प्रयागराज महाकुंभ में सोमवार को सनातन बोर्ड के गठन और वक्फ बोर्ड के विरोध को लेकर हुई धर्म संसद पर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा, सनातन बोर्ड का गठन मेरी भी इच्छा है, लेकिन इसे इस तरह की धर्म संसद से नहीं बनाया जा सकता। हमें तो इसमें न्यौता ही नहीं मिला।
शंकराचार्यों के बिना धर्म संसद पर सवालशंकराचार्य ने कहा, शंकराचार्यों और आचार्यों के बिना धर्म संसद का क्या औचित्य है? सनातन बोर्ड की मांग सही है, लेकिन इसका गठन आचार्यों द्वारा होना चाहिए। धर्माचार्य ही इसे संचालित करें और इसका सरकार से कोई सरोकार नहीं होना चाहिए।
वक्फ बोर्ड के अनुभव से सीखने की बातशंकराचार्य ने सरकार द्वारा सनातन बोर्ड बनाए जाने के विचार को खारिज करते हुए कहा, अगर सरकार बोर्ड बनाएगी, तो इसका हाल भी वक्फ बोर्ड जैसा होगा। हमने मुसलमानों से कुछ नहीं सीखा है। वक्फ बोर्ड होने के बावजूद मुसलमानों ने पर्सनल लॉ बोर्ड बनाया।
वक्फ बोर्ड खत्म करने की मांग का समर्थनउन्होंने आगे कहा कि वक्फ बोर्ड को खत्म करने की मांग का भी वे समर्थन करते हैं। सनातन बोर्ड धर्माचार्यों के मार्गदर्शन में ही काम करे। सरकार का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
गृह मंत्री अमित शाह पर भी बोले शंकराचार्य: महाकुंभ से बड़ी उम्मीदें थींप्रयागराज महाकुंभ में सोमवार को आयोजित धर्म संसद में कई प्रमुख धर्मगुरु और नेताओं ने हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम की अगुवाई कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने की, जिसमें मथुरा से बीजेपी सांसद हेमा मालिनी, अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी के महंत राजूदास, साध्वी सरस्वती समेत कई अन्य लोगों ने अपने विचार रखे।
इस बीच, शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, हमें उम्मीद थी कि गृह मंत्री महाकुंभ में आकर कोई बड़ी घोषणा करेंगे। गौ हत्या को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने की हमारी पुरानी मांग को पूरा करेंगे। गाय को पशु के बजाय राष्ट्र माता घोषित करेंगे।
दौरे के खत्म होने तक करेंगे इंतजारशंकराचार्य ने आगे कहा, अब तक इन मांगों को पूरा नहीं किया गया है। फिर भी, हम गृह मंत्री के दौरे के खत्म होने तक इंतजार कर रहे हैं। उम्मीद है कि कुछ ठोस कदम उठाए जाएंगे।
शंकराचार्य के इस बयान ने धर्म संसद में उठाए गए मुद्दों और सरकार से जुड़े अपेक्षाओं को लेकर नई चर्चा को जन्म दिया है। महाकुंभ के इस महत्वपूर्ण आयोजन में धर्म और राजनीति के बीच सामंजस्य की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया।
शंकराचार्य ने धर्म संसद के आयोजन पर भी सवाल खड़े किए और इसे बिना शंकराचार्यों और धर्माचार्यों की भागीदारी के अधूरा बताया। उनके इस बयान ने सनातन बोर्ड के गठन की प्रक्रिया और धर्म संसद की प्रामाणिकता को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है।