हमें बचपन से सिखाया जाता है कि ऐसा काम करो कि कोई आपसे नाराज़ न हो, सब आपसे ख़ुश रहें। पर हक़ीक़त की बात करें तो पूरी दुनिया को एक साथ ख़ुश तो भगवान भी नहीं रख सकते, हम किस खेत की मूली हैं! पर नहीं, हम बचपन में सिखाई बात को इतनी सीरियसली लेते हैं कि सबको ख़ुश करने निकल पड़ते हैं। जिसका नतीजा होता है, सब गुड़-गोबर। आज हम बात करने जा रहे हैं, क्यों सबको ख़ुश रखना क़तई ज़रूरी नहीं है।
हम पूरी दुनिया को ख़ुश करने की कोशिश क्यों करते हैं?
इसका
पहला कारण जो हमें समझ आ रहा है, वह यह है कि हम दूसरों की नज़रों में
अच्छा बनना चाहते हैं। हम वह व्यक्ति बनना चाहते हैं, जिसकी ज़रूरत सबको
हो। जो सबको प्यारा हो, जो दूसरों की ज़रूरतों को पूरी कर सकता हो। हमारी
यही दबी छिपी इच्छाएं हमें सबको ख़ुश रखने की कोशिश करने के लिए प्रेरित
करती हैं।
दूसरा कारण है लोगों द्वारा अस्वीकृत किए जाने का डर।
इंसान सामाजिक प्राणी है, वह अपनी ज़िंदगी के ज़्यादातर काम अपनी नहीं,
समाज की ख़ुशी के लिए करता है। ऐसा करके वह समाज की स्वीकृति हासिल करना
चाहता है। उसे कहीं न कहीं लगता है कि अगर उसने अपने आसपास के लोगों को
नाराज़ किया तो वे लोग उसे छोड़ देंगे। वह नितांत अकेला रह जाएगा। इस चक्कर
में वह एक्स्ट्रा कोशिश करता है लोगों को ख़ुश रखने की। पर देखा जाए तो
‘यदि मैं आपको ख़ुश नहीं करता हूं, तो आप मुझे पसंद नहीं करेंगे’ इस तरह की
सोच ही बुनियादी रूप से ग़लत है।
तीसरा कारण है हममें से
ज़्यादातर व्यक्ति अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की छाया दूसरों पर नहीं पड़ने
देना चाहते हैं। आमतौर पर हमेशा आपस में लड़ते-झगड़ते रहने वाले माता-पिता
के बच्चे दो एक्स्ट्रीम तरह के होते हैं। पहले-या तो वे झगड़े में अपने
माता-पिता से भी दो क़दम आगे होंगे। दूसरे-वे एकदम सज्जन होंगे। जो सज्जन
बच्चे होते हैं, वह दूसरों को ख़ुश रखने की कोशिश करते हैं। ऐसा इसलिए
क्योंकि उन्होंने अपने जीवन अनुभव से यही सीखा है कि लड़ना-झगड़ना बुरा है।
और बहस रोकने का सबसे अच्छा तरीक़ा है लोगों को ख़ुश रखना।
क्या हैं दूसरों को हमेशा ख़ुश रखने के साइड-इफ़ेक्ट्स?
कई
बार दूसरों को ख़ुश रखने की कोशिश हमारी ही नहीं, सामने वाले के लिए भी
मुसीबत बन जाती है। दरअसल जो लोग सबको ख़ुश रखने का एकतरफ़ा बीड़ा उठाए
रहते हैं, उन्हें सही मायने में पता ही नहीं होता कि असल में दूसरों को
क्या चाहिए। कई बार उनके अच्छे बनने की कोशिश दूसरे के लिए परेशानी का सबब
बन जाती है।
हममें से ज़्यादातर लोग ग़लती से यह मान लेते हैं कि
लोगों को ख़ुश करने वाला व्यवहार यह साबित करता है कि हम उदार हैं। लेकिन
अगर आप इस बारे में सोचें, तो लोगों को हमेशा ख़ुश करने की कोशिश
निःस्वार्थ नहीं होतीं। यह दरअसल काफ़ी आत्म-केंद्रित है। इसमें यह मान
लिया जाता है कि हर व्यक्ति आपके हर क़दम की परवाह करता है। इसमें यह भी
मान लिया जाता है कि आपके हिसाब से आपमें इस बात को नियंत्रित करने की
योग्यता है कि दूसरे लोग कैसा महसूस करते हैं।
यदि आप दूसरों को
ख़ुश करने के लिए लगातार चीज़ें कर रहे हैं और आपको लगता है कि लोग आपके
प्रयासों की क़द्र नहीं कर रहे हैं, तो आपको बुरा लगना शुरू हो जाएगा। आपके
मन में इस तरह के विचार आ जाएंगे,‘मैं तुम्हारे लिए कितना ज़्यादा करता
हूं, लेकिन तुम मेरे लिए कुछ नहीं करते-और यह सोच अंततः आपके रिश्तों में
कड़वाहट घोल देगी। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि लोगों को ख़ुश करने की कोशिश
से संबंध नष्ट होते हैं।
क्यों हमें लोगों को हमेशा ख़ुश करने की कोशिश से बचना चाहिए?
सबसे
पहली बात तो हर एक को ख़ुश करने की चिंता समय की बर्बादी है। आप इस बात को
नियंत्रित नहीं कर सकते कि दूसरे लोग कैसा महसूस करते हैं। जब आप यह सोचने
में जितना ज़्यादा समय लगाते हैं कि क्या लोग ख़ुश होंगे, आपके पास उस काम
के बारे में सोचने के लिए उतना ही कम समय रहेगा, जो सचमुच मायने रखता है।
आपको
कभी न कभी इस सच्चाई से रूबरू होना पड़ेगा कि लोगों को ख़ुश करने वालों को
उल्लू बनाकर दूसरे लोग अपना मतलब निकाल लेते हैं। चालाक लोग दूसरे लोगों
को ख़ुश करने वालों को दूर से पहचान लेते हैं, फिर अक्सर उनका फ़ायदा उठाते
हैं। उनके व्यवहार को नियंत्रित करते हैं।
आप उन लोगों से दूर ही
रहें जो कहते हैं,‘मैं आपसे यह काम करने को सिर्फ़ इसलिए कह रहा हूं,
क्योंकि मैं जानता हूं यह काम आप से अच्छा कोई और नहीं कर सकता’ या ‘मुझे
आपसे यह कहते हुए शर्म आ रही है, मगर…’ दूसरों को ख़ुश करने की कोशिश
तत्काल प्रभाव से इसलिए भी बंद करनी चाहिए क्योंकि ऐसा कोई कारण नहीं है कि
लोगों को सारे समय ख़ुश रहने की ज़रूरत हो।
हर व्यक्ति में बहुत
सारी भावनाओं से निपटने की योग्यता होती है और यह आपका काम नहीं है कि आप
उन्हें नकारात्मक भावनाएं महसूस करने से रोकें। कोई नाराज़ हो जाता है,
इसका हमेशा यह मतलब नहीं होता कि आपने कोई ग़लत चीज़ की है। सबसे ज़रूरी
बात, यह समझ लें तो बेहतर होगा कि आप हर एक को ख़ुश नहीं कर सकते। यह असंभव
है कि हर व्यक्ति एक ही चीज़ से ख़ुश हों। स्वीकार करें कि कुछ लोगों को
कभी ख़ुश किया ही नहीं जा सकता और उन्हें ख़ुश रखना आपका काम नहीं है।