यहां पांडवों ने काटा था अज्ञातवास, जानें पौराणिक गाथाओं के साक्षी बने हुए ऐतिहासिक हाथी भाटा के बारे में

राजस्थान में ऐसी कई जगह है, जो राजपूताना शासन के इतिहास को उजागर करती है। एक ऐसी है जगह के बारे में हम आपको यहां बताने जा रहे है। राजस्थान में एक ऐसी जगह के बारे में हम आपको यहां बताने जा रहे है। राजस्थान में एक जगह है हाथी भाटा। जो राजस्थान भारत के खूबसूरत स्मारकों में से एक है। एक ही बड़े आकार केपत्थर से बना यह पत्थर का हाथी है जो हर जगह से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस जगह के बारे में हो सकता है कम लोगों को पता हो, लेकिन इस जगह की महत्त्वता विस्तृत है।

लोकेशन

टोंक जिला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर दूर उनियारा रोड पर ककोड़ गांव के समीप गुमानपुरा में ऐतिहासिक हाथी भाटा स्थित है। दूर से ऐसा लगता है कि कोई सजीव हाथी खड़ा हो, लेकिन यह पत्थर की चट्टान को काटकर बनाया गया हाथी है। यहां पत्थर पर बनी खाना खाने की थालियां कतार में बखूबी नजर आती हैं।

प्राकृतिक बावड़ी

यहां पर प्राकृतिक बावड़ी भी है, जिसमें हमेशा पानी रहता है। माना जाता है कि यहां बैठकर पांडवों ने खाना खाया था। बहरहाल हाथी भाटा किस काल में बना, ये इतिहासकारों के बीच शोध का दिलचस्प विषय अब भी बना हुआ है, लेकिन विराट नगर में पहाड़ियों की चट्टानों में बनी कुछ आकृतियों आदि को देखकर तथा हाथी भाटा एवं वहां की कुछ मान्यताओं में समानता को देखकर कहा जा सकता है कि यह उसी समय वजूद में आया होगा, जब विराट नगर में डायनासौर जैसी पत्थर पर बनी विशाल आकृतियां आदि वजूद में आईं। चीनी यात्री हेनसांग के अनुसार यह क्षेत्र विराट प्रदेश के अंतर्गत था, जो कई दृष्टिकोण से कुछ साबित भी होता है।

आदमकद हाथी की भव्य प्रतिमा

टोंक राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में स्थित एक छोटा सा जिला है। टोंक राज्य का प्रशासनिक मुख्यालय है। जयपुर और सवाई माधोपुर से घिरा टोंक बलुआ पत्थर के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। व्यस्त शहरी जीवन से दूर, टोंक राजस्थान का एक गाँव है। राजस्थान दौरे पर आपको इस जगह पर सबसे अनोखा स्मारक देखने को मिल सकता है। चट्टान के एक ही खंड से बनाई गई यह एक हाथी की गढ़ी हुई छवि है जो अपने विशाल आकार और भव्यता में एक असली हाथी से भी आगे निकल जाती है। यह एक आदमकद हाथी का चट्टान को काटकर बनाया गया रूप है।

वनवास के दौरान पांडव यहां आए थे

हाथी के ठीक सामने 64 थालियों के साथ हवन वेदी है। इतिहासकारों के लिए यह हाथी, तलाई और वेदी किसी पहेली से कम नहीं है। मान्यता है कि वनवास के दौरान पांडव यहां आए थे। चूंकि पांचाली भगवान गणेश की पूजा के बिना अन्न ग्रहण नहीं करती थी, इसलिए पांडवों ने रातों रात एक विशालकाय पत्थर को तराश कर यह मूरत बना दी। यही नहीं, पांडवों ने इस मूरत में प्राण भी डाल दिए थे। कहा जाता है कि उस समय यह हाथी 14 कोस के क्षेत्र में घूमकर पहरा भी देता था। जब यह गांवों की बस्ती के पास से गुजरता तो इसकी पीठ पर लगी घंटियों की तेज आवाज से लोग डरने लगे। ऐसे में यह हाथी यहां स्थाई हो गया।

इतिहास

हाथी भाटा का इतिहास कुछ स्पष्ट नहीं है। कहा जाता है कि स. 1200 में इसका निर्माण रामनाथ द्वारा किया गया। हालांकि उसकी बनावट एवं मान्यताओं को देखते हुए कई तथ्य सामने आते हैं, जिससे कहा जा सकता है कि ये हाथी भाटा प्रागैतिहासिक काल एवं लौह युगीन काल का भी हो सकता है। इसको समय-समय पर निखारा एवं तराशा गया हो।

विराट नगर यानी बैराठ

विराट नगर (बैराठ) जयपुर जिले की सीमा पर स्थित नगर है। इसका पुराना नाम बैराठ भी है। ये राजस्थान में उत्तर में स्थित है। यह नगर प्राचीन मत्सयराज की राजधानी भी रहा। यहां पुरातात्विक संपदा बिखरी हुई है तथा भूगर्भ में भी समाई बताई जाती है। जानकारी के अनुसार विराट नगर अरावली की पहाड़ियों के मध्य में बसा है। राजस्थान के जयपुर जिले में शाहपुरा के अलवर-जयपुर रोड के उत्तर-पूर्व की तरफ 25 किलोमीटर दूर विराट नगर कस्बा अपनी पौराणिक ऐतिहासिक विरासत को आज भी समेटे हुए है।