आज कई ऐसे बच्चे हैं जो अकेले होते हैं। कई बच्चों को अकेलापन परेशान करने लगता है, जिस से वे मानसिक रूप से परेशान हो जाते हैं। ऐसे में मुंहबोले भाईबहन जैसे रिश्ते समय की जरूरत बन जाते हैं। किशोरों में स्कूलकालेज की पढ़ाई, कोर्स या जौब के दौरान एकदूसरे से इतनी करीबी हो जाती है कि पहले वे दोस्त और फिर विचारों के मिलने पर मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते में बंध जाते हैं। लेकिन रिश्तों में बंधना आसान है और उन्हें निभाना बहुत मुश्किल। रिश्तों के लिए नई शुरुआत करने से पहले खुद से कुछ कमिटमैंट जरूर करें। यदि इस दौरान कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो रिश्तों में हमेशा ताजगी बनी रहेगी -
इतिहास में भी दर्ज है ये रिश्ताऐसे रिश्ते इतिहास में भी मिलते हैं। मुगल बादशाह हुमायूं और चित्तौड़गढ़ की महारानी कर्णवती की कहानी ऐसे रिश्तों की पुष्टि करती है। कर्णवती राजा राणासांगा की पत्नी थी। वह हुमायूं को राखी बांधती थी। दोनों के बीच मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता था। एक बार युद्ध के समय कर्णवती ने हुमायूं से मदद मांगी तो हुमायूं ने अपनी सेना सहित उन की मदद की।
एकल परिवार बने वजहसमाज में पहले संयुक्त परिवार का चलन था। जहां बच्चों को तमाम भाईबहन मिल जाते थे, जो सगे भाईबहन की कमियों को पूरा करते थे। छुट्टियों में बच्चे अपने नातेरिश्तेदारों के यहां रहते थे जिस से उन के बीच बेहतर रिश्ते बन जाते थे। अब यह चलन करीबकरीब बंद हो गया है।ऐसे में मुंहबोले भाईबहन समय की जरूरत बन गए हैं। कई बार बच्चे अपनी जो बातें मातापिता, सगे भाईबहन से नहीं कह पाते वे बातें मुंहबोले भाईबहन से कह देते हैं।
वैचारिक समानताजन्मजात रिश्तों में उम्र और परिवार की कुछ बंदिशें, सीमाएं और उन्हें हर हाल में निभाने का प्रैशर भी रहता है, जबकि मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते तभी पनपते हैं, जब किशोरकिशोरियों में वैचारिक समानता होती है और वे हमउम्र भी होते हैं।
विश्वास और ईमानदारी का होना बहुत जरूरीहर रिश्ते की तरह मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता भी बहुत कमिटमैंट के साथ निभाने की जरूरत होती है। इस रिश्ते में विश्वास और ईमानदारी का होना बहुत जरूरी होता है। आज जहां समाज में लड़कियों के अनुकूल माहौल बनाने की बात की जा रही है वहीं ऐसे रिश्तों की भी बहुत जरूरत महसूस होती है।
लड़कियां ऐसे रिश्तों में बरतें सावधानीऐसे रिश्तों में सतर्कता बरतने की जरूरत है, रिश्तों में धोखा मिलने के बाद सब से ज्यादा प्रभावित लड़कियों का जीवन ही होता है। पुरुष प्रधान समाज होने से उन्हें सब से ज्यादा नुकसान और मानसिक व शारीरिक पीड़ा झेलनी पड़ती है।