पूरी दुनिया कोरोना का सामना कर रही हैं और इसके संक्रमण को बढ़ने से रोकने के लिए दुनियाभर में वैक्सीन अभियान के तहत वैक्सीन लगाए जा रहे हैं ताकि लोगों में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी पनप सकें। हाल ही में इंग्लैंड में इसको लेकर अध्ययन हुआ जिसमें सामने आया कि 14 फीसदी लोगों में कोविड-19 के खिलाफ एंटीबॉडी मौजूद हो चुके हैं जो कि कोरोना वैक्सीन की प्रभावशीलता को दर्शाता हैं। इंपीरियल कॉलेज लंदन में संक्रामक रोगों के शोधकर्ता प्रोफेसर ग्राहम कुक कहते हैं, 'हम जानते हैं कि एंटीबॉडी पिछले संक्रमण के महत्वपूर्ण संकेत हैं और ये यह बताने में भी मदद कर सकते हैं कि लोगों के शरीर पर वैक्सीन का कोई असर हो रहा है या नहीं। लेकिन हमें एंटीबॉडीज, गंभीर बीमारी और संक्रमण के प्रभावों के बीच के लिंक को बेहतर ढंग से समझने के लिए और अधिक शोध करने की जरूरत है।'
यह अध्ययन इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने एक लाख 55 हजार लोगों पर किया है। दरअसल, एंटीबॉडी संक्रमण या टीकाकऱण के बाद शरीर द्वारा उत्पादित सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा अणु है। यह अध्ययन इंग्लैंड में कोरोना वैक्सीन की प्रभावशीलता को भी दर्शाता है। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि संक्रमण या टीकाकरण से एंटीबॉडीज कितने समय तक शरीर में मौजूद होते हैं और कोविड-19 से सुरक्षा प्रदान करते हैं। लोगों के शरीर में एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए 26 जनवरी से आठ फरवरी 2021 के बीच नमूने लिए गए थे और उनका परीक्षण किया गया था। हालांकि अभी तक इस अध्ययन की समीक्षा नहीं की गई है।
इस अध्ययन में 18 हजार वैसे लोग भी शामिल थे, जिन्हें कोरोना वैक्सीन की कम से कम एक खुराक मिली थी। अध्ययन के मुताबिक, जिन लोगों को कोरोना का टीका लगाया गया था, उनमें से 91 फीसदी में फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन की दो खुराक लेने के बाद एंटीबॉडी मौजूद थे। अध्ययन में यह भी पाया गया कि 30 से कम उम्र के लोगों में एक खुराक लेने के बाद भी एंटीबॉडी मौजूद थे। इंपीरियल कॉलेज के प्रोफेसर हेलेन वार्ड कहते हैं, 'यह देखना बहुत ही उत्साहजनक रहा कि अधिकांश लोग एक खुराक के बाद भी डिटेक्टेबल यानी पता लगाने योग्य एंटीबॉडी प्रतिक्रिया विकसित करते हैं। हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि लोगों के लिए टीके की दूसरी खुराक लेना बहुत जरूरी है, जब इसकी पेशकश की जाती है।'