सांस संबंधी समस्या बन रही संक्रमण से ठीक होने के बाद भी परेशानी

देश-दुनिया को कोरोना ने बहुत प्रभावित किया हैं। हर दिन संक्रमण का आंकड़ा बढ़ रहा हैं। हांलाकि संक्रमण से ठीक होने वाले मरीजों का आंकड़ा भी बहुत बड़ा हैं और इसमें इजाफा हो रहा हैं। लेकिन कोरोना से ठीक होने के बाद भी लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं। ऐसा ही कुछ एक रिसर्च में सामने आया जिसके अनुसार संक्रमण से ठीक होने के बाद भी सांस संबंधी समस्या परेशान कर रही हैं।

कोरोना से ठीक होने के बाद क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और उच्च रक्तचाप समेत अन्य बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होने की संभावना है। शोधकर्ताओं ने यह खुलासा कोरोना से स्वस्थ हो चुके 2,900 से अधिक लोगों की जांच के बाद किया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि जो लोग पहले से ही श्वसन तंत्र संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं, यदि वे कोरोना से संक्रमित हो जाते हैं तो उन्हें ठीक होने के बाद भी अतिरिक्त सतर्कता बरतने के साथ ही कोरोना से बचाव के लिए जारी दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करने की जरूरत है।

जर्नल ऑफ जनरल इंटरनल मेडिसिन के ताजा संस्करण में प्रकाशित यह रिपोर्ट देश के सर्वोच्च शोध संस्थान भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अध्ययन से बिलकुल उलट है। आईसीएमआर ने कहा था कि हालिया अध्ययन के बाद यह पाया गया है कि कोरोना संक्रमण के एक बार होने के बाद इसके फिर से होने का कोई सबूत नहीं मिला है।

हालांकि इस दावे के उलट न्यूयार्क के सबसे बड़े शैक्षणिक चिकित्सा संस्थान माउंट सिनाई हेल्थ सिस्टम के शोधकर्ताओं ने पाया कि सांस संबंधी परेशानियां ठीक होकर गए मरीजों में आम है और इसके चलते वह फिर से अस्पताल लौट रहे हैं। इसमें पाया गया अस्पताल से उपचार के बाद ठीक होकर लौटे 2,900 लोगों में लगभग 100 से ज्यादा रोगी यानी 3.5 फीसदी के करीब को आपातकालीन देखभाल के लिए चार से पांच दिन में वापस लौटना पड़ा। इसमें से 56 रोगियों को फिर से अस्पताल आने की जरूरत नहीं थी, जबकि बाकी को अस्पताल आना पड़ा। इतना ही नहीं कोरोना से ठीक होने के बाद यह रोगियों पर कई तरह की बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए थे।

माउंट सिनाई के गिरीश नाडकर्णी ने कहा कि जो मरीज पूरी तरह से ठीक हो गए, उनकी तुलना में आने वाले मरीजों में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और उच्च रक्तचाप था। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन से पता चलता है कि कई मरीजों में अस्पताल में भर्ती होने का मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है और उनकी समस्याएं धीरे-धीरे सामने आती हैं। इससे हमें कोरोना मरीजों में दीर्घकालीन प्रभावों का अध्ययन करने में मदद मिल सकती है और उसके निष्कर्षों के आधार पर मरीजों का इलाज बेहतर तरीके से किया जा सकता है।

माउंट सिनाई की ही डॉ. अनुराधा लाला के अनुसार कई जगहों पर कोरोना कम हो गया है और फिर कई जगहों पर पुनर्जीवित हो गया है। इस तरह, हमारे लिए अस्पताल में भर्ती होने के दौरान की दुश्वारियों और जोखिम कारकों को समझना महत्वपूर्ण है। हमें रोगियों को अच्छी तरह से और अस्पताल से बाहर कैसे रखा जाए, यह समझने के लिए अपना ध्यान उनके ठीक होने के बाद की स्थितियों पर केंद्रित करना चाहिए।