कोरोना संक्रमण से उबर चुके मरीजों के फेफड़े 100% नहीं कर पा रहे हैं काम

चीन से फैले कोरोना वायरस (Coronavirus) ने पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया है। इस महामारी से अब तक 38 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो गए है। हालाकि, इनमे से 1,02,548 संक्रमित लोग स्‍वस्‍थ होकर अपने घर लौट गए है। इस वायरस से 17000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा मौत इटली में हुई हैं। यहां मरने वालों की संख्या 6,000 के पार चली गई है। यहां 63,927 लोग कोरोना से संक्रमित हैं। इटली में कोरोना वायरस के 7432 मरीज ठीक भी हो चुके हैं। भारत में 500 से ज्यादा लोग वायरस की चपेट में आ चुके हैं। जहां हर दिन संक्रमितों की संख्‍या बढती जा रही है। वहीं, ठीक होने की तादाद में भी इजाफा हो रहा है। लेकिन, चीन और हांगकांग में ठीक होकर घर लौटे मरीजों पर किए गए अध्‍ययन ने वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों को चिंता में डाल दिया है। दरअसल, अध्‍ययन में पता चला है कि ठीक हो चुके लोगों के फेफड़े पहले की तरह काम नहीं कर रहे हैं।

कोरोना वायरस के लक्षण सूखी खांसी, सांस उखड़ना और निमोनिया तौर पर सामने आते हैं क्‍योंकि ये हमारे श्‍वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। अब हांगकांग में ठीक हुए मरीजों पर अध्‍ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने पाया कि संक्रमण से उबर चुके लोगों के फेफड़े आंशिक तौर क्षतिग्रस्‍त हो सकते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि अभी इस छोटे से अध्‍ययन से कोई बड़ा मतलब निकालना जल्‍दबाजी होगा। अभी साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता कि ये असर लंबे समय तक रहेगा या आगे चलकर ठीक हो जाएगा।

हांगकांग में प्रिंस मार्गेट हॉस्पिटल में संक्रमण रोग सेंटर के मेडिकल डायरेक्‍टर डॉ ऑवेन सांग ताकयिन ने डीडब्‍ल्‍यू से कहा कि ठीक हो चुके कुछ मरीजों के फेफड़ों के काम करने की क्षमता 20 से 30% तक कम हो सकती है। कंप्‍यूटूर टॉमोग्राफी में फेफड़ों में फ्लूड और डिबरीज भरी हुई दिखाई दे रही हैं। जैसे-जैसे बीमारी बढती जाती है, वैसे-वैसे फेफड़ों की हालत खराब होती जाती है। आसान शब्‍दों में समझें तो फेफड़ों में हवा के साथ मवाद, खून या पानी भरा हुआ नजर आया। ऐसे स्तिथि में मरीज को तेज चलने पर सांस लेने में तकलीफ का सामना करना पड़ सकता है। शोधकर्ताओं ने संक्रमण के इलाज के बाद अस्‍पताल से छुट्टी पाए 12 लोगों पर छोटा सा अध्‍ययन किया। इनमें 3 लोगों के फेफड़े पहले की तरह काम नहीं कर रहे थे।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, COVID-19 से ठीक हो चुके मरीजों पर किए जा रहे अध्‍ययन में आगे पता किया जाएगा कि क्‍या बाद में पलमनरी फाइब्रोसिस विकसित हो रहा है या नहीं। इसकी वजह से फेफड़ों को काफी क्षति पहुंचती है। इसके बाद फाइब्रोसिस टिश्‍यू फेफड़ों को भारी नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं, जिससे मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।

ऐसे में रक्‍त में ऑक्‍सीजन की कमी होने लगती है। ऑक्‍सीजन की कमी के कारण मरीज की सांस उखड़ने लगती है। वह मेहनत का कोई काम नहीं कर पाता है। फेफड़ों में बनने वाले स्‍कार्स इलाज से ठीक नहीं किए जा सकते हैं।