कोरोना वायरस के डर से पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया है। जिससे कि इस गंभीर बीमारी से लोग बचे रहें। स्कूल, कॉलेज से लेकर पार्क तक बंद हैं और लोग घरों में रहने के लिए मजबूर हैं ताकि सुरक्षित रह सकें। लेकिन बच्चों को हर बार ये समझा पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है कि क्योंकि वो घर पर बोर होते हैं। ऐसे में दिनभर टीवी या मोबाइल वगैरह पर गेमिंग उनके सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। हाल ही में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्लू एच ओ) ने बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर नई गाइडलाइन्स जारी की है। इसके मुताबिक पांच साल से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल, आईपैड की स्क्रीन का इस्तेमाल एक घंटे से ज़्यादा नहीं करना चाहिये। दरअसल, पांच साल तक की उम्र बच्चों के संपूर्ण विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिये इस दौरान उनकी डाइट से लेकर फिज़िकली एक्टिविटी तक पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है।
ज़्यादा मोबाइल, टीवी के खतरेमोबाइल, आइपैड और टीवी से ज़्यादा देर तक चिपके रहने से न सिर्फ मोटापा बढ़ता है, बल्कि इसका असर बच्चों के दिमागी विकास पर भी होता है। आंखों की रोशनी जल्दी कम होने लगती है और किसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित कर पाने में परेशानी होती है। मोबाइल से निकलने वाला रेडिएशन भी बच्चों के लिए बहुत हानिकारक होता है।
धैर्य से काम लें लॉकडाउन के बीच मांओं के लिए सबसे मुश्किल काम है बच्चों को संभालना। क्योंकि दिनभर बच्चों के घर पर रहने की वजह से और उनकी शरारतों से झुंझला जाना स्वाभाविक है। ऐसे में धैर्य के साथ मिलकर उन्हें कुछ क्रिएटिव सिखाइए जिससे कि आपके बच्चे का समय सही तरीके से इस्तेमाल हो।
बहलाने के अन्य बहानेबच्चों को बहलाने के लिए मोबाइल भले ही सबसे आसान साधन लगे, लेकिन यह सबसे खतरनाक चीज़ है, इसलिए छोटी उम्र से बच्चों को इससे दूर रखने की कोशिश करें। इसकी बजाय उन्हें कोई खिलौना, पिक्चर वाली बड़ी बुक आदि देकर बहलायें। याद रखिये, आपके लिये सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, आपके बच्चे की सेहत।
नींद भी ज़रूरीछोटे बच्चों को प्रैम या चेयर पर ज़्यादा देर बिठाना ठीक नहीं है। उनके लिए दौड़ना, चलना जैसी फिज़िकल एक्टिविटी तो ज़रूरी है ही, साथ ही बच्चों को ज़्यादा सोना भी चाहिये। इससे उनकी सेहत बनी रहती है। नींद पूरी होने से बच्चा फिज़िकली और मेंटली तौर पर सेहतमंद रहता है। आपने देखा होगा, जो बच्चे कम सोते हैं, वे अक्सर चिड़चिड़े हो जाते हैं और छोटी-छोटी बात पर रोने लगते हैं। इसलिए पांच साल तक के बच्चों को सोना ज़रूरी है।