कोरोना का कहर पूरी दुनिया पर मंडराया हुआ हैं और संक्रमितों का आंकड़ा रोजाना लगभग 2 लाख बढ़ता जा रहा हैं। कोरोना की वजह से दुनियाभर में 5 लाख से अधिक मौत हो चुकी हैं। कोरोना का कहर थमा नहीं उससे पहले ही एक और खतरनाक और जानलेना बीमारी सामने आई हैं जो पहले भी करोड़ों लोगों की जान ले चुकी हैं। इस बीमारी का नाम है ब्यूबोनिक प्लेग। चीन के बयन्नुर में स्वास्थ्य विभाग द्वारा इस बीमारी को लेकर तीसरे स्तर की चेतावनी जारी की है। यह चेतावनी इस साल के अंत तक के लिए जारी की है। साथ ही लोगों को सतर्क रहने के लिए भी कहा गया है। आइए जानते हैं कि आखिर क्या है ये ब्यूबोनिक प्लेग, ये कैसे फैलता है और सबसे जरूरी कि यह बीमारी कितनी खतरनाक है?
ब्यूबोनिक प्लेग को 'ब्लैक डेथ' या काली मौत भी कहते हैं। यह कोई नई बीमारी नहीं है बल्कि इसकी वजह से करोड़ों लोग पहले भी मारे जा चुके हैं। अब तक कुल तीन बार यह बीमारी दुनिया पर कहर बनकर टूटी है। पहली बार इसकी चपेट में आने से लगभग पांच करोड़ लोग, दूसरी बार यूरोप की एक तिहाई आबादी और तीसरी बार लगभग 80 हजार लोगों की मौत हुई है।
यह बीमारी जंगली चूहों में पाए जाने वाली बैक्टीरिया से होती है। दरअसल, सबसे पहले ब्यूबोनिक प्लेग जंगली चूहों को होता है। फिर उनके मरने के बाद प्लेग के बैक्टीरिया पिस्सुओं के जरिए इंसान के शरीर में घुस जाते हैं। जब पिस्सु काटते हैं तो संक्रमण वाले बैक्टीरिया इंसान के खून में मिल जाते हैं, जिससे इंसान भी प्लेग से संक्रमित हो जाता है। ऐसा चूहों के मरने के दो-तीन हफ्ते बाद होता है।
इस बीमारी में इंसान को तेज बुखार और शरीर में असहनीय दर्द होता है। साथ ही नाड़ी भी तेज चलने लगती है। इसके अलावा दो-तीन दिन में शरीर में गिल्टियां निकलने लगती हैं, जो 14 दिन में ही पक जाती हैं। वही नाक और उंगलियां भी काली पड़ने लगती हैं और धीरे-धीरे वो सड़ने लगती हैं। गिल्टियां निकलने की वजह से इस बीमारी को गिल्टीवाला प्लेग भी कहते हैं।
ब्यूबोनिक प्लेग फैलाने वाले बैक्टीरिया का नाम यर्सिनिया पेस्टिस बैक्टीरियम है। यह शरीर के लिंफ नोड्स (लसीका ग्रंथियां), खून और फेफड़ों पर हमला करता है। वैसे तो यह सदियों पुरानी बीमारी है, लेकिन आज भी दुनिया के कई देशों में इसके मामले सामने आते रहते हैं। भारत में भी साल 1994 में ब्यूबोनिक प्लेग के करीब 700 मामले सामने आए थे, जिसमें से 52 लोगों की मौत हो गई थी।
कहते हैं कि छठी और आठवीं शताब्दी में ब्यूबोनिक प्लेग को 'प्लेग ऑफ जस्टिनियन' नाम से जाना जाता था। उस समय इस बीमारी से करीब 2.5 से पांच करोड़ लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद 1347 ईस्वी में ब्यूबोनिक प्लेग का हमला हुआ था, जिसने यूरोप की एक तिहाई आबादी को ही खत्म कर दिया था। उस समय इस प्लेग को 'ब्लैक डेथ' नाम दिया गया था। इससे बचने के लिए टीका विकसित करने में शोधकर्ता लगतार प्रयासरत हैं, लेकिन अभी तक कोई टीका उपलब्ध नहीं है।