दो साल के बेटे की मौत से टूट गए थे सतीश कौशिक, सरोगेसी से बने पिता, पहली फिल्म पिटी तो आने लगे सुसाइड के ख्याल

दिग्गज एक्टर और डायरेक्टर सतीश कौशिक का 67 साल की उम्र में निधन हो गया। सतीश कौशिक का जन्म 13 अप्रैल, 1956 को हरियाणा के महेंद्रगढ़ में हुआ था। उन्होंने 1972 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक किया। वह नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा एंड फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के पूर्व छात्र थे और उन्होंने थिएटर में अपना अभिनय करियर शुरू किया था। कम ही लोग जानते हैं कि सतीश कौशिक ने अपने करियर की शुरुआत साल 1983 में फिल्म मासूम से बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर की थी। इसी फिल्म से उन्होंने एक्टिंग की दुनिया में भी कदम रखा था। इसके बाद फिल्म 'रूप की रानी चोरों का राजा' से उन्होंने एक डायरेक्टर के तौर पर डेब्यू किया। ये फिल्म प्रोड्यूस की थी बोनी कपूर ने और फिल्म में स्टार थे अनिल कपूर-श्रीदेवी। ये अपने जमाने की सबसे महंगी फिल्म थी। इसका एक सीन जो चलती ट्रेन से हीरे चोरी करने वाला था, कहा जाता है 1992-93 में इस अकेले सीन को फिल्माने में 5 करोड़ रुपए लगे थे। भारी-भरकम बजट और अच्छी स्टार कास्ट के बाद भी फिल्म चली नहीं। इसकी असफलता से दुःखी सतीश के मन में सुसाइड तक के ख्याल आने लगे थे। खुद उन्होंने एक टीवी शो के दौरान इसका खुलासा किया था।

बेटे की मौत से टूट गए थे

सतीश कौशिक की शादी साल 1985 में शशि कौशिक से हुई थी। शादी के कई साल बाद उनके घर में बेटे का जन्म हुआ था। लेकिन अफसोस फिल्मी पर्दे पर लोगों को हंसाने वाले सतीश कौशिक की जिंदगी में एक हादसा हुआ, जिसने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया था। 1996 में उनके 2 साल के बेटे का निधन हो गया था। बेटे की मौत का उन्हें गहरा सदमा लगा था, जिससे निकलने में उन्हें काफी समय लगा। इसके काफी समय बाद कौशिक के घर में खुशियां आ पाईं। उनके घर 15 जुलाई 2012 को बेटी वंशिका का जन्म सरोगेसी से हुआ था। उस वक्त सतीश 57 साल के थे। उनके घर में यह खुशी बेटे शानू की मौत के 16 साल बाद आई थी। सतीश ने बेटी के जन्म की खुशखबरी साझा करते हुए अपने बयान में कहा था, 'यह एक बच्चे के लिए हमारे लंबे और दर्दनाक इंतजार का अंत है।'

गुज़ारे के लिए एक कम्पनी में नौकरी की।

एक इंटरव्यू में सतीश ने कहा था- मैं आया तो एक्टर बनने ही था, लेकिन एनएसडी और एफटीआईआई से पढ़ा लिखा एक्टर होने के बाद भी काम नहीं मिल रहा था। मैं साधारण परिवार से था। गुज़ारे के लिए एक कम्पनी में नौकरी की। वहां मेरा काम था दीवार पर लटके यार्न को लकड़ी से साफ करना। एक साल तक मैंने यह भी किया। कलेजा फट पड़ता था यह सोचकर कि दिल्ली से यहां मैं करने क्या आया था और कर क्या रहा हूं। फिर असिस्टेंट डायरेक्शन किया और 3 प्रोजेक्ट बाद डायरेक्शन का ऑफर मिला। नियति का खेल ही ऐसा है। हम मांगते कुछ और हैं, मिलता कुछ और है, लेकिन मेरा मानना है कि जो भी करो पूरी ताक़त झोंक दो।

इन फिल्मों के लिए मिला बेस्ट कॉमेडियन का अवॉर्ड

फिल्म ‘राम-लखन’ (1989) और ‘साजन चले ससुराल’ (1996) के लिए सतीश को दो बार बेस्ट कॉमेडियन का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिल चुका है। एक्टर के अलावा वो डायरेक्टर-प्रोड्यूसर भी है। कई फिल्मों में एक्टिंग कर चुके सतीश को उनके फनी डायलॉग्स के लिए भी जाना जाता है।

सतीश कौशिक की यादगार फिल्में


सतीश कौशिक की यादगार फिल्मों की बात करें तो उन्होंने 'जाने भी दो यारों', 'उत्सव', 'सागर', 'राम लखन', 'स्वर्ग', 'जमाई राजा', 'अंदाज', 'साजन चले ससुराल', 'दीवाना मस्ताना', 'मिस्टर एंड मिसेज खिलाड़ी', 'आंटी नंबर वन', 'बड़े मियां छोटे मियां', 'आ अब लौट चलें', 'हसीना मान जाएगी', 'दुल्हन हम ले जाएंगे', 'हद कर दी आपने', 'क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता', 'हम किसी से कम नहीं', 'अतिथि तुम कब जाओगे', 'उड़ता पंजाब 'और 'फन्ने खां' जैसी फिल्मों में काम किया है।