कोरोना वायरस / धारावी की रणनीति से तय होगा मुंबई का भविष्य, अब तक 168 से अधिक संक्रमित मामले आए सामने

मुंबई के धारावी इलाके में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले रोजाना बढ़ रहे हैं। सब लोग इससे चिंतित हैं। अब तक धारावी में 168 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। यहां अब तक कुल 11 लोगों की मौत कोविड-19 (Covid-19) के संक्रमण से हुई है।अधिकारियों की मानें तो यह सबसे ज्यादा संक्रमित इलाकों में से एक है। यहां जितने भी सैंपलों की कोरोना जांच हुई है, उनमें से 25% पॉजिटिव आए हैं।

धारावी सबसे बड़ा स्लम इलाका है। धारावी की वास्तविक आबादी बहुत अधिक है क्योंकि इनमें से कई मजदूर हैं जो विभिन्न राज्यों से काम करने के लिए आते हैं और अब धारावी के अंदर फंस गए हैं। धारावी में टेस्टिंग तेजी से हो रही है और लॉकडाउन का सख्ती से पालन हो इसका भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है।

धारावी की बस्ती लगभग 2.5 स्क्वायर किलोमीटर तक फैली है। इसमें लाखों लोग रहते हैं। एक अनुमानित आंकड़े देखें तो इन एक स्क्वायर किलोमीटर में 3 लाख लोग रह रहे हैं। ऐसे में यहां सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां तो उड़ ही रही हैं, कई लोगों की यह मजबूरी भी है।

धारावी एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी ही नहीं बल्कि सबसे घनी बस्ती भी है। यहां एक से चार मंजिला तक झोपड़ियां हैं। एक झोपड़ी में 8 से 9 लोग रहते हैं। सब सार्वजनिक शौचालयों का प्रयोग करते हैं तो नहाने के लिए भी खुले में एक साथ नहाना पड़ता है।

सामाजिक दूरी इन मलिन बस्तियों और चॉलों संभव नहीं है। झुग्गी बस्तियों में ज्यादातर घरों में टिन की चादरें एक साथ रखी जाती हैं और यहां रहने वाले लोग सामुदायिक शौचालयों का उपयोग करते हैं। चॉलों में तो 8X10 के कमरों में सामान्यता छह लोग तक रहते हैं। यहां के लोगों में बीमारी रोकना शुरू से ही स्वास्थ्य विभाग के लिए बड़ी चुनौती रहा है।

रतन टाटा ने भी इस बस्ती की स्थिति पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा, 'कोरोना वायरस के कहर ने शहर में आवास के संकट को उजागर किया है। मुंबई के लाखों लोग ताजी हवा और खुली जगह से महरूम हैं। बिल्डरों ने ऐसे स्लम बना दिए हैं, जहां सफाई का इंतजाम नहीं है। हम वहां उच्च कोटि के आवास डिजाइन करते हैं जहां कभी झुग्गी-झोपड़ियां थीं। ये स्लम विकास के अवशेष की तरह हैं। हमें शर्म आनी चाहिए क्योंकि एक तरफ तो हम अपनी अच्छी छवि दिखाना चाहते हैं दूसरी और एक हिस्सा ऐसा है जिसे हम छिपाना चाहते हैं।'

मुम्बई को इस महामारी की चपेट में आने से बचाने के लिए, झोंपड़ी बस्तियों की भागीदारी का अहम रोल है। यहां की रणनीतियों पर निर्भर करेगा कि मुंबई को महामारी से कैसे बचाया जा सके। इसलिए धारावी में रहने वाले एवरशाइन मीडो बिल्डिंग के लोगों ने खुद ही लॉकडाउन की एक योजना तैयार की है, जिसकी अधिकारियों ने भी तारीफ की है। यह इमारत बलीगा नगर में स्थित है, जहां कोरोना वायरस का पहला केस सामने आया था और धारावी में कोरोना से पहली मौत हुई थी। यह क्षेत्र अभी कंटेंमेंट जोन में शामिल है।

सोसाइटी के चेयरमैन मोहम्मद असलम शेख ने कहा, 'हम धारावी, एवरशाइन मीडो अपार्टमेंट के निवासी हैं। हमारा इलाका शहर में सबसे अधिक प्रभावित है। मुंबई एक बड़ा शहर है और अधिकारियों के लिए हम सभी तक पहुंचना मुमकिन नहीं है, यही कारण है कि हमने खुद पहल करने का फैसला किया है। यह पहल है स्वयं से स्वयं की मदद की। हमने एक सैनिटाइजेशन चैम्बर बनाया है। जहां बाहर से आने वाले हर एक शख्स को सैनिटाइज किया जाएगा और उसके बाद उसकी सोसायटी में एंट्री होगी।'

मोहम्मद असलम शेख ने कहा, 'हमने अपनी सोसाइटी में सभी दैनिक आवश्यकताओं (दूध, सब्जियां, फल) को उपलब्ध कराया है ताकि हमें बाहर न जाना पड़े। अपार्टमेंट के सदस्य बारी-बारी से अपनी ड्यूटी करते हैं। प्रत्येक आदमी 4 घंटे ड्यूटी पर खड़ा रहता है ताकि इस बात का ध्यान रखा जा सके कि अपार्टमेंट में कोई बाहरी व्यक्ति तो प्रवेश नहीं कर रहा है। लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं या नहीं। प्रत्येक नागरिक की यह एक सामूहिक जिम्मेदारी है कि कंधा से कंधा मिलकार इस कठिन समय में खड़ा रहे।'

एशिया की सबसे बड़ी बस्ती में रहने वाले लोगों की समस्या आर्थिक तंगी भी है। इन दिनों इन लोगों की स्थिति दयनीय होती जा रही है। यहां रहने वाले अब्दुल ने बताया कि वह कैब चालक हैं। उन्हें खोली का 1,000 रुपये का किराया देना पड़ता है। उनकी चार बेटियां और एक बेटा है। उन्होंने कहा कि अगर अब जल्द ही उन्हें कैब चलाने को नहीं मिली तो वह अपने बच्चों के साथ सड़क पर आ जाएंगे।