शोधकर्ताओं का दावा है कि कोरोना संक्रमण के खिलाफ शरीर में विकसित एंटीबॉडी कुछ समय बाद कमजोर पड़ने लगती है। इस प्रकार व्यक्ति के दोबारा संक्रमित होने की आशंका भी बनी रहती है। दरअसल, एंटीबॉडी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का अहम हिस्सा है जो कोशिकाओं में वायरस के प्रवेश को रोकती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों में जांच के दौरान एंटीबॉडी पाई गई थी, जून व सितंबर के दौरान उनमें 26% तक की गिरावट आई। अध्ययन में पता चला कि जो कोरोना संक्रमित नहीं थे, उनकी एंटीबॉडी 64% तक कमजोर हुई। इसके विपरीत जो कोरोना संक्रमित पाए गए थे, उनकी एंटीबॉडी में 22.3% तक गिरावट दर्ज की गई।
लंदन स्थित इंपीरियल कॉलेज के शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में 20 जून से 28 सितंबर के बीच कोरोना वायरस एंटीबॉडीज के लिए घर पर तीन राउंड फिंगर प्रिक टेस्ट करवा चुके 3.65 लाख रैंडमली सेलेक्टेड वयस्कों को शामिल किया गया था। इस दौरान उन्होंने पाया कि कोविड-19 को मात देने वाली एंटीबॉडी कुछ महीने बाद कमजोर पड़ने लगती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि तीन महीने के अंतराल में एंटीबॉडी वाले लोगों की संख्या 26.5% तक कम हो गई। यानी देश में एंटीबॉडी वाली आबादी का अनुपात छह फीसदी से घटकर 4.4% तक रह गया। अध्ययन में शामिल वायरोलॉजिस्ट प्रो। वेंडी बार्कलेय कहते हैं कि ठंड के दिनों में मौसमी वायरस पांव पसारता है। इससे सर्दी-खांसी जैसी बीमारियां होती हैं। यह वायरस छह महीने या साल भर बाद दोबारा संक्रमित कर सकता है। कोरोना वायरस की प्रवृत्ति भी कुछ ऐसी ही लगती है।
कॉलेज की इस परियोजना के निदेशक पॉल इलियट कहते हैं कि एक समय बाद उन लोगों की संख्या घटती गई, जिनमें जांच के दौरान एंटीबॉडी पाई गई थी। उन्होंने कहा, 'शरीर में एंटीबॉडी पाए जाने का मतलब यह नहीं है कि आपको कोरोना संक्रमण नहीं हो सकता। जब तक कि यह स्पष्ट नहीं होता कि आपके शरीर में उपलब्ध एंटीबॉडी का स्तर क्या है और वह कितने दिनों तक प्रभावी रहेगी, आपको सतर्क रहना होगा। ऐसे में जरूरी है कि कोरोना वायरस से सुरक्षा के लिए जारी गाइडलाइन का अनुपालन तत्परता से करते रहें, भले ही आपके शरीर में कभी एंटीबॉडी पाई गई हो। मास्क पहनने के साथ शारीरिक दूरी के नियम का भी पालन करना होगा।'
बुजुर्गो को खतरा ज्यादाएंटीबॉडी पाए जाने के बावजूद युवाओं के मुकाबले बुजुर्गो को कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। खासकर 75 वर्ष से ज्यादा उम्र वाले उन लोगों को जो कोरोना संक्रमण को लेकर संदिग्ध होते हैं।
क्या है एंटीबॉडी? एंटीबॉडी शरीर का वो तत्व है, जिसका निर्माण हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में वायरस को बेअसर करने के लिए पैदा करता है। संक्रमण के बाद एंटीबॉडीज बनने में कई बार एक हफ्ते तक का वक्त लग सकता है, इसलिए अगर इससे पहले एंटीबॉडी टेस्ट किए जाएं तो सही जानकारी नहीं मिल पाती है। एंटीबॉडी दो प्रकार के होते हैं। पहला एंटीबॉडी हैं - आईजीएम (इम्यूनोग्लोबुलिन एम) और आईजीजी (इम्यूनोग्लोबुलिन जी)।
दो प्रकार के एंटीबॉडी में क्या अंतर है? आईजीएम एंटीबॉडी (IgM Antibody)आईजीएम एंटीबॉडी किसी भी संक्रमण के लिए शरीर की प्रारंभिक प्रतिक्रिया हैं और वे संक्रमण के प्रारंभिक चरण में विकसित होते हैं। आमतौर पर, कोविड-19 संक्रमण के मामले में, आईजीएम वायरस पहले हफ्ते में पॉजिटीव होते हैं और छह सप्ताह के भीतर खत्म हो जाते हैं।
आईजीजी एंटीबॉडी (IgG Antibody)आईजीजी एंटीबॉडी में किसी भी संक्रमण का देर से पता चलता है। आईजीजी एंटीबॉडी लंबे समय तक रहता है।
एंटीबॉडी का पता कैसे लगाया जाता है? कोरोना की जांच के लिए एक और टेस्ट एंटीबॉडी टेस्ट है। एंटीबॉडी टेस्ट बहुत आसान है। इसके नतीजे जल्द आते हैं और ये कम खर्चीला भी होता है। इस टेस्ट के जरिए ये पता लागया जा सकता है कि व्यक्ति कोरोना वायस से संक्रमित हुआ है या नहीं। एंटीबॉडी टेस्ट में कई कोरोना संक्रमण का सटीक पता नहीं लग पाता है। एंटीबॉडी टेस्ट खून का सैंपल लेकर किया जाता है इसलिए इसे सीरोलॉजिकल टेस्ट भी कहते हैं। इसके नतीजे जल्द आते हैं और ये RT-PCR के मुकाबले कम खर्चीला भी होता है। इस टेस्ट की कीमत 500 रूपये होती है।