मां-बाप के सामने बच्चों का बचपन का पंख लगा कर उड़ जाता है। पता ही नहीं चलता। समय भले ही अपनी गति से चले, लेकिन उनके लिए बच्चे हमेशा बच्चे ही रहते हैं। यही कारण है कि वे जीवन की कड़ी समस्या से उनका सामना नहीं करवाते। लेकिन बड़े होने पर जब बच्चों को माता-पिता के प्यार की छांव से निकल कर खुद को साबित करना पड़ता है।तो उन्हें काफी कठिनाई होती है। अगर वे आत्मविश्वास से भरपूर ना हो और जीवन में अपने फैसले खुद लेने की ना क्षमता रखते हैं तो उनके लिए जीवन कष्टदायक और अवसाद ग्रस्त हो जाता है। आत्मविश्वास एक दिन में नहीं आता अभिभावकों को शुरू से ही प्रयास करने पड़ते हैं।
होने दे खुद पर निर्भरबच्चे छोटे होते हैं तो माता-पिता ही उनके लिए हर फैसला लेते हैं। जिससे उनकी निर्भरता दूसरों पर बढ़ने लगती है। ऐसे में जरूरी है कि आप उन्हें स्वयं फैसले लेने का मौका भी दे। अगर उनका फैसला गलत हो वे उन्हें असफलता का मुंह देखना पड़े तो भी अपना धैर्य ना खोए। बच्चों के फैसलों में अभिभावकों की भूमिका बस इतनी होनी चाहिए कि वे उनके द्वारा लिए गए फैसले के सकारात्मक परिणामों से बच्चे को अवगत कराएं।
छोटी बातों से करें शुरुआतउन्हें छोटे-छोटे फैसले लेने के लिए प्रेरित करें। जैसे उनसे पूछे कि डिनर में शिमला मिर्च खाना चाहेंगे या फिर पौधों को पानी देंगे या किचन में आपकी मदद करेंगे। भले ही फैसले के मायने नहीं रखते हो। लेकिन इससे बच्चों में फैसले लेने की क्षमता का विकास होता है।
धैर्य है जरूरी बच्चों के साथ धैर्य पूर्ण व्यवहार की जरूरत होती है। कई लोग बच्चे के गलत फैसले पर गुस्सा करते हैं जिससे उनका खुद पर से भरोसा उठ जाता है फिर वे जीवन में कोई फैसला लेने से कतराते हैं। भविष्य में हमेशा कशमकश में रहते हैं।
सिखाएं हार को संभालना बच्चे फैसले लेंगे तो उनमें से कुछ गलत भी होंगे ऐसे में बेहद जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों को हार को संभालना भी सिखाए। अपनी मिसाल देकर भी बात बता सकते हैं कि बचपन में आपके द्वारा लिए गए कभी गलत थे ,लेकिन गलतियां व्यक्ति को सिखाती हैं।