प्रयोगशाला में तैयार किया गया 'नकली' कोरोना वायरस, संक्रमण रोकने में करेगा मदद

दुनियाभर में कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ता जा रहा हैं जो कि चिंता का विषय हैं। दुनियाभर में संक्रमितों का आंकड़ा 1.55 करोड़ को पार कर चुका हैं। ऐसे में इस संक्रमण को रोकने के लिए शोधकर्ता लगातार रिसर्च कर रहे हैं। इसके इलाज के लिए वैक्सीन और दवाओं पर रिसर्च जारी हैं। इसके लिए प्रयोगशाला में 'नकली' कोरोना वायरस भी तैयार किया गया है जो कि कोरोना संक्रमण को रोकने में मदद करेगा।

दरअसल, अमेरिकी शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में जेनेटिकली बदलाव करके सिर्फ प्रोटीन से ऐसा वायरस बनाया है जो कोरोना की तरह दिखता है। यह काफी हल्का है और यह कोरोना महामारी नहीं फैलाता। इस नकली वायरस में 'इंसानों में कोरोना से लड़ने के लिए एंटीबॉडी पैदा करने' की क्षमता है। बताया जा रहा है कि इस वायरस का इस्तेमाल दुनियाभर में दवाओं और वैक्सीन की जांच के लिए हो सकेगा।

इस वायरस को वेसिकुलर स्टोमेटाइटिस वायरस (VSV) नाम दिया गया है। इसे वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने तैयार किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह वायरस स्वस्थ कोशिकाओं को संक्रमित करता है तो शरीर में बनने वाली एंटीबॉडी इसे टारगेट करती है, ठीक उसी तरह, जिस तरह कोरोना के मामले में होता है। इस वायरस के जरिए शरीर में एंटीबॉडीज को कोरोना से लड़ने के लिए तैयार करने की कोशिश की जा रही है।

शोधकर्ताओं ने नए वायरस वीएसवी के बाहरी प्रोटीन को हटाकर इस पर कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन लगाया और इस तरह कोरोना(SARS-CoV-2) का डुप्लीकेट मॉडल (VSV-SARS-CoV-2) तैयार किया। नए वायरस में सिर्फ कोरोना के प्रोटीन का इस्तेमाल किया गया है। सुरक्षा के लिए इसमें बीमारी को घातक बनाने वाला जीन नहीं डाला गया है।

शोधकर्ताओं ने कोरोना सर्वाइवर के शरीर से सीरम लेकर उससे एंटीबॉडीज को अलग किया। बाद में इसका प्रयोगशाला में बने वायरस पर इस्तेमाल किया गया। शोधकर्ताओं ने परिणाम के तौर पर पाया कि मरीज की एंटीबॉडीज ने इस नए वायरस की पहचान की और उसे ब्लॉक कर दिया।

शोधकर्ताओं का कहना है कि जिस एंटीबॉडीज ने हाइब्रिड वायरस को रोका है, वही आगे कोरोना वायरस को भी इंसानी शरीर को संक्रमित करने से रोकेगी। शोधकर्ताओं ने कहा कि अगर कोई एंटीबॉडी लैब वाले वायरस को नहीं रोक सकती तो वह कोरोना को भी नहीं रोक पाएंगी।

कोरोना वायरस एयरोसोल यानी हवा मे मौजूद द्रव्यकणों के जरिए भी फैल रहा है। ये बारीक कण काफी खतरनाक साबित हो सकते हैं। इससे बचना जरूरी है। शोधकर्ता सिएन वेलन के मुताबिक, हमने तैयार किए गए इस वायरस को अर्जेंटीना, मेक्सिको, ब्राजील, कनाडा में भेजा है, ताकि वे रिसर्च में इसका प्रयोग कर सकें। अमेरिका में तो पहले से हमारे पास है ही।

शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना का यह डुप्लीकेट वायरस इंसान को नुकसान नहीं पहुंचाता। इसमें जेनेटिकली बदलाव किया गया है। ऐसे वायरस मवेशी, सुअर और घोड़ों में हो सकते हैं। ये वायरस इंसान को बमुश्किल ही संक्रमित कर पाते हैं। अगर संक्रमण होता भी है तो वायरल फ्लू के मामूली लक्षण दिखते हैं। शोधकर्ताओं को भरोसा है कि उनकी यह रिसर्च कोरोना से जंग में बहुत काम आएगी।