शोध में हुआ चौकाने वाला खुलासा, बुजुर्गों को हैं कोरोना से दोबारा संक्रमित होने का ज्यादा खतरा

दुनियाभर में कोरोना का कहर जारी हैं जो कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा हैं। आंकड़ों की बात करें तो पूरी दुनिया में 13 करोड़ से ऊपर लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं और 28.3 लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इस संक्रमण को रोकने के लिए वैक्सीनेशन किया जा रहा हैं। इसी के साथ ही लगातार रिसर्च करते हुए इसके बारे में और जानने की कोशिश कि जा रही हैं। हाल ही में एक रिसर्च में सामने आया कि 65 साल से अधिक उम्र के जो लोग कोरोना से संक्रमित होकर ठीक हो चुके हैं उन्हें दोबारा संक्रमित होने का ज्यादा खतरा हैं। आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए शोधकर्ताओं का कहना है कि पहली बार कोरोना से संक्रमित होने के बाद जो प्राकृतिक सुरक्षा मिलती है, उसपर भरोसा नहीं किया जा सकता है और खासकर बुजुर्गों के लिए, क्योंकि उनके गंभीर रूप से बीमार पड़ने का जोखिम सबसे अधिक होता है।

द लैंसेट नामक पत्रिका में बीते बुधवार को शोध के नतीजे प्रकाशित किए गए हैं, जिसमें बताया गया है कि कोरोना को एक बार मात दे चुके बुजुर्गों को दोबारा इस वायरस की चपेट में आने ज्यादा खतरा है। शोध के मुताबिक, कोरोना से रिकवर होने के बाद कम से कम छह महीने के लिए सुरक्षा तो मिल जाती है, लेकिन युवाओं के मुकाबले बुजुर्ग दोबारा संक्रमण के प्रति भी अधिक संवेदनशील हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2020 में डेनमार्क में आरटी-पीसीआर टेस्ट के नतीजों का अध्ययन किया गया था, जिसमें पता चला था कि 65 साल से कम उम्र के जो लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके थे, उनके दोबारा संक्रमित होने के बाद 80 फीसदी तक सुरक्षा मिली, जबकि 65 और उससे अधिक उम्र के लोगों को दोबारा संक्रमित होने के बाद महज 47 फीसदी ही सुरक्षा मिली।

विशेषज्ञ कहते हैं कि जो लोग पहले कोरोना की चपेट में आ चुके हैं, उनको भी वैक्सीन दी जानी चाहिए। वहीं शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए अधिक प्रभावी वैक्सीन के साथ वैश्विक टीकाकरण कार्यक्रम ही स्थायी समाधान है। हाल ही में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि 102 दिन में कोरोना की दो रिपोर्ट में से एक में संक्रमित होने और दूसरे में संक्रमित नहीं पाया जाना पुन: संक्रमण है। अध्ययन के अनुसार, सार्स-कोव-2 के संभावित पुन: संक्रमण की महामारी विज्ञान परिभाषा विकसित करने और भारत में इसकी मौजूदगी का पता लगाने के लिए जांच की गई थी। इस अध्ययन को 'एपिडेमियोलॉजी एंड इंफेक्शन' नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।