चेन्नई। डीएमके ने शुक्रवार को मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए आपराधिक कानूनों को असंवैधानिक और अवैध घोषित करने की मांग की।
तीनों कानून-- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1 जुलाई से प्रभावी हो गए हैं। इन तीनों कानूनों ने भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्थान लिया है।
न्यायमूर्ति एस एस सुंदर और न्यायमूर्ति एन सेंथिल कुमार की खंडपीठ ने केंद्र को नोटिस जारी किया है, जिसका जवाब चार सप्ताह के भीतर देना है। याचिकाकर्ता के अनुसार, सरकार ने तीनों विधेयक पेश किए और बिना किसी सार्थक चर्चा के उन्हें संसद से पारित करा लिया।
उन्होंने कहा कि किसी भी महत्वपूर्ण बदलाव के अभाव में, केवल धाराओं में फेरबदल करना अनावश्यक है और इससे प्रावधानों की व्याख्या के संबंध में बहुत असुविधा और भ्रम पैदा होगा।
उन्होंने कहा कि धाराओं में फेरबदल से न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं, कानून लागू करने वाले अधिकारियों और आम जनता के लिए नए प्रावधानों को पुराने प्रावधानों के साथ सहसंबंधित करना और मिसालों की खोज करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
उन्होंने तर्क दिया कि ऐसा लगता है कि यह अभ्यास केवल कानूनों के शीर्षकों को संस्कृत करने के लिए किया जा रहा है, जबकि कानूनों पर पुनर्विचार करने के लिए कोई समर्पण नहीं है। भारती ने आगे कहा कि सरकार यह दावा नहीं कर सकती कि यह संसद का अधिनियम है।
उन्होंने दावा किया कि ये अधिनियम संसद के केवल एक अंग यानी सत्तारूढ़ दल और उसके सहयोगियों द्वारा बनाए गए हैं, जिन्होंने विपक्षी दलों को इससे दूर रखा है।
उन्होंने कहा कि अधिनियमों का हिंदी/संस्कृत में नामकरण संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लंघन
है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह भी कहा गया है कि संसद के किसी भी सदन में पेश किए जाने वाले सभी विधेयकों का आधिकारिक पाठ अंग्रेजी में होना चाहिए।