पीली मूंग, चने, मसूर और काली बींस दालों में हैं इतनी खासियत कि ये आपको बनाती सेहतमंद

दाल हमारी सेहत से जुड़ा एक मुख्य खाद्य पदार्थ है। हमारा डाइट चार्ट इसके बिना अधूरा होता है। भारतीय लोग इसे काफी पंसद करते हैं। पहले कहा जाता था कि दाल-रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ। हालांकि अब दालों के भाव आसमान पर है, ऐसे में ये हर आय वर्ग के लिए आसानी से उपलब्ध नहीं है। फिर भी दालों में इतने गुण होते हैं कि इनकी अनदेखी करने से काम नहीं चलता। आज हम आपको चार दालों पीली मूंग की दाल, चने की दाल, मसूर की दाल और काली बींस के बारे में बताने जा रहे हैं।


1. पीली मूंग दाल की खास बात

मूंग दाल दो प्रकार की होती है हरी और पीली। धुली और छिली हुई मूंग दालें पीले रंग की होती हैं। दालों में प्रोटीन की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है। पकाने में आसान होने के साथ ही यह पचाने में भी आसान होती है। साथ ही शाकाहारी लोगों की पसंदीदा डिशेज़ में से भी एक है।


पीली मूंग की दाल के फायदे

- पीली मूंग दाल में प्रोटीन, आयरन और फाइबर बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है।

- पोटैशियम, कैल्शियम और विटामिन बी कॉम्पलेक्स वाली इस दाल में फैट बिल्कुल नहीं होता।

- अन्य दालों की अपेक्षा पीली मूंग दाल आसानी से पच जाती है।

- इसमें मौजूद फाइबर शरीर के फालतू कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं।

- बीमारी में इस दाल का सेवन काफी फायदेमंद होता है।

- गर्भवती महिलाओं को भी हफ्ते में कम-से-कम 3 दिन इस दाल का सेवन करना चाहिए।

- इसमें मौजूद अनेक प्रकार के तत्वों से बच्चों से लेकर बड़ों तक को कई स्वास्थ्यवर्धक फायदे होते हैं।

- स्वास्थ्य के साथ-साथ बच्चों में विकास संबंधी कई जरूरी पोषण की कमी पूरी करती है।


2. चना दाल की खास बातें

मकई के दानों जैसे दिखने वाले ये छोटे-छोटे चने होते हैं। काले चनों को दो टुकड़ों में तोड़कर उन्हें पॉलिश करके चना दाल तैयार की जाती है। यह भारतीय खाने का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। लजीज और पौष्टिक होने के साथ ही पचने में भी आसान होते हैं। खाने के अलावा सौंदर्य बढ़ाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। जो बेसन होता है, वो आटे के साथ पीसकर बनाया गया इसका ही एक रूप है जिसका प्रयोग भी भारत के कई राज्यों में व्यंजनों के तौर पर किया जाता है। चने दाल में भी प्रोटीन और फाइबर की सबसे ज़्यादा मात्रा पाई जाती है, जो पाचन की दृष्टि से बहुत लाभदायक है।

चना दाल के फायदे

- चना दाल में फाइबर की मात्रा सबसे अधिक होती है जो कोलेस्ट्रॉल कम करती है।

- स्वादिष्ट होने के साथ ही इसमें ग्लाइसमिक इंडेक्स होता है जो डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद होता है।

- चना दाल में जिंक, फोलेट, कैल्शियम और प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होते हैं।

- वसा की मात्रा बहुत कम होती है। इसमें सिर्फ पौलीअनसैचुरेटेड फैट होता है।

- इसके सेवन से एनीमिया, कब्ज, पीलिया, डिसेप्सिया, उल्टी और बालों के गिरने की समस्या दूर हो जाती है।


3. मसूर दाल की खास बातें

दालों को कच्चा खाना मुश्किल है। इसकी वजह है इनमें मौजूद एंटीन्यूट्रिएंट्स। इसके लिए दालों को रातभर या कुछ देर भिगोने के बाद ही पकाना सही रहता है। शाकाहारी लोगों के भोजन में शामिल एक और दाल, मसूर दाल। मसूर दाल तीन प्रकार की होती है साबुत, धुली और छिली हुई। बिना छिलके की इस दाल का रंग लाल होता है। हल्की होने के कारण यह जल्दी पक जाती है। इस दाल को ढककर पकाने से इसमें मौजूद विटामिन सी की मात्रा बराबर बनी रहती है। दस्त, बहुमूत्र, प्रदर, कब्ज और अनियमित पाचन क्रिया में इस दाल का सेवन फायदेमंद होता है। मसूर में प्रोटीन, कैल्शियम, सल्फर, कार्बोहाइड्रेट, एल्युमीनियम, जिंक, कॉपर, आयोडीन, मैग्नीशियम, सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन और विटामिन डी जैसे तत्व पाए जाते हैं।


मसूर दाल के फायदे

- नॉन-वेजिटेरियन्स के सारे जरूरी पोषक तत्व उन्हें चिकन और मटन से मिल जाते हैं, लेकिन वेजिटेरियन्स के लिए पोषक तत्वों का सबसे बड़ा खजाना दालों में ही मौजूद होता है। इसमें मौजूद अमिनो एसिड जैसे आईसोल्यूसीन और लाईसीन से बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन मिलता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभदायक होता है।
- इस दाल में फाइबर भी उच्च मात्रा में पाया जाता है।

- प्रोटीन के अलावा, इसमें फोलेट, विटामिन बी1, मिनरल्स, पोटैशियम, आयरन और लो कोलेस्ट्रॉल होता है।

- पेट के रोगों से लेकर पाचन क्रिया से संबंधित कई प्रकार की समस्याएं दूर होती हैं।
- मसूर की दाल का सूप पीने से आंतों और गले से संबंधित रोगों में आराम मिलता है।
- दाल का पाउडर बनाकर दांतों पर रगड़ने से दांतों के सभी रोग भी दूर हो जाते हैं। साथ ही उनमें चमक भी आती है।
- एनीमिया के रोगी के लिए यह दाल बहुत ही फायदेमंद है। कमजोरी की समस्या भी दूर होती है।
- मसूर की दाल का भस्म बनाकर घावों पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं।

- मसूर की दाल को रात में भिगोकर सुबह दरदरा पीसकर दूध के साथ चेहरे पर लगाने से चेहरे में निखार आता है। साथ ही दाग-धब्बे, पिंपल्स आदि से छुटकारा भी मिलता है।


4. काली बीन्स की खास बातें एवं गुण

छोटे-छोटे काले, चिकने से दिखने वाले ब्लैक बीन्स भारत में ही नहीं, अमेरिका में भी आम तौर पर खाए जाते हैं। ये एंटी-ऑक्सीडेंट्स का अच्छा स्रोत होते हैं। महज एक कप काले बीन्स के सेवन से 90 प्रतिशत तक फोलेट प्राप्त किया जा सकता है। काली बीन्स में 109 कैलोरी, 20 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 ग्राम फाइबर पाया जाता है। 100 ग्राम काली बीन्स में 1500 मिलीग्राम पोटैशियम, 9 मिलीग्राम सोडियम और 21 ग्राम प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। साथ ही इसमें मौजूद विटामिन ए, बी12, डी और कैल्शियम भी स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है। बीन्स में फैट की मात्रा तो कम होती ही है, साथ ही इससे शरीर के लिए आवश्यक ओमेगा-3 और ओमेगा-6 की पूर्ति भी होती है।


काली बींस के फायदे

- बीन्स कोलेस्ट्रॉल कम करने वाले फाइबर का अच्छा स्रोत है।

- थायामीन(विटामिन बी1), फॉस्फोरस, आयरन, कॉपर, मैग्नीशियम और पोटैशियम की भी अच्छा स्रोत है।

- वसा की मात्रा बहुत कम होती है, लेकिन साथ ही इसमें गैस बनाने वाले एंजाइम्स भी होते हैं, इसलिए हमेशा इसे पकाने से पहले कुछ देर के लिए भिगोकर रखना चाहिए।

- कोलेस्ट्रॉल कम करने के साथ ही इसमें मौजूद फाइबर ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा को तेजी से बढ़ने से रोकता है, जो इन दालों को डायबिटीज, इंसुलिन रेसिसटेंट या हाईपोग्लाईसिमिया से जूझ रहे रोगियों के लिए उपयुक्त बनाता है।

- गर्भवती महिलाओं के लिए काले बीन्स में मौजूद फोलेट बच्चे के विकास में बहुत फायदेमंद होते हैं। बीन्स के उपयोग से आपकी वेस्टलाइन के बढ़ने की संभावना 23 फीसदी कम हो जाती है।