कोरोना संक्रमितों का बढ़ता आंकड़ा देश-दुनिया के लिए चिंता का विषय हैं। ऐसे में देशों द्वारा टेस्टिंग को बढ़ाने की कवायद की जा रही हैं ताकि संक्रमितों का जल्द पता लगाया जा सकें। इसके लिए जरूरी हैं टेस्टिंग की तकनीक जो जल्द परिणाम दे। वर्तमान में देश में आरटी-पीसीआर टेस्ट किट का इस्तेमाल किया जा रहा हैं जिसमें नतीजे आने में समय लगता है। दुनियाभर में अब नई तकनीकों को विकसित किया जा रहा हैं जो कोरोना टेस्टिंग के परिणाम जल्द जारी कर सकें। इसी कड़ी में सिंगापुर के वैज्ञानिकों ने भी नई तकनीक और नया तरीका इजाद किया है, जिसमें करीब आधा घंटा ही समय लगेगा।
सिंगापुर के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे प्रयोगशाला में होने वाली कोविड-19 की जांच के नतीजे केवल 36 मिनट में ही आ जाएंगे। मौजूदा जांच प्रणाली में उच्च प्रशिक्षित तकनीकी कर्मचारियों की जरूरत होती है और नतीजे आने में कई घंटों से लेकर तीन दिन तक लग जाते हैं।
नानयांग तकनीकी विश्विवद्यालय (एनटीसी) के ‘ली कांग चियान स्कूल ऑफ मेडिसिन’ में वैज्ञानिकों ने यह नई तकनीक विकसित की है। इस नई तकनीक में कोविड-19 की लैब टेस्टिंग यानी प्रयोगशाला जांच में लगने वाले समय और लागत में सुधार के तरीके बताए गए हैं।
विश्वविद्यालय की ओर से बताया गया कि इस परीक्षण, जिसे पोर्टेबल उपकरणों के साथ किया जा सकता है, उसे समुदाय में एक ‘स्क्रीनिंग टूल’ के रूप में भी तैनात किया जा सकता है। बताया गया कि नई तकनीक से कोविड-19 की प्रयोगशाला जांच की रिपोर्ट 36 मिनट में आ सकती है।
मालूम हो कि वर्तमान में, कोविड-19 परीक्षण के लिए सबसे संवेदनशील तरीका पॉलीमरीज चेन रिएक्शन (पीसीआर) नामक एक लैब आधारित तकनीक है, जिसमें एक मशीन वायरल आनुवंशिक कणों को बार-बार कॉपी कर उसकी जांच करती है ताकि कोरोना वायरस के किसी भी लक्षण का पता लगाया जा सकता है।
विशेषज्ञों ने बताया कि आरएनए की जांच में सबसे अधिक समय लगता है, जिसमें रोगी के नमूने में अन्य घटकों से आरएनए को अलग किया जाता है। इस प्रक्रिया में जिन रसायनों की आवश्यकता होती है उसकी आपूर्ति दुनिया में कम है। नई तकनीक में इसकी जरूरत नहीं पड़ती है।
‘एनटीयू एलकेसीमेडिसन’ द्वारा विकसित नई तकनीक कई चरणों को एक-दूसरे से जोड़ती है और इससे मरीज के नमूने की सीधी जांच की जा सकती है। यह नतीजे आने के समय को कम और आरएनए शोधन रसायनों की जरूरत को खत्म करती है। इस नई तकनीक की विस्तृत जानकारियां रिसर्च जर्नल ‘जीन्स’ में प्रकाशित की गई है।