‘चाँदनी’ और ‘नगीना’ के लिए पहली पसन्द नहीं थीं ‘श्रीदेवी’

यश चोपड़ा जिन दिनों अपनी फिल्म ‘चाँदनी’ बनाने का विचार कर रहे थे, उनके जेहन में इस किरदार के लिए ‘रेखा’ का अक्स घूम रहा था। ‘चाँदनी’ रेखा के पास गई भी लेकिन किन्हीं परिस्थितियों के चलते उन्होंने इस फिल्म में काम करने से इंकार कर दिया। यह शायद 1987-88 की बात है। तब तक हिन्दी फिल्मों के शीर्ष पर श्रीदेवी छा चुकी थीं। यश चोपड़ा ने अपनी इस महत्त्वाकांक्षी फिल्म में चाँदनी के लिए श्रीदेवी को चुना।

यह पहला मौका था जब उन्होंने उनके साथ काम किया। ‘चाँदनी’ ने श्रीदेवी को और ऊपर उठाया और यश चोपड़ा को उनकी अगली फिल्म ‘लम्हे’ की नायिका दिलवायी।

कुछ ऐसी ही परिस्थितियाँ हरमेश मल्होत्रा के साथ घटी थी। हिन्दी फिल्मों में हमेशा सुपर सितारों के साथ काम करने वाले हरमेश मल्होत्रा को कभी वो सफलता नहीं मिली जिसकी वो उम्मीद करते थे। अपने निर्देशकीय करियर के अन्तिम दिनों में उन्होंने दंत कथाओं पर आधारित एक फिल्म ‘नगीना’ का निर्माण किया। इस फिल्म ने उन्हें श्रेष्ठ निर्देशकों में शामिल करवाया था।

इस फिल्म का कथानक इच्छाधारी नागिन पर था। मूल रूप से यह 1970 में आई राजकुमार कोहली की फिल्म ‘नागिन’ पर आधारित थी, जो इंसानी शरीर में बदल जाती है। इस फिल्म की कथा पटकथा संवाद रवि कपूर, जगमोहन कपूर और डॉ. अचला नागर ने लिखे थे। हरमेश मल्होत्रा को इस बात का कतई अहसास नहीं था कि उन पर नाग देवता की मेहरबानी होने वाली है।

1986 के नवम्बर माह में प्रदर्शित हुई इस फिल्म को पहले दिन दर्शकों का वैसा रेस्पाँस नहीं मिला, जो श्रीदेवी की अन्य फिल्मों को मिलता है। लेकिन धीरे-धीरे इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए स्वयं को उस वर्ष की दूसरी सबसे बड़ी हिट फिल्म साबित किया। इच्छाधारी नागिन के रूप में श्रीदेवी ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से क्रोध की जो ज्वाला दिखायी वो नायाब था। इस फिल्म की सफलता में श्रीदेवी के अभिनय के साथ फिल्म के मुख्य पात्र अमरीश पुरी की भी महत्ती भूमिका थी।

इस फिल्म का कथानक इच्छाधारी नागिन पर था। मूल रूप से यह 1970 में आई राजकुमार कोहली की फिल्म ‘नागिन’ पर आधारित थी, जो इंसानी शरीर में बदल जाती है। इस फिल्म की कथा पटकथा संवाद रवि कपूर, जगमोहन कपूर और डॉ. अचला नागर ने लिखे थे। हरमेश मल्होत्रा को इस बात का कतई अहसास नहीं था कि उन पर नाग देवता की मेहरबानी होने वाली है।

1986 के नवम्बर माह में प्रदर्शित हुई इस फिल्म को पहले दिन दर्शकों का वैसा रेस्पाँस नहीं मिला, जो श्रीदेवी की अन्य फिल्मों को मिलता है। लेकिन धीरे-धीरे इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए स्वयं को उस वर्ष की दूसरी सबसे बड़ी हिट फिल्म साबित किया। इच्छाधारी नागिन के रूप में श्रीदेवी ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से क्रोध की जो ज्वाला दिखायी वो नायाब था। इस फिल्म की सफलता में श्रीदेवी के अभिनय के साथ फिल्म के मुख्य पात्र अमरीश पुरी की भी महत्ती भूमिका थी।

आश्चर्यजनक बात यह है कि हरमेश मल्होत्रा ने सबसे पहले इस फिल्म के लिए जयाप्रदा को प्रस्ताव दिया था। श्रीदेवी और जयाप्रदा का हिन्दी फिल्मों में आना एक ही समय हुआ था। दोनों सफल थी, लेकिन इनकी आपस में बनती नहीं थी। जयाप्रदा उन दिनों अपनी अन्य फिल्मों में व्यस्त थी, जिसके चलते यह फिल्म श्रीदेवी के पास गई।

हरमेश मल्होत्रा द्वारा हिन्दी फिल्मों में सीक्वल की शुरूआत की गई थी। 1986 में प्रदर्शित हुई ‘नगीना’ के बाद उन्होंने इसका दूसरा भाग ‘निगाहें’ के नाम से बनाया था। यह शुद्ध रूप से हिन्दी सिनेमा की पहली सीक्वल फिल्म थी, जिसका कथानक वहीं से शुरू होता है जहाँ पर पहला खत्म हुआ था।