ना करें बच्चों को सभी के सामने डांटने की गलती, इस तरह पड़ता हैं उनपर बुरा असर

बच्चे नटखट और नादान होते हैं जिन्हें बड़ों जितनी समझ नहीं होती हैं कि किस समय क्या करना हैं जिसकी वजह से कई बार वे गलती कर बैठते हैं। ऐसे में पेरेंट्स अपने बच्चों को कई बार सभी के सामने डांट देते हैं और कई तो पिटाई भी कर देते हैं। बच्चों को पीटना किसी भी तरह से नहीं हैं जिसका उनक मन पर बुरा प्रभाव पड़ता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बच्चों को सार्वजनिक तौर पर डांटना, पीटने से भी ज्यादा घातक साबित हो सकता हैं। जी हां, अगर आप अपने बच्चों को सार्वजनिक रूप से डाटें, चिल्लाए या मारेंगे, तो उसके मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक क्षमताओं पर इसका बुरा असर पड़ता है। आज इस कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि सभी के सामने डांटने पर किस तरह बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता हैं। आइये जानते हैं इसके बारे में...

उदास और अकेलेपन का शिकार

एक अनुसंधान में भी इस बात का खुलासा हुआ है कि बच्चों को डांटना और उन पर चिल्लाना, उन्हें मारने से अधिक खतरनाक है। इस संबंध में विशेषज्ञों ने दो वर्षों तक 950 छात्रों पर अध्ययन किया। परिणाम में उन बच्चों का व्यवहार जिन्हें घर में डांट पड़ती थी, दूसरे बच्चों से भिन्न था। ऐसे बच्चे उदास और अकेलपन का शिकार हो जाते हैं।

पेरेंट्स और बच्चों का रिश्ता होता है कमजोर

बच्चे जितना कनेक्ट अपने माता-पिता से करते हैं उतना शायद जिंदगी भर किसी से नहीं पाते। यह रिश्ता वक्त के साथ मजबूत होता जाता है। आपको बता दें कि बच्चों में 3-4 साल से आत्मविश्वास की भावना आने लगती है। ऐसे में जब पेरेंट्स सबके सामने बच्चों को डांटते हैं, मारते हैं या उन पर चिल्लाते हैं तो उन्हें बुरा लगता है और बच्चे माता-पिता के प्रति सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं और बच्चों का अपने ही माता-पिता पर भरोसा कमजोर हो जाता है। सिर्फ यही नहीं कुछ समय बाद बच्चे अपने ही अभिभावक की इज्जत करना बंद कर देते हैं।

बच्चों में आती है कॉन्फिडेंस की कमी

कॉन्फिडेंस किसी भी इंसान की पर्सनेलिटी को बताता है। अगर व्यक्ति में कॉन्फिडेंस हो तो वह अपनी जिंदगी में कुछ भी हासिल कर सकता है। लेकिन जब पेरेंट्स द्वारा बच्चों को सबके सामने डांटा जाए, मारा जाए या उन पर चिल्लाया जाए तो बच्चों में कॉन्फिडेंस की कमी आ जाती है जो जिंदगी भर रह सकती है। इसलिए किसी बाहर वाले के सामने या सार्वजनिक जगहों पर बच्चों को कुछ भी कहने से पहले कई बार सोच लें। क्योंकि पेरेंट्स की इस हरकत से बच्चे आत्मसम्मान की कमी महसूस करने लगते हैं।

मस्तिष्क विकास में रुकावट

जब आप अपने बच्चे को डांटते हो तो ना सिर्फ इससे उनके मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है। कोई भी चिल्लाना पसंद नहीं करता है खासकर छोटे बच्चे बस रोना शुरू करेंगे और बड़े बच्चे इस आदत से ऊब जाएंगे। दोनों ही रिएक्शन दिखाते हैं बच्चे आपको सुनने में दिलचस्पी नहीं लेते।

तनाव महसूस करने लगते हैं बच्चे

जब कोई इंसान अंदर ही अंदर घुटता है और अपनी बातों को या परेशानियों को किसी के साथ शेयर नहीं कर पाता है तो तनाव में आ जाता है। जब पेरेंट्स अपने बच्चों को सबसे सामने भला बुरा कहते हैं तो बच्चों के साथ ऐसी ही स्थिति पैदा होती है। बच्चों को लगता है कि आखिर वह अपने ही पेरेंट्स क खिलाफ भला किससे बात कर सकते हैं? और यही वह वक्त होता है जब बच्चे धीरे धीरे तनाव में आने लगते हैं। अगर आप अपने बच्चों को दूसरों के सामने डाटेंगे, मारेंगे या फिर किसी तरह से उनकी बेइज्जती करेंगे तो बच्चों को बगावत की भावना घेरने लगती है। यानि कि बच्चों के मन में अपने अभिभावक के फैसलों के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत आती है और वह साथ ही वह अंदर अंदर ही घुटन भी महसूस करते हैं। सिर्फ यही नहीं बच्चे कुछ समय बाद अपने माता पिता को उलटा जवाब देना, उनकी बात या न मानना या उनकी बेइज्जती करना भी शुरू कर सकते हैं।

बगावत की भावना आती है

बगावत असंतोष से पैदा होता है। और असंतोष का कारण कई बार बेइज्जती बनती है। अगर आप अपने बच्चों को दूसरों के सामने बुरा कहेंगे, उनकी बेइज्जती करेंगे, उन्हें डांटे या चिल्लाएंगे, तो इससे उनमें बगावत की भावना घर करने लगती है। बगावत की भावना का अर्थ है कि ऐसे बच्चों के मन में अपने अभिभावक के फैसलों के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत पैदा होती है। अगर बच्चे डर के मारे फैसले के खिलाफ नहीं भी खड़े हो पाते हैं, तो वो दूसरे तरीकों से इसका बदला चुकाते हैं जैसे- झूठ बोलना, धोखा देना, बिना बताए काम करना, कई बार जानबूझकर गलत काम करना।

इमोशनली वीक होने लगते हैं बच्चे

सबसे सामने बच्चो को डांटने, मारने और उन पर चिल्लाने से आप बच्चों को इमोशनली भी वीक बनाते हैं। जब बच्चे भावनात्मक रूप से कमजोर होने लगते हैं तो वह अपनी बातों को किसी के साथ शेयर नहीं कर पाते हैं। इसका नतीजा यह भी होता है कि बच्चे फिर बाहर जाकर भी किसी को जवाब नहीं दे पाते हैं और अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त नहीं कर पाते हैं।

आत्मसम्मान की कमी महसूस करते हैं बच्चे

अक्सर लोगों को लगता है कि बच्चों को सम्मान और आत्मसम्मान की समझ नहीं होगी इसलिए उन्हें कुछ भी बोल दो या कह दो तो उन्हें फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन ऐसा नहीं है। आमतौर पर 3-4 साल की उम्र का होने तक बच्चों में आत्मसम्मान की भावना आनी शुरू हो जाती है। एक बार आत्मसम्मान की भावना आ जाने पर जब भी आप उन्हें सार्वजनिक रूप से किसी काम का दोषी ठहराते हैं, बुरा कहते हैं, डांटते हैं या मारते हैं, तो उन्हें मार से ज्यादा दुख अपनी बेइज्जती का होता है। अगर ये बार-बार होता रहा, तो बच्चे आत्मसम्मान की कमी महसूस करने लगते हैं। इसलिए बच्चों को सार्वजनिक रूप से डांटना, मारना, चिल्लाना नहीं चाहिए।