कोरोना के कहर से कोई देश अछूता नहीं हैं और कई देश इसकी दूसरी लहर का सामना भी कर रहे हैं। ऐसे में कई कोरोना वैक्सीन अपने विभिन्न चरणों से गुजर रही हैं और कई देश इमरजेंसी के रूप में कोरोना का टीकाकरण भी करवा रहे हैं। ऐसे में लोगों के मन में वैक्सीन को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे है जिसमें से एक हैं कि जो लोग कोरोना से ठीक हो चुके हैं, क्या उन्हें भी वैक्सीन लेनी चाहिए? हांलाकि इसका जवाब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दिया जा चुका हैं कि सभी को टीका लगवाना चाहिए।
हालांकि जो लोग टीकाकरण के समय कोरोना से संक्रमित होते हैं, उन्हें सलाह दी गई है कि वो कम से कम 14 दिनों तक के लिए टीके को टाल दें। लेकिन सवाल ये है कि उन लोगों को देखते हुए जो बीमारी से उबर चुके हैं, उन्होंने कोरोना वायरस के प्रति प्राकृतिक प्रतिरक्षा विकसित कर ली है, क्या टीकाकरण कार्यक्रम में उन्हें शामिल करना उचित है? इसके जवाब में विशेषज्ञ कहते हैं कि हां, क्योंकि प्राकृतिक प्रतिरक्षा कितने समय तक रहती है या वो कितनी मजबूत है, इसपर अभी भी स्पष्टता नहीं है।
कोरोना के प्रति प्राकृतिक प्रतिरक्षा के बारे में तो वर्तमान सोच यही है कि एंटीबॉडी का स्तर कुछ महीनों के बाद गिरना शुरू हो जाता है, जिसके बाद हो सकता है कि कोरोना से ठीक हुआ व्यक्ति दोबारा से संक्रमित हो जाए। ऐसे कई मामले देखने को भी मिले हैं। हालांकि आमतौर पर ऐसा माना जा रहा है कि तीन-चार महीने तक तो शरीर में एंटीबॉडी रहती ही है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों कहते हैं कि हाल ही में जो लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं, वो कुछ महीनों तक टीका न भी लें तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन जो लोग कई महीने पहले ही संक्रमित हुए थे, उन्हें तो वैक्सीन उपलब्ध होते ही टीका लेने की योजना बनानी चाहिए।
विशेषज्ञों के मुताबिक, कोरोना का टीका उन लोगों में एंटीबॉडी स्तर बढ़ा सकता है, जो पहले संक्रमित हो चुके हैं। उनमें वैक्सीन बूस्टर शॉट की तरह काम कर सकता है, लेकिन इस बात की भी संभावना है कि प्राकृतिक प्रतिरक्षा के साथ टीकाकरण कुछ लोगों में गंभीर प्रतिक्रिया का कारण बन सकता है।