फन्ने खां Movie Review : सपनों के पीछे भागते-भागते भटक गई फिल्म की कहानी...

बाप-बेटी के रिश्ते, उम्मीद और सिंगर बनने के ईर्द-गिर्द घुमती है फन्ने खां। एक बाप जो अपनी बेटी के सिंगिंग टैलेंट को एक वाजिब प्लेटफॉर्म दिलाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। फिल्म का डायरेक्शन किया है अतुल मांजरेकर ने जो इससे पहले 11 साल तक ओमप्रकाश मेहरा को असिस्ट कर रहे हैं। बेल्जियम फिल्म 'एवेरीबडी इज फेमस' से प्रेरित है। फिल्म का ट्रेलर काफी पसंद किया गया था लेकिन क्या फिल्म दर्शकों को प्रभावित करने में कामयाब हो पाई है ? आइए जानते हैं…

फिल्म की कहानी

प्रशांत कुमार उर्फ फन्ने खां (अनिल कपूर) एक फैक्ट्री में काम करता है और अपने चॉल के ऑर्केस्ट्रा में गाना गाता है। वह खुद मोहम्मद रफी नहीं बन पाता है। लेकिन, बेटी के जन्म लेते ही उसे लता मंगेशकर बनने का सपना देखने लगता है और उसका नाम भी लता (पीहू सांद) रखता है। लता बड़ी होकर न सिर्फ एक अच्छी सिंगर बल्कि एक अच्छी डांसर भी होती है। लेकिन, अपने वजन के कारण उसका कई बार सरेआम मजाक बनाया जाता है।

अपने पिता से अलग लता मंगेशकर नहीं बल्कि बेबी सिंह उर्फ सुमित्रा (ऐश्वर्या राय बच्चन) जैसी सिंगर बनना चाहती हैं। फन्ने खां की लाइफ में भूचाल तब आता है जब उसकी फैक्ट्री बंद हो जाती है और उसे टैक्सी चलाने के लिए मजबूर हो जाता है। इसी दौरान बेबी सिंह उसकी टैक्सी में बैठती है और वह अपने दोस्त अधीर (राजकुमार राव) के साथ मिलकर उसे किडनैप कर लेता है। लेकिन, उसका मकसद पैसे नहीं बल्कि बेबी सिंह के जरिए बेटी को एक मौका दिलाना है। अब बेटी के सपने पूरा करने के लिए और एक स्टार सिंगर को किडनैप करने के लिए फन्ने खां को क्या-क्या झेलना पड़ता है। यही है इस फिल्म की कहानी।

कलाकारों की अदाकारी

अनिल कपूर सालों से अदाकारी करते आ रहे हैं और वो बहुत ही आसानी से किरदार की नब्ज को पकड़ लेते हैं। लीड हीरो से अब कैरेक्टर रोल में अनिल कपूर भले ही शिफ्ट हो गए हैं। लेकिन, स्क्रीन में उनकी टाइमिंग अभी भी दमदार है। सालों में उन्होंने कई सारी यादगार परफॉर्मेंसेज दी हैं और फन्ने खां भी उसी लिस्ट में शामिल होगी। एक गरीब मजबूर बाप के किरदार को उन्होंने खूबसूरती से जिया है। रात-दिन बेटी के ताने सुनने के बाद भी उसकी एक मुस्कान पर जान न्यौछावर करने वाले प्रशांत को अनिल कपूर पर्दे पर जिंदा कर देते हैं।

राजकुमार राव के लिए अधीर का किरदार निभाना मुश्किल नहीं था क्योंकि यह उनकी उम्र का ही है। हालांकि उनकी सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि उन्हें ऐश्वर्या राय बच्चन के साथ पर्दे पर इश्क फरमाना था। ऐश्वर्या राय बच्चन की जो शख्सियत है, उसके सामने बड़े से बड़ा कलाकार झिझक जाए लेकिन राजकुमार राव अपनी क्यूट वेबकूफियों के दम पर बाजी मार जाते हैं।

ऐश्वर्या राय बच्चन को स्क्रीन पर बेबी सिंह के अवतार में देखना सबसे मजेदार है। वो इस फिल्म की जान हैं। जब-जब वो पर्दे पर आती हैं, लोगों के चेहरे पर चमक आ जाती है। ऐश को बेबी सिंह के किरदार में बेहद ग्लैमरस दिखना था कि लोग उन्हें देखकर ही मोहब्बत करने लगे, जिसके लिए उन्हें बहुत ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं थी।

दिव्या दत्ता और पीहू ने भी अपने-अपने किरदारों को अच्छे से निभाया है। पीहू के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी डाली गई थी, जिसको उन्होंने बखूबी उठाया है। अगर पीहू की परफॉर्मेंस थोड़ी भी बिगड़ जाती तो पूरी फिल्म कमजोर पड़ सकती थी लेकिन वो निराश नहीं करती हैं।

फिल्म का डायरेक्शन

फिल्म फन्ने खां का डायरेक्शन अतुल मांजरेकर ने किया है, जो इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है। अतुल फिल्म की शुरूआत तो खूबसूरती से करते हैं लेकिन इसको सही अंजाम तक नहीं पहुंचा पाते हैं। पहला भाग खत्म होते-होते फिल्म कमजोर पड़ने लगती है और दूसरे भाग में यह बोझिल हो जाती है। अगर आप दूसरे भाग से अनिल कपूर और दिव्या दत्ता की बेहतरीन अदाकारी को हटा दें, अतुल पूरी तरह से असफल हुए हैं।

वो किसी भी तरह से फिल्म को एक हैप्पी एंडिंग देना चाहते थे, जिस कारण उन्होंने जिंदगी की प्रैक्टिकल चीजों को नजरअंदाज कर दिया। ऐसा लगता है कि अतुल सपनों को आकार लेता स्क्रीन पर देखना चाहते थे लेकिन असलियत से उनको पूरी तरह से दो-चार नहीं कराना चाहते थे। वो परिवार की गरीबी और बॉलीवुड की सच्चाई को बस किनारे से छूते हुए निकले हैं, जिस कारण फिल्म का मजा किरकिरा हो गया है। अगर वो स्क्रिप्ट पर थोड़ा और वक्त देते तो शायद फन्ने खां आमिर खान की सीक्रेट सुपरस्टार वाली लीग में आ जाती।

कमजोर कड़ियां

फिल्म की कहानी और डायरेक्शन को और बेहतर किया जा सकता था। फिल्म पहले हॉफ के कई हिस्सों में धीमी है। वहीं, दूसरे हाफ में कहानी कई जगह अपने ट्रैक से भटकती हुई नजर आई है। फिल्म की थीम बाप-बेटी के रिश्ते के ईर्द गिर्द है लेकिन, फिल्म में बेटी की पिता से बेवजह नाराजगी इसे हल्का बना देती है।

राजकुमार राव और ऐश्वर्या राय की केमेस्ट्री भी काफी अस्वाभिक लग रही है। एक म्युजिकल फिल्म होने के बावजूद फिल्म में कोई ऐसा गाना नहीं है जो ज्यादा देर तक दर्शकों के जेहन में रहे। हालांकि, बैकग्राउंड म्युजिक काफी अच्छा है।

क्यों देखें: फन्ने खां एक अच्छी फैमिली फिल्म है। फिल्म में काफी इमोशन्स हैं। साथ ही यदि ये फिल्म अपने मम्मी-पापा के साथ देख रहे हैं तो कई सीन ऐसे हैं जिससे आप खुद को कनेक्ट करेंगे। कुल मिलाकर ये एक म्युजिकल ड्रामा है जो, दिखाती है कि सपने पूरा करने के लिए जितना संघर्ष बच्चे करते हैं उतना ही उनके मां-बाप भी करते हैं। ऐसे में एक बार फैमिली के साथ ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए।

फिल्म का म्यूजिक

फन्ने खां कोई पारंपरिक बॉलीवुड फिल्म नहीं है, जिस कारण इससे हिट म्यूजिक की उम्मीद करना बेईमानी है। प्रशांत ने कई सारे सिचुएशनल गाने रखे हैं, जो फिल्म को गति तो देते हैं लेकिन जुबान पर नहीं चढ़ पाते। अगर आप अनिल कपूर के ऊपर फिल्माया हुआ गाना बदन पे सितारे छोड़ दें तो शायद ही कोई गाना आपके जहन में लम्बे समय तक रह पाता है।