कोरोना को लेकर अब खत्म हुई बड़ी चिंता, स्टडी में सामने आई यह बात

देश-दुनिया के लिए परेशानी बन चुका कोरोना अब तक 51 लाख से अधिक लोगों को संक्रमित कर चुका हैं। हांलाकि इस संक्रमण को रोकने के हर संभव प्रयास पर ध्यान दिया जा रहा हैं। इसी के साथ ही ठीक हुए मरीजों का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा हैं। लेकिन कई ऐसे व्यक्ति हैं जो ठीक होने के बाद भी दोबारा पॉजिटिव हुए हैं और परेशानी का कारण बने हैं। ऐसे में अब दक्षिण कोरिया के सीडीसी शोधकर्ताओं की स्टडी इस बड़ी चिंता से राहत दिलाने वाली हैं।

शोधकर्ताओं को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि जो मरीज कोरोना वायरस से ठीक होने के बाद टेस्ट में दोबारा पॉजिटिव आ रहे हैं वो संक्रामक नहीं हैं यानी उनसे दूसरों में कोरोना वायरस फैलने का खतरा नहीं है। इसके अलावा स्टडी में ये भी पता चला है कि शरीर में बने एंटीबॉडी की वजह से ठीक हो चुके कोरोना के मरीज फिर से बीमार नहीं पड़ सकते हैं। वैज्ञानिकों ने यह स्टडी Covid-19 के उन 285 मरीजों पर की जो ठीक होने के बाद कोरोना वायरस के टेस्ट में पॉजिटिव आए थे। स्टडी में पाया गया कि इन मरीजों से दूसरे व्यक्तियों में किसी भी तरह का संक्रमण नहीं फैला और इनके वायरस सैंपल में भी जीवाणुओं की बढ़त नहीं हुई है। इससे पता चलता है कि ये मरीज गैर-संक्रामक थे या इनके अंदर मृत वायरस के कण मौजूद थे।

ये रिपोर्ट उन देशों के लिए एक सकारात्मक संकेत है जहां कोरोना वायरस के मरीज ठीक हो रहे हैं और वह लॉकडाउन खोलने की तरफ बढ़ रहे हैं। भारत उन्हीं देशों में से एक है। दक्षिण कोरिया की इस स्टडी से पता चलता है कि जो लोग Covid-19 से ठीक चुके हैं, वह सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपायों के नरम पड़ने के बाद भी उनसे कोरोना वायरस फैलने का कोई खतरा नहीं है। स्टडी के अनुसार दक्षिण कोरिया में स्वास्थ्य अधिकारी अब ठीक हो चुके कोरोना के मरीजों के दोबारा टेस्ट में पॉजिटिव आने के बाद भी उन्हें संक्रामक नहीं समझेंगे। पिछले महीने आए एक शोध में कहा गया था कि कोरोना वायरस के न्यूक्लिक एसिड के पीसीआर टेस्ट मरे और जिंदा वायरस के कणों के बीच अंतर नहीं कर सकते हैं।

हो सकता है कि वो शोध गलत धारणा दे रहे हों कि दोबारा टेस्ट में पॉजिटिव आने वाला व्यक्ति संक्रामक बना रहता है। वहीं एंटीबॉडी टेस्ट पर चल रही बहस में भी दक्षिण कोरिया का शोध मददगार साबित हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार एंटीबॉडी शायद वायरस के खिलाफ कुछ स्तर की सुरक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन उनके पास अभी तक इस बात के कोई ठोस सबूत नहीं है और न ही वह जानते हैं कि कोई भी इम्यूनिटी कितने समय तक शरीर में सही तरीके से काम करती है।