धीरेंद्र शास्त्री को कोर्ट से नोटिस, 20 मई को पेशी; जानें क्या है मामला?

प्रयागराज महाकुंभ 2025 में कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री द्वारा दिया गया एक बयान अब उनके लिए कानूनी संकट का कारण बनता नजर आ रहा है। उन्होंने महाकुंभ में शामिल न होने वालों को ‘देशद्रोही’ कह दिया था, जो अब विवाद का विषय बन गया है। इस बयान को लेकर मध्य प्रदेश के शहडोल जिले की एक अदालत ने इसे भड़काऊ और असंवैधानिक मानते हुए शास्त्री को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने उन्हें 20 मई को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया है। यह मामला अब धार्मिक विचारों से आगे बढ़कर संविधान, अभिव्यक्ति की मर्यादा और सामाजिक जिम्मेदारी से जुड़ गया है।

धीरेंद्र शास्त्री ने प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुंभ 2025 के दौरान सार्वजनिक रूप से बयान दिया था कि जो महाकुंभ में शामिल नहीं होगा, वह देशद्रोही कहलाएगा। इस बयान के बाद एक स्थानीय अधिवक्ता ने इसे संविधान विरोधी और समाज में वैमनस्य फैलाने वाला करार देते हुए शिकायत दर्ज कराई। थाने में रिपोर्ट दर्ज न होने पर मामला कोर्ट में ले जाया गया, जहां अदालत ने इसे गंभीर मानते हुए कानूनी कार्यवाही का रास्ता साफ कर दिया है।

क्या है पूरा मामला

विवाद की जड़ में कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री का वह बयान है, जिसमें उन्होंने कहा था कि हर व्यक्ति को महाकुंभ में भाग लेना चाहिए और जो नहीं आएगा वह देशद्रोही माना जाएगा। इस बयान पर स्थानीय अधिवक्ता ने आपत्ति जताई और सोहगपुर थाने में शिकायत दी। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या कोई धार्मिक आयोजन अनिवार्य हो सकता है और उसमें भाग न लेने वाले को देशद्रोही ठहराना उचित है? कई लोग अपने दायित्वों के चलते आयोजन में शरीक नहीं हो पाते, क्या उन्हें देशद्रोह के कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए?

अभिव्यक्ति की मर्यादा पर उठे सवाल

शिकायतकर्ता का कहना है कि जब सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणी पर एफआईआर हो सकती है, तो सार्वजनिक रूप से दिया गया ऐसा उत्तेजक और विभाजनकारी बयान कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है? उन्होंने कहा कि देश के डॉक्टर, सैनिक, पुलिसकर्मी, पत्रकार या अन्य नागरिक जो अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं, यदि महाकुंभ में नहीं आ पाते तो उन्हें देशद्रोही कह देना न केवल संवेदनहीनता है, बल्कि उनके योगदान का अपमान भी है।

देशभक्ति की असली कसौटी

अधिवक्ता की याचिका में यह दलील दी गई है कि देशभक्ति का निर्धारण किसी धार्मिक आयोजन में भागीदारी से नहीं किया जा सकता। असली देशभक्ति अपने कर्तव्यों, जिम्मेदारियों और संविधान के प्रति निष्ठा से होती है। धीरेंद्र शास्त्री का यह बयान न सिर्फ गैर-जिम्मेदाराना है बल्कि यह समाज को धार्मिक आधार पर बांटने का भी कार्य करता है। अब यह मुद्दा अदालत में विचाराधीन है और इसके जरिए यह तय हो सकता है कि किसी सार्वजनिक वक्ता की अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाएं क्या हैं और वह समाज में किस हद तक प्रभाव डाल सकती है।

यह मामला अब सिर्फ एक बयान तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह देश में धार्मिक भावनाओं, संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारियों के संतुलन की मिसाल बन गया है। आने वाले समय में इस पर होने वाली कानूनी प्रक्रिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच की रेखा को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।