इस व्यस्ततम जीवनशैली में कई पेरेंट्स अपने बच्चों तक को समय नहीं दे पा रहे हैं जिस वजह से बच्चों की परवरिश पर भी असर पड़ रहा हैं। समय के साथ बढ़ते बच्चों पर सही से ध्यान देने की जरूरत होती हैं, नहीं तो आप उनकी परेशानियों को समझ नहीं पाते हैं। यह स्थिति तब और भी विकट हो जाती है, जब बच्चे टीनएज में आते हैं क्योंकि इस समय उनके दिमाग में सवालों का समंदर होता है और उनको समझने के लिए परिजनों के पास समय नहीं होता। ऐसे में बच्चों के साथ उनका दोस्त बनकर पेश आना होता हैं ताकि वो आपसे अपनी बात साझा कर और उनकी परेशानियों को समझ उनका हल निकाला जा सकें। ऐसे में आज हम आपको कुछ टिप्स देने जा रहे हैं जिनकी मदद से आपका और बच्चों का रिश्ता मजबूत होगा।
घर के काम में बच्चों की बढ़ाएं भागीदारीघर का बजट हो या कोई महत्वपूर्ण निर्णय, प्रयास करें कि इसमें बच्चा भी शामिल हो और महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। उसे महीने का बजट बनाने का काम सौंपें या घर का छोटा-मोटा हिसाब रखने की जिम्मेदारी दें। जैसे दूध वाले का हिसाब या इस्त्री के लिए दिए गए कपड़ों का हिसाब। इससे उसे इस बात की समझ आएगी कि माता-पिता घर को कैसे मैनेज करते हैं। यह भावना उसमे जिम्मेदारी पैदा करेगी और उसे फिजूलखर्च करने से भी बचाएगी।
बच्चों पर हावी न होंहर समय बच्चे के सिर पर सवार न रहें न ही पूरे समय उसकी जासूसी करें। इसकी बजाय उसे थोड़ी निजता दें। वह कहाँ जा रहा है यह अगर वह आपको बता कर जाता है तो उसके लौटने का समय आप निश्चित कर सकते हैं। आप सतर्क रह सकते हैं, उस पर नजर भी रख सकते हैं लेकिन इस तरह नहीं कि वह बन्धन महसूस करने लगे। अगर आपको लगता है कि उसकी दोस्ती, रूटीन आदि में कहीं सुधार की जरूरत है तो उसे शांति से बैठा कर समझाएं। डांटने-मारने से बचें। महीने में कम से कम एक बार उससे क्या चल रहा है, यह जरूर पूछें। इससे उसके मन में यह भाव रहेगा कि आपको उसकी परवाह है। यह बात उसे आपसे जोड़े रखेगी।
बच्चों के साथ दोस्ती करें, लेकिन दायरे मेंअक्सर लोग कहते हैं कि बड़े होते बच्चों से दोस्त जैसा व्यवहार करना चाहिए। यह एक हद तक सही है लेकिन हमेशा याद रखिए कि दोस्त वही अच्छा होता है जो सही-गलत का फर्क बताए। इसलिए दोस्ती करें लेकिन इस दोस्ती में सही सीमा रेखा भी खींचें। उसे यह ध्यान रहे कि आप दोस्त के साथ साथ पैरेंट भी हैं, तभी वह आपको रिस्पेक्ट करना सीखेगा। इस दोस्ती में पारदर्शिता की बहुत जरूरत है। इसलिए बच्चे के सामने झूठ बोलने, अपशब्द बोलने, गलत व्यवहार करने से बचें। इससे बाहर भी वह ऐसे ही दोस्त चुनेगा जो इस दायरे में फिट बैठते होंगे।
सही गलत में फर्क बताएंबच्चे को ये समझना जरूरी है कि सही क्या है और क्या गलत है। उदाहरण के लिए अगर आपका बच्चा किसी गलत काम को करने के लिए जिद्द कर रहा है, तो गुस्से की जगह उसे प्यार से समझाएं कि आप उसे उस काम के लिए क्यों रोक रहे हैं, वो काम करने से क्या गलत होगा आदि।
बोलने का मौका जरूर देंआपको ये समझना होगा कि एक स्वस्थ तर्क हमेशा अच्छा ही होता है। इसलिए आपको अपने बच्चे को बोलने का मौका देना चाहिए। इससे आगे चलकर वो समझेगा कि उससे किससे क्या बात कहनी है और क्या नहीं। इससे उसकी सोच में बदलाव आएगा।
सवाल टालें नहीं, पूछने को प्रोत्साहित करेंइस उम्र में बच्चों के दिमाग में हजार सवाल चल रहे होते हैं। अगर पहली बार सवाल पूछने पर उसे जवाब में यह सुनने को मिलेगा- कि फ़िजूल सवाल मत किया करो, ये तुम्हारे मतलब की बात नहीं। तो अगली बार से वह आपसे सवाल पूछेगा ही नहीं। इतना ही नहीं वह उस सवाल का जवाब घर से बाहर ढूंढने की कोशिश करेगा/करेगी, जहां उसका फायदा उठाने वाले भी मिल सकते हैं। बजाय इसके यदि उसका सवाल आपको अटपटा लगता है या आप उस समय उसको जवाब नहीं देना चाहते तो उसे कारण बताते हुए समय मांगें और जवाब जरूर दें। उसे यह भी कहें कि वह अपनी समस्याएं और सवाल हमेशा पूछ सकता है/सकती है।
बच्चों की बातों पर ध्यान देंआजकल बच्चे बहुत तेजी से नई तकनीक और साधनों के बारे में सीख जाते हैं। कोशिश करें कि आप भी उससे नया कुछ सीख सकें। इससे उसे अपनी सीखी हुई चीज पर और खुद पर विश्वास होगा और वह आगे सीखने को प्रेरित होगा। साथ ही जब बच्चा कोई बात बता रहा हो तो उसे ध्यान से सुनें। हो सकता है उसकी जानकारी आपके किसी काम आ जाए। बच्चे को इससे यह आश्वासन भी मिलेगा कि आप उसकी बात को महत्व देते हैं।