बच्चों से आदर व सम्मान की अपेक्षा रखने वाले अभिभावकों को जब बच्चों से विद्रोह व बेरुखा व्यवहार मिलता है तो उन्हें अपनी परवरिश में चूक दिखाई देने लगती है। नन्हे पैर लड़खड़ाते हुए कब खुद सँभलना सीख जाते हैं, पता ही नहीं चलता। मां-बाप के लिए यह एक सुखद अहसास होता है। लेकिन ये एहसास धीरे धीरे चिंता में तब बदलने लगता है जब बच्चे-बात बात पर अपने माता पिता को उल्टा जवाब देने लगते है। ऐसे दिखाने लगते है उन्हें अब माता पिता की जरूरत नहीं है।
बच्चो का व्यव्हार हर समय फोन पर, Facebook, Whatsapp, Instagram पर लगे रहना, दोस्तों को ही सबकुछ समझना, उन से ही हर बात शेयर करना, कुछ भी पूछो तो पहले तो जवाब ही नहीं देते और अगर दिया भी तो सिर्फ हां या ना में, और अगर कुछ और ज्यादा पूछ लिया तो जवाब मिलता है, 'आप को क्या मतलब', 'जब आप को कुछ पता नहीं तो बोलते ही क्यों हो,' बातबात पर चीखना चिल्लाना, गुस्सा करना, गलत भाषा का प्रयोग करना उन के व्यवहार में शामिल हो गया है।
फूहड़ भाषा का प्रयोगआजकल 7-8 साल के बच्चे वह भाषा बोलते हैं जो फिल्मों में बोली जाती है जब भी बच्चों के मनमुताबिक बात नहीं होती वे गुस्से में ‘शटअप’, ‘डौंट बी स्टुपिड’, ‘डैम’ जैसे अपशब्दों का प्रयोग आम करते हैं।
कंप्यूटर एडिक्शनबच्चों के उद्दंड और असहयोगात्मक रवैये का एक मुख्य कारण कंप्यूटर एडिक्शन है ऐसा करने से जहां एक ओर बच्चों का परिवार के सदस्यों से जुड़ाव टूटता है वहीं वे अपनी एक अलग दुनिया बसा लेते हैं।
सायकोलॉजिकल पहलू आजकल के बच्चे अपने आप को गैजेट्स से अधिक नजदीक पाते हैं, अपने सभी सवालों और समस्याओं के हल वहीं ढूंढ़ते हैं। इसलिए बच्चों के लैपटौप, मोबाइल प्रयोग की सीमा निर्धारित करें और बच्चों के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं। पियर ग्रुप के प्रभाव की उपेक्षा न करें क्योंकि जब भी बच्चों की अभिभावकों से अनबन होती है वे सभी बातें दोस्तों के साथ बांटते हैं।
पेरेंट्स की भूमिका जब भी बच्चा अशिष्ट भाषा बोले, चीखेचिल्लाए उसे इग्नोर न करें। आप ने बच्चे के रूखेपन व असहयोग के व्यवहार को जब भी स्वीकार किया तो वह समझने लगेगा कि आप को उस का ऐसा व्यवहार स्वीकार्य है। दृढ़ हो कर प्यार से कहें कि गलत भाषा व व्यवहार स्वीकार नहीं किया जाएगा।