Temple Run और Candy Crush के दौर में हम पुराने खेलों को भूल ही चुके हैं। ये वो खेल हैं जिन्हें हम बचपन में भाई-बहन और दोस्तों के साथ खेला करते थे। गर्मी की छुट्टी हो या स्कूल में लंच टाइम, ये छोटे-छोटे खेल हमारे डेली रूटीन में शामिल हुआ करते थे। इन खेलों के लिए न स्मार्टफोन की ज़रूरत होती थी, न और किसी महंगे गैजेट की। यह कहना गलत नहीं होगा कि वक्त के साथ बहुत बदल गया है बचपन और बचपन के खेल। दिन-दिन भर की धमाचौकडी, तरह तरह के खेल और छोटी-छोटी तकरारें अब कहां बच्चों के बीच देखने को मिलती हैं। इस न्यू एडवांस वर्ल्ड में सभी बच्चे अब तरह-तरह के एप्प के साथ खेलते नज़र आते हैं। सही मायने में अब बचपन की पूरी तस्वीर ही बदल गई है। आइए याद करतें हैं उन खेलों को जब बचपन का मतलब कुछ अलग हुआ करता था।
* गिल्ली डंडा :
ग्रामीण क्षेत्रों में गिल्ली डंडा सबसे लोकप्रिय खेल है। यह तो सबसे ज्यादा प्रिय खेल हुआ करता था, जहां मौका मिला नहीं कि बस हो गया शुरू। इस खेल में गिल्ली एक स्पिंडल के आकार की होती है और साथ में होता है एक छोटा सा डंडा। गिल्ली को डंडे से जो जितनी दूर तक फेंक सके, उसी के आधार पर स्कोर का निर्णय होता है। इस खेल के अपने-अपने स्थानीय नियम होते हैं।
* कंचा :
कंचे खेलने के चक्कर में तो कई बार मार खानी पड़ती थी। कंचा एक परम्परागत खेल है। गांव की गलियों में इसे बच्चे आसानी से खेलते हुए मिल जाते थे। इसमें एक गोली से दूसरी गोली को निशाना लगाना होता है और निशाना लग गया तो वह गोली आपकी हो जाती है। इसके अलावा एक गड्ढा बनाकर उसमें कुछ दूरी से कंचे फेंके जाते हैं। जिसके कंचे सबसे ज्यादा गिनती में गड्ढे में जाते हैं वह जीतता है।
* पिठ्ठू गरम :
इसे शितौलिया भी कहा जाता हैं। इस खेल को खेलने के लिए सात चपटे पत्थर और एक गेंद की जरुरत होती है। इसमें पत्थरों को एक के ऊपर एक जमाया जाता है। इस खेल में दो टीमें भाग लेती हैं। एक टीम का खिलाड़ी पहले गेंद से पत्थरों को गिराता है और फिर उसकी टीम के सदस्यों को पिट्ठू गरम बोलते हुए उसे फिर से जमाना पड़ता है। इस बीच दूसरी टीम के ख़िलाड़ी गेंद को पीछे से मारते हैं। यदि वह गेंद पिट्ठू गरम बोलने से पहले लग गयी तो टीम बाहर।
* आंख-मिचौली :
यह बहुत मजेदार गेम होता है। इसमें एक प्रतिभागी की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और उसे दूसरे को पकड़ना होता है। पकड़े जाने पर दूसरे खिलाड़ी को इसी प्रक्रिया से गुजरना होता है। इस गेम को एक और तरीके से खेला जाता है। इस दूसरे तरीके में एक खिलाड़ी की आंखों को बंद कर दिया जाता है और बाकी खिलाड़ी उसके सिर पर एक-एक करके थपकी मारते हैं। सबसे पहले थपकी मारने वाले की पहचान हो जाने पर उसे आंखे बंद करनी होती है। मजे की बात तो यह है कि इस खेल में कितने भी लोग खेल सकते हैं।
* पोसंपा :
पोसंपा भई पोसंपा, लाल किले में क्या हुआ, सौ रूपए की घड़ी चुराई, अब तो जेल में जाना पड़ेगा, जेल की रोटी खानी पडे़गी। इस गीत से आपको कुछ याद आता है। मुझे स्कूल के वो दिन याद आते हैं, जिसमें हम स्कूल जाते ही बैग को क्लास में रखकर भागते थे पोसंपा खेलने। इसमें दो बच्चे अपने हाथों को जोड़कर एक चेन बना लेते थे और इसमें से अन्य साथियों को गुजरना पड़ता था।
* हॉप स्कॉच/ टिपरी/ स्टापू :
इसके लिए फर्श पर चॉक से नीचे दिए गए डायग्राम की तरह हॉपस्कॉच का पैटर्न बनाए। - खिलाड़ी जमीन पर बने इस पैटर्न पर कोई स्टापू (छोटा पत्थर) फेंकता है। इसके बाद इस पैटर्न पर कूदता है। सिंगल बॉक्स पर एक पैर से और डबल पर दोनों से। अगर खिलाड़ी का पैर या स्टापू लाइन पर आ जाए या उसका बैलेंस चूक जाए तो उसकी टर्न खत्म हो जाती है और साथी खिलाड़ी की बारी आती है।