हिन्दी सिनेमा में अनगिनत गीतकारों ने अपने गीतों से अपनी छाप छोड़ी है लेकिन इन गीतकारों में एक गीतकार ऐसा भी रहा है, जिसने फिल्मों के शीर्षक पर सबसे ज्यादा गीत लिखे। और आश्चर्य की बात यह है कि उनके लिखे शीर्षक गीतों ने लोकप्रियता की ऊँचाईयों को छुने में सफलता प्राप्त की।
यह गीतकार थे—हसरत जयपुरी—जिनका जन्म राजस्थान की राजस्थानी जयपुर में 15 अप्रैल 1922 को हुआ था। हिन्दी फिल्मों में जब भी शीर्षक (टाइटल) गीतों का जिक्र होता है गीतकार हसरत जयपुरी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। अपने सिने करियर के दौरान हसरत जयपुरी ने वैसे तो हर तरह के गीत लिखे लेकिन फिल्मों के टाइटल पर गीत लिखने में उन्हें महारत हासिल थी। पचास से लेकर अस्सी के दशक को हिन्दी सिनेमा का स्वर्ण युग (गोल्डन एरा) कहा जाता है। इस दौर में हिन्दी फिल्मों के टाइटल गीत लिखना बड़ी बात समझी जाती थी। निर्माताओं को जब भी टाइटल गीत की जरूरत होती थी, हसरत जयपुरी से गीत लिखवाने की गुजारिश की जाती थी। उनके लिखे टाइटल गीतों ने कई फिल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
हसरत जयपुरी का असल नाम इकबाल हुसैन था। जयपुर में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने अपने दादा फिदा हुसैन से उर्दू और फारसी में तामील हासिल की। वर्ष 1940 में नौकरी की तलाश में हसरत जयपुरी ने मुम्बई का रूख किया और आजीविका चलाने के लिए वहां बस कंडक्टर के रूप में नौकरी करने लगे। इस काम के लिये उन्हें मात्र 11 रुपए प्रति माह वेतन मिला करता था। इस बीच उन्होंने मुशायरों के कार्यक्रम में भाग लेना शुरू किया। मुशायरों में वे हसरत जयपुरी के नाम से जाने जाते थे। ऐसे ही एक कार्यक्रम में फिल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ने उनके गीतों को सुना। इन्हें सुनने के बाद उन्होंने अपने बड़े बेटे राजकपूर को हसरत जयपुरी से मिलने के लिए कहा।
राजकपूर उन दिनों अपनी फिल्म ‘बरसात’ के लिए गीतकार और संगीतकार की तलाश कर रहे थे। ओपेरा हाउस में राजकपूर हसरत जयपुरी से मिले और उन्हें फिल्मों में गीत लिखने का मौका मिला। राजकपूर की ‘बरसात’ से हिन्दी सिनेमा को दो दिग्गज व्यक्ति मिले—गीतकार हसरत जयपुरी और संगीतकार शंकर जयकिशन—इन दोनों ने राजकपूर के बैनर आर.के. फिल्म्स से अपने करियर की शुरूआत की। राजकपूर के कहने पर शंकर जयकिशन ने हसरत जयपुरी को एक धुन सुनाई और उस पर उनसे गीत लिखने को कहा। धुन के बोल कुछ इस प्रकार थे ‘अंबुआ का पेड़ है वहीं मुंडेर है, आजा मेरे बालमा काहे की देर है’ शंकर जयकिशन की इस धुन को सुनकर हसरत जयपुरी ने गीत लिखा, ‘‘जिया बेकरार है, छाई बहार है, आजा मेरे बालमा तेरा इंतजार है’’।
वर्ष 1949 में प्रदर्शित फिल्म ‘बरसात’ की सफलता में इसके गीत-संगीत का अहम् योगदान था। हजरत जयपुरी हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठ गीतकारों में शामिल हो गए। राजकपूर के साथ 1949 में शुरू हुआ उनका यह सफर 1971 तक बदस्तूर जारी रहा। 1971 में संगीतकार जयकिशन की मृत्यु और राजकपूर की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ और ‘कल आज और कल’ की बॉक्स आफिस पर नाकामयाबी के बाद राजकपूर ने हसरत जयपुरी की जगह आनंद बख्शी को अपनी फिल्मों के लिये लेना शुरू कर दिया। राजकपूर के साथ आनन्द बक्षी की पहली फिल्म ‘बॉबी’ थी और यही लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ उनकी पहली फिल्म थी।
हालांकि अस्सी के दशक में राजकपूर ने अपनी फिल्म ‘प्रेम रोग’ के गीतों के लिए हसरत जयपुरी से सम्पर्क किया था, लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद हसरत जयपुरी ने राजकपूर के लिए वर्ष 1985 में प्रदर्शित फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ के लिए ‘सुन साहिबा सुन प्यार की धुन ओ मैंने तुझे चुन लिया तू भी मुझे चुन’ लिखा। इस गीत ने उस दौर में लोकप्रियता की तमाम ऊँचाईयों को पार किया।
राजकपूर और हसरत जयपुरी का एक रोचक किस्सा है। बात उन दिनों की है जब राजकपूर ‘संगम’ का निर्माण कर रहे थे। इस फिल्म के गीतों की जिम्मेदारी हसरत जयपुरी को थी। उन्होंने कई गीत लिखे। फिल्म में एक गीत ‘प्रेम पत्र’ को लेकर था। राजकपूर ने इस गीत के लिए हसरत जयपुरी की उन लाइनों का इस्तेमाल किया जो हसरत जयपुरी ने अपनी प्रेमिका के लिए लिखीं थी। इस गीत के बोल थे—ये मेरा प्रेम पत्र पढक़र तुम नाराज ना होना, कि तुम मेरी जिन्दगी हो, कि तुम मेरी बन्दिगी हो।’ कहते हैं असल जिन्दगी में हसरत साहब को राधा नामक एक लडक़ी से प्यार हो गया था, जो उन्हें मिल नहीं पायी थी और हसरत जयपुरी ने अपनी भावनाओं को इस पत्र के जरिये व्यक्त करना चाहा था।
हसरत जयपुरी ने तीन दशक लंबे अपने सिने करियर में 300 से अधिक फिल्मों के लिए लगभग 2000 गीत लिखे। हसरत जयपुरी को दो बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । उन्हें पहला फिल्मफेयर पुरस्कार वर्ष 1966 में आई राजेन्द्र कुमार, वैजयन्ती माला अभिनीत फिल्म ‘सूरज’ के गीत—बहारों फूल बरसाओ, मेरा मेहबूब आया है, मेरा मेहबूब आया है—के लिए मिला था। इस गीत को मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज दी थी। इसके बाद उन्हें दूसरा फिल्मफेयर पुरस्कार 1972 में रमेश सिप्पी की पहली निर्देशित फिल्म ‘अंदाज’ के गीत—जिन्दगी इक सफर है सुहाना यहाँ कल क्या हो, किसने जाना—के लिए मिला। इस गीत को राजेश खन्ना और हेमा मालिनी पर फिल्माया गया था।
इसके अतिरिक्त हसरत जयपुरी वल्र्ड यूनिवर्सिटी टेबुल के डाक्ट्रेट अवार्ड और उर्दू कान्फ्रेंस में जोश मलीहाबादी अवार्ड से भी सम्मानित किए गए। जितेन्द्र, मालासिन्हा और राजकुमार अभिनीत फिल्म ‘मेरे हुजूर’ में हिन्दी और ब्रज भाषा में रचित गीत ‘झनक झनक तोरी बाजे पायलिया’ के लिये वह अम्बेडकर अवार्ड से सम्मानित किए गए। इस गीत को सुर दिया था मन्ना डे साहब ने। अपने गीतों से तीन दशक तक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाला यह शायर और गीतकार 17 सितबर 1999 को इस दुनिया को अलविदा कह गया। जब भी हसरत जयपुरी का जिक्र आता है उनके द्वारा लिखे गीत ‘तुम मुझे यूं भुला न पाओगे. . .जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे. . .संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे’ की पंक्तियाँ याद आने लगती हैं।