आपने अकसर फिल्मों के ग्रेडिंग सिस्टम के बारे में सुना होगा अलग अलग ग्रेड की फ़िल्में होती है। कई बी ग्रेड फिल्मों के पोस्टर भी देखे होंगे जो कि देखने एकदम अश्लील होते हैं। बॉलीवुड में बनने वाली इन फिल्मों की ग्रेडिंग कैसे की जाती है और किन मापदंडो के आधार पर इन फिल्मों को अलग अलग ग्रेडिंग मिलती है। आज हम आपको इस लेख में ये सब बाते बताने जा रहे हैं। मूल रूप से ग्रेडिंग का आधार फिल्मों का बजट और तकनीक पर आधारित होता है। इसके आलावा इनमे काम करने वाले कलाकारों के उपर भी निर्भर करता है किस तरह के कलाकार फिल्म में काम कर रहें हैं। हालांकी कई नामी कलाकारों ने भी बी ग्रेड की फिल्मों में काम किया है और कई कम बजट की फ़िल्में भी ए ग्रेड की केटेगरी में रिलीज़ हुई हैं। आईये आपको बताते हैं इन फिल्मों के ग्रेडिंग सिस्टम के बारे में :
A ग्रेड फ़िल्में
इस केटेगरी में मुख्य धारा की फ़िल्में आती है जिनका बजट अधिक होता है और इसमें काम में ली गई तकनीक , कैमरे आदि भी उच्च तकनीक वाले होते है। इसके साथ ही इन फिल्मों को बड़े स्तर अर्थात जयादा सिनेमाघरों में एक साथ रिलीज़ किया जाता है। अच्छे बजट होने के कारन अधिकतर इनमें नामी और स्थापित कलाकर काम करते हैं।
B ग्रेड फ़िल्में
इन फिल्मो का बजट A ग्रेड फिल्मों से कम होता है और कंटेंट भी बुरे स्तर का अधिकतर अश्लील दृश्यों से भरा हुआ होता है। इस प्रकार की फ़िल्में छोटे कस्बाई सिनेमाघरों में रिलीज़ होती है जिनका अलग ही दर्शक वर्ग होता है। काम में ली जाने वाली तकनीक भी हल्की होती है जिसका अधिक ध्यान नहीं रखा जाता। वयस्क दर्शक वर्ग के लिए रिलीज़ होने वाली इन फिल्मों के कंटेंट में अधिकतर उन बातों का चित्रण साफ़ साफ़ किया जाता है जो A ग्रेड फिल्मों में नहीं बताई जाती है।
C ग्रेड फ़िल्में
इस ग्रेड वाली फिल्मों का बजट बहुत ही कम होता है जिनमे कलाकारों का भी कोई स्तर नहीं होता। आमतोर पर घिसे पिटे कैमरों से बना दी जाने वाली इन फिल्मों का कंटेंट B ग्रेड फिल्मो से भी गिरा हुआ रहता है। इस तरह की फ़िल्में बहुत कम स्तर पर रिलीज़ की जाती है और सेंसर बोर्ड भी इन्हें कई सरे कट के बाद ही रिलीज़ करता है। इस तरह की फिल्मों के कलाकार बिना स्तर वाले होते है जिनका बॉलीवुड में कोई वजूद नहीं होता।