सामने आ रहा कोरोना का एक और नया लक्षण, जानें और रहें सतर्क

समय के साथ कोरोना वायरस का विक्राल रूप देखने को मिल रहा हैं। दुनियाभर में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 1.53 करोड़ को पार कर चुका हैं जिसमें 6.30 लाख कोगों की जान जा चुकी हैं। ऐसे में विशेषज्ञों द्वारा लगातार इसका अध्ययन किया जा रहा हैं ताकि इसके बढ़ते संक्रमण पर लगाम लगाई जा सकें। कोरोना वायरस के प्रसार के साथ ही इसके लक्षणों में भी प्रसार देखने को मिला हैं। स्पेन के मैड्रिड स्थित रामोन वाई कैजल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के विशेषज्ञों का कहना है कि मुंह के भीतर तालु में घाव या लाल चकत्ते भी संक्रमण के लक्षण हो सकते हैं।

जामा डर्मेटोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 30 मार्च से आठ अप्रैल के बीच 21 कोरोना संक्रमित मरीजों पर अध्ययन किया जिसमें ये पता चला है। वैज्ञानिकों ने कहा कि छह मरीजों के मुंह के भीतर छोटे-छोटे धब्बे देखे गए जो नाक और गले के भीतर तक थे। जिन मरीजों में कोरोना के ये लक्षण दिखे उनकी उम्र 40 से 69 वर्ष के बीच थी।

संक्रमित के मुंह की जांच जरूरी चिकित्सकों का कहना है कि संक्रमित के मुंह की जांच जरूरी है। एहतियात के तौर पर मुंह की जांच नहीं हो रही है या इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है क्योंकि यहां से संक्रमण फैलने की संभावना अधिक है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज के प्रोटोकॉल में ईएनटी विशेषज्ञों का होना जरूरी है जिससे इस तरह की तकलीफों का समय रहते पता चल सके।

मास्क संक्रमण से बचाने में मदद देने के साथ संक्रमित से वायरस के फैलने का खतरा भी टालता है। जर्नल ऑफ इंटर्नल मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के सानफ्रांसिस्को जनरल अस्पताल की इन्फेक्शियस डिसीज विशेषज्ञ डॉ। मोनिका गांधी ने बताया, मास्क पहनने वाले लोग भी संक्रमित हो सकते हैं। लेकिन मास्क पहनने वाले के शरीर में कम मात्रा में वायरस प्रवेश करता है।

इनमें बहुत हल्के लक्षण आते हैं या आते ही नहीं हैं। एक सर्वे में ये पता भी चला है कि मास्क पहनने वाले 55.8 फीसदी लोग कोरोना की चपेट में आए जबकि मास्क न पहनने वाले लोगों का आंकड़ा 80.8 फीसदी था। डॉ. मोनिका के अनुसार मास्क पहनने वाले में कम मात्रा में वायरस जाते ही इम्युनिटी सक्रिय हो जाती है और वायरस खत्म कर देती है।

कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों में एंटीबॉडीज बनती हैं लेकिन संभव है कि पहले तीन महीने के भीतर उसका स्तर कम यानी इम्युनिटी कम हो जाए। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया द्वारा किए गए शोध में पता चला है कि ऐसे मरीजों में 73 दिन के भीतर एंटीबॉडीज का स्तर कम हुआ है। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित शोध के अनुसार 20 महिलाओं और 14 पुरुषों पर हुए अध्ययन के बाद ये खुलासा हुआ है जिन्हें संक्रमण के हल्के लक्षण थे।