आहिस्ता-आहिस्ता शशि कपूर का गुजर जाना

अपने अंतिम दिनों में 2017 ने बॉलीवुड को झटका दे दिया। यह झटका किसी फिल्म के असफल होने का नहीं बल्कि हिन्दी सिने उद्योग के ख्यातनाम अभिनेता शशि कपूर के निधन का है। मुंबई के कोकिला बेन अस्पताल में 4 दिसम्बर की शाम बलबीर पृथ्वीराज कपूर, जिन्हें दुनिया शशि कपूर के नाम से जानती है, ने अपनी जिन्दगी की अंतिम सांसें ली। बतौर बाल कलाकार अपना फिल्म करियर शुरू करने वाले शशि कपूर ने हिन्दी अंग्रेजी फिल्मों में स्वयं को अभिनेता के साथ-साथ निर्माता निर्देशक के तौर पर स्थापित किया था। वर्ष 1941 से अपना करियर शुरू करने वाले शशि कपूर 1999 तक फिल्मों में सक्रिय रहे। 61 वर्ष की आयु में उन्होंने फिल्मों से संन्यास ले लिया था।

पृथ्वीराज कपूर के सबसे छोटे पुत्र शशि कपूर का जन्म 18 मार्च 1938 को ब्रिटिश राज के दौरान कलकत्ता में हुआ था। उनके दो बड़े भाई राजकपूर और शम्मी कपूर थे। जेनिफर कपूर के पति शशि कपूर के दो पुत्र करण कपूर, कुणाल कपूर और एक पुत्री संजना कपूर हैं। वर्ष 2011 में सिनेमा में दिए अपने योगदान के लिए पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 2014 में उन्हें दादा साहिब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना गया। यह पुरस्कार उन्हें 2015 में प्रदान किया गया। पृथ्वीराज कपूर और राजकपूर के बाद शशि कपूर, कपूर परिवार के तीसरे ऐसे सदस्य थे जिन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया गया था।

बाल कलाकार के तौर पर चार फिल्मों - आग (1948), संग्र्राम (1950), आवारा (1951) और दाना पानी (1953) में काम करने वाले शशि कपूर ने फिल्मों में प्रवेश करने से पूर्व सहायक निर्देशक के तौर पर पोस्ट बॉक्स 999, गेस्ट हाउस (1959), दुल्हा दुल्हन और श्रीमान सत्यवादी में काम किया। दुल्हा दुल्हन और श्रीमान सत्यवादी के नायक उनके बड़े भाई राजकपूर थे।

वर्ष 1961 में 'धर्मपुत्र' से नायक के रूप में अपना करियर शुरू करने वाले शशि कपूर ने 116 फिल्मों में नायक के रूप में काम किया, जिनमें से 61 फिल्मों में वे अकेले नायक थे और 55 फिल्मों में वे दूसरे नायकों के साथ काम करते नजर आए। इसके अतिरिक्त 21 फिल्मों में वे उन्होंने स्पोर्टिंग एक्टर और 7 फिल्मों में विशेष भूमिका में नजर आए। शशि कपूर 60, 70 और मध्य 80 के दशक में बॉलीवुड के चर्चित सितारों में शुमार रहे। 1961 में उन्होंने अंग्रेजी फिल्मों में काम करना शुरू किया था। वे हिन्दी सिनेमा के उन सितारों में शामिल थे जिन्होंने सबसे पहले अन्तर्राष्ट्रीय फिल्मों में काम किया था।

फिल्म निर्माता के तौर पर शशि कपूर ने हिन्दी सिनेमा को कुछ बेहतरीन फिल्में प्रदान की। उन्होंने जुनून (1978 निर्देशक श्याम बेनेगल), कलयुग, 36 चौरंगी लेन (1981), विजेता (1982) और उत्सव (1984) बनाई। यह सभी फिल्में अपने विषय और प्रस्तुतीकरण के कारण आज भी दर्शकों में एक पहचान रखती हैं। कलयुग, विजेता और उत्सव में उन्होंने अपनी नायिका रेखा को लिया। 'उत्सव' की जिस भूमिका से शेखर सुमन ने अपना करियर शुरू किया था, वह सबसे पहले अमिताभ बच्चन को दी गई थी, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया था। वर्ष 1991 में उन्होंने अमिताभ बच्चन और अपने भतीजे ऋषि कपूर को लेकर 'अजूबा' नामक फिल्म का निर्माण व निर्देशन किया। यह उनकी पहली और आखिरी निर्देशित फिल्म थी। 'कलयुग' और 'विजेता' के जरिए उन्होंने अपने छोटे बेटे कुणाल कपूर को स्थापित करने का प्रयास किया था लेकिन वे सफल नहीं हो सके। कुणाल कपूर को निर्देशक इस्माइल श्रॉफ ने 'आहिस्ता-आहिस्ता' में पद्मिनी कोल्हापुरी के साथ दर्शकों से रूबरू करवाया था।

लम्बे समय से बीमार चल रहे शशि कपूर को 3 दिसम्बर को कोकिला बेन अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, जहाँ उन्होंने 4 दिसम्बर को अंतिम सांस ली।