कोरोना वायरस: रिपोर्ट में हुआ चौकाने वाला खुलासा, भारत के लिए 4 महीने बेहद मुश्किल

कोरोना वायरस को भारत में रोकने के लिए पुरजोर कोशिश की जा रही है। 14 अप्रैल तक पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा की गई है। लोगों को घरों में कैद कर दिया गया है। इसके बावजूद भारत में संक्रमितों की संख्या में रोज इजाफा हो रहा है। इस वायरस से देश में 700 लोग संक्रमित हो गए है वहीं 16 लोगों की जान जा चुकी है। अब भारत को लेकर दुनिया की एक बड़ी यूनिवर्सिटी ने रिपोर्ट दी है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे भारत के सिर पर खतरे की घंटी बज रही है। यह वायरस भारत को अगले चार महीने बहुत ज्यादा परेशान करने वाला है। रिपोर्ट में कोरोना को हराने के रास्ते भी बताए गए हैं। इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी और द सेंटर फॉर डिजीज़ डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी (CDDEP) ने। इसमें भारत का अध्ययन करने के लिए सभी आंकड़ें भारत की आधिकारिक वेबसाइटों का उपयोग किया गया है।

जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में सबसे ज्यादा लोग अप्रैल मध्य से लेकर मई मध्य तक कोरोना से संक्रमित होकर अस्पताल में भर्ती होंगे इसके बाद जुलाई मध्य तक यह संख्या कम होती चली जाएगी। अगस्त तक इसके खत्म होने की उम्मीद है। इस ग्राफ के मुताबिक करीब 25 लाख लोग इस वायरस की चपेट में आकर अस्पतालों तक जाएंगे। स्टडी में इस बात के बारे में भी कहा गया है कि मौजूदा समय में भारत में कितने लोग संक्रमित है इसकी पूरी जानकारी सामने नहीं आ रही है। क्योंकि कई लोग एसिम्टोमैटिक यानी अलक्षणी है। इसका मतलब ये हैं कि कोरोना वायरस से संक्रमित लोग ज्यादा हैं। उनमें कोरोना के लक्षण भी होंगे लेकिन हल्के स्तर के। इसलिए जब वह तीव्र होगा तभी पता चल पाएगा। सबसे बड़ी दिक्कत ये बताई गई है कि भारत में करीब 10 लाख वेंटीलेटर्स की जरूरत पड़ेगी। लेकिन भारत में अभी 30 से 50 हजार वेंटीलेटर्स ही हैं। अमेरिका में 1.60 लाख वेंटीलेटर्स हैं लेकिन वो भी कम पड़ रहे हैं। जबकि, उनकी आबादी भारत से कम है। स्टडी में बताया गया है कि भारत के सभी अस्पतालों के अगले तीन महीने बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। भारत को भी चीन और अन्य देशों की तरह अस्थाई अस्पताल बनाने पड़ेंगे। दूसरा, अस्पतालों से संक्रमण न फैले इसका भी ध्यान रखना पड़ेगा।

जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी की स्टडी में बताया गया है कि बुजुर्गों की आबादी को सोशल डिस्टेंसिंग का ज्यादा ध्यान रखना होगा। जितना ज्यादा लॉकडाउन होगा उतने ही ज्यादा लोग बचे रहेंगे। सोशल डिस्टेंसिंग के अलावा इससे बचने का फिलहाल कोई रास्ता नहीं है।

भारत में चल रही जांच की प्रक्रिया भी धीमी है। क्योंकि जितने ज्यादा जांच होंगे उतने ज्यादा सही परिणाम मिलेंगे। अगर सही तरीके से जांच की जाए तो उन बुजुर्गों को बचाया जा सकेगा जो कोरोना वायरस से संक्रमित हैं। स्टडी में बताया गया है कि भारत में स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त मास्क, हैजमट सूट, फेस गियर आदि नहीं है। इससे मेडिकल स्टाफ भी खतरे में पड़ जाएगा। इससे स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी आएगी। जॉन हॉकिन्स की स्टडी में यह भी बताया गया है कि कुछ राज्यों में अभी कोरोना संक्रमण के मामले कम दिख रहे हैं। लेकिन जैसे ही लॉकडाउन हटेगा या फिर एक-दो हफ्ते बाद मामले सामने आएंगे। तब दिक्कत और बढ़ जाएगी। कई राज्यों में अस्पतालों और ICU में बेड की कमी है। ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी हो जाएगी। ऑक्सीजन मास्क और वेंटीलेटर्स भी कम हैं भारत में। इससे काफी दिक्कत आ सकती है।

जॉन हॉकिन्स की स्टडी में यह भी बताया गया है कि तापमान और उमस में बढ़ोतरी होने पर वायरस के संक्रमण या फैलाव पर थोड़ा असर होगा, लेकिन वो पर्याप्त नहीं होगा। क्योंकि इस वायरस पर तापमान का ज्यादा असर होता दिख नहीं रहा है। स्टडी में बताया गया है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों को भी इस वायरस से बचाना बेहद जरूरी है। इसके लिए पहले ही जांच कराई जानी चाहिए। ताकि पता चल सके कि देश में बच्चों की क्या हालत हैं इस वायरस की वजह से।

बता दे, पूरी दुनिया में करीब 5 लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए है और 23 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।