केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले पिछड़े सवर्णों को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया है। मोदी सरकार मंगलवार को संविधान संशोधन बिल संसद में पेश कर सकती है। देश के करोड़ों लोगों को केंद्र सरकार के इस फैसले का लाभ मिलेगा। नरेंद्र मोदी सरकार लोकसभा चुनाव से पहले इस फैसले के जरिए सवर्णों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में है। इस बिल के मुताबिक आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण जाति के लोगों की ही आरक्षण मिलेगा। जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपयों से कम है। हालाकि, इस फैसले के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि आरक्षण दलितों के साथ ऐतिहासिक अन्याय को सही करने के लिए है। गरीबी मिटाने के लिए और भी कई योजनाएं चला सकता है, लेकिन आरक्षण न्याय के लिए बना है। संविधान आर्थिक आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता है।
सूत्रों के मुताबिक, आरक्षण का कोटा मौजूदा 49.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 59.5 प्रतिशत किया जाएगा। लंबे समय से आर्थिक रूप से पिछले सवर्णों के लिए आरक्षण की मांग की जा रही थी। हालांकि इस आरक्षण को लागू कराने की राह अब भी मुश्किल है। सरकार को इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा। इसके लिए उसे संसद में अन्य दलों के समर्थन की भी जरूरत होगी।
मोदी सरकार का यह फैसला 2019 के लोकसभा चुनावों में उसके लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में मिली भाजपा की हार की एक वजह एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ सवर्णों की नाराजगी भी बताई जा रही है। समझा जाता है कि सरकार आरक्षण का मरहम लगा गरीब सवर्णों को अपने पाले में करने का दांव खेला है।
इस बीच कांग्रेस ने सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस ने सरकार से पूछा है कि वह साढ़े चार साल तक क्या करती रही है और वह संशोधन विधेयक को पारित कैसे कराएगी। कैबिनेट के इस ऐतिहासिक फैसले का लाभ राजपूत, ब्राह्मण, भूमिहार, बनिया सहित आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को मिलेगा। आर्थिक रूप से पिछड़े इन वर्गों को 10 फीसदी आरक्षण का लाभ दाने के लिए सरकार को अनुच्छेद 15 एवं 16 में स्पेशल क्लॉज जोड़कर संवैधानिक संशोधन करने होंगे।