हर कोई अपने इष्टदेव की पूजा करता है और उनपर विश्वास रखते हुए आध्यात्म में लीन रहता हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपकी यह भक्ति आपको लंबी जिन्दगी दिला सकती हैं. जी हां, धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के बीमार होने की आशंका कम होती है। वहीं, नास्तिक लोगों के बीमार होने की आशंका अपेक्षाकृत ज्यादा होती है। ब्रिटेन के ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार आस्तिक लोगों के मुकाबले धर्म में आस्था नहीं रखने वाले लोगों के धूम्रपान का आदती होने की दोगुनी संभावना होती है।
उनके शराब पीने या धूम्रपान करने की संभावना भी आस्तिक लोगों की तुलना में ज्यादा होती है। जीवनशैली संबंधी इन आदतों के चलते उनका मानसिक स्वास्थ्य भी अपेक्षाकृत कमजोर होता है और आयु कम होती है। जानकर अजीब लग रहा होगा, लेकिन करीब एक लाख लोगों पर किए गए सर्वे में ये बात सामने आई है। इसमें बताया गया है कि धर्म को नहीं मानने वाला हर पांच में एक व्यक्ति धूम्रपान करता है। वहीं, सिख, ईसाई या इस्लाम धर्म को मानने वाले हर 10 में से एक इंसान ही धूम्रपान करता है। रिपोर्ट के मुताबिक, धर्म में विश्वास नहीं करने वालों के शराब पीने की संभावना भी ज्यादा होती है। आस्तिकों में यह लक्षण देखने को कम मिलता है।
धर्म को मानने वाले लोग केवल शारीरिक स्वास्थ्य के मामले में ही नास्तिकों से बेहतर नहीं होते, उनका मानसिक स्वास्थ्य भी अपेक्षाकृत बेहतर होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 68 प्रतिशत ईसाई, 77 प्रतिशत यहूदी, 72 प्रतिशत हिंदू, 69 प्रतिशत सिख और 66 प्रतिशत इस्लाम धर्मावलंबियों ने अपने स्वास्थ्य को लेकर संतुष्टि जताई। वहीं, धर्म को नहीं मानने वाले केवल 64 प्रतिशत लोग ही अपने स्वास्थ्य की हालत से संतुष्ट हैं।
यह रिपोर्ट इंग्लैंड और वेल्स में करीब एक लाख लोगों पर किए गए सर्वे पर आधारित है। 2016 से 2018 के बीच किए गए सर्वे में ऑफिस ऑफ नेशनल स्टैटिस्टिक्स ने लोगों से उनके जीवन में धर्म के महत्व के बारे में पूछा। रिपोर्ट में मानसिक स्वास्थ्य का स्तर जानने के लिए अलग-अलग मापदंडों पर शून्य से 100 तक की मार्किंग की गई। इसमें पता चला कि जहां ईसाई, हिंदू, इस्लाम या सिख धर्म मानने वालों को मानसिक स्वास्थ्य के मामले में 49 फीसदी से ज्यादा अंक मिले, किसी भी धर्म को नहीं मानने वालों को इसमें बमुश्किल 48 प्रतिशत अंक मिले।
इससे पहले 2018 में अमेरिका में एक रिपोर्ट में भी बताया गया था कि नियमित चर्च जाने वाले, धर्म में आस्था नहीं रखने वालों के मुकाबले औसतन चार साल तक ज्यादा जीते हैं। इसमें कहा गया था कि धर्म को मानने वाले लोग सामाजिक गतिविधियों में ज्यादा शामिल होते हैं, लेकिन उम्र लंबी होने का यह अकेला कारण नहीं है। इसका दूसरा पहलू जीवनशैली से जुड़ी आदतें हैं, जिनसे आस्तिक आम तौर पर दूर रहते हैं। धूम्रपान और शराब जैसी आदतों से परहेज उनके जीवन को लंबा बनाता है।