्र कुशवाहा की ही तरह नीतीश कुमार को छोड़ कर जीतनराम मांझी ने भी भाजपा से हाथ मिला लिया है। ये ठीक है कि जीतनराम मांझी का चुनावी प्रदर्शन बहुत उल्लेखनीय नहीं रहा है, लेकिन जहां भी रहते हैं, उनकी मौजूदगी तो मजबूती से ही दर्ज होती है। मांझी के बयानों से बिहार में सुर्खियां तो बनती ही हैं और अपनी जाति के वोटर को अपने गठबंधन साथी के सपोर्ट में मैसेज तो दे ही देते हैं।