कोरोना की रफ़्तार लगातार बढती जा रही हैं और हर दिन संक्रमितों का आंकड़ा भी बढ़ रहा हैं। ऐसे में इस महामारी से जुड़ी लगातार रिसर्च की जा रही हैं ताकि वैक्सीन, दवा और इलाज ढूंढें जा सकें। ऐसे में अब सामने आया हैं कि संक्रमित मां के दूध से मरीजों का इलाज किया जाए। जी हां, एक शोध में मां के दूध यानी ब्रेस्ट मिल्क से सकरात्मक परिणाम दिखाई दिए हैं। संक्रमित होकर ठीक हो चुकीं महिलाओं के दूध में एंटीबॉडी पाए गए हैं।
डेली मेल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना मरीजों को बचाने के लिए अब मां के दूध का सहारा लिया जाएगा। कोरोना से संक्रमित होकर ठीक हो चुकीं 30 महिलाओं के दूध में कोरोना वायरस के प्रति एंटीबॉडी पाए जाने के बाद डच वैज्ञानिकों को उम्मीद नजर आई है। उनकी योजना है कि प्लाज्मा थेरेपी की तरह मां के दूध का इस्तेमाल कर पॉजिटिव मरीजों में वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा पैदा की जाए और उनकी जान बचाई जाए।
शोधकर्ताओं का कहना है कि संक्रमित मां के दूध का आइस क्यूब यानी बर्फ के टुकड़े बनाकर मरीजों को चूसने के लिए दिए जाए तो उनमें ज्यादा इम्यूनिटी बनेगी। डच ब्रेस्ट मिल्क बैंक के प्रमुख और इस अध्ययन के शोधकर्ता व्रिट सैम कहते हैं कि इस तरह तैयार आइस क्यूब चूसने से मरीजों के शरीर में मौजूद सभी म्यूकस मेंबरेंस में एंटीबॉडी पहुंच जाएगी। शरीर के श्वसन तंत्र और अन्य हिस्सों में बाहरी रोगाणुओं के प्रवेश से रोकने का काम म्यूकस के जिम्मे होता है। जब इसमें एंटीबॉडी प्रोटीन मिल जाएगी तो कोरोना वायरस के स्पाइक शरीर में प्रवेश नहीं कर सकेंगे।
शोधकर्ता ब्रिट वैन कुलेन का कहना है कि घर में रहकर कोरोना वायरस का इलाज करा रहे बुजुर्गों को ये आइस क्यूब देने से बहुत लाभ होगा। साथ ही वे लोग भी लाभान्वित होंगे, जो कोरोना वायरस के उच्च जोखिम वाले समूह में आते हैं। शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला आधारित इस अध्ययन में संक्रमित हो चुकीं 30 महिलाओं(नवजात शिशु की मांओं) के दूध में कोरोना वायरस की एंटीबॉडी पाई। शोधकर्ताओं ने पाया कि ये एंटीबॉडी इतनी शक्तिशाली हैं कि इससे स्वस्थ और संक्रमित लोगों के शरीर में वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी पैदा की जा सकती है।
वैज्ञानिकों ने अपील की है कि पॉजिटिव और स्वस्थ हो चुकीं शिशुवती महिलाएं 100-100 मिलीग्राम दूध दान करें ताकि दूध के महत्व पर और ज्यादा शोध अध्ययन हो सके। दूध दान करने के लिए करीब पांच हजार महिलाएं आगे आई हैं। यह अध्ययन नीदरलैंड स्थित एमा चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल और अन्य अस्पतालों के संयुक्त सहयोग से हो रहा है, जिसका पहला चरण अप्रैल में पूरा हुआ था। वैज्ञानिकों इस दिशा में लगातार शोध कर रहे हैं। वैज्ञानिकों को इसमें कामयाबी मिलने की उम्मीद है। अगर ऐसा होता है तो कोरोना के इलाज के लिए एक और विकल्प दुनिया के सामने होगा।