तारीफ के काबिल है अक्षय कुमार-फरदीन खान की खेल खेल में, फिर क्यों हुई असफल?

बीते 15 अगस्त को सिनेमाघरों में अक्षय कुमार अभिनीत खेल खेल में का प्रदर्शन हुआ था। फिल्म को दर्शकों ने खारिज कर दिया और अक्षय कुमार के खाते में एक और असफलता का अंक बढ़ा दिया। हाल ही में इस फिल्म का OTT प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स पर प्रसारण शुरू हुआ है। खेल खेल में ओटीटी प्लेटफार्म पर नम्बर 1 ट्रेंड कर रही है।

सिनेमाघरों में इस को क्यों पसन्द नहीं किया गया यह समझ से परे बात है। ओटीटी पर देखने के बाद दर्शक इस फिल्म की बहुत तारीफ कर रहे हैं। मैंने स्वयं भी इस फिल्म को ओटीटी पर देखा और देखने के बाद मुझे इस बात का अफसोस हुआ कि इस फिल्म को दर्शकों ने सिनेमाघरों में खारिज कर दिया।

खेल खेल में का कथानक बहुत शानदार है। बेहतरीन तरीके से फिल्म के दृश्यों को लिखा गया है। फिल्म में सितारों का अभिनय भी अच्छा है। विशेष रूप से अक्षय कुमार ने कमाल का काम किया है। उम्र के अनुरूप उनकी भूमिका है जिसे उन्होंने बड़ी सहजता से निभाया है। अक्षय कुमार का किरदार बहुत सुलझा हुआ है। उनके बाद फिल्म में फरदीन खान का किरदार सबसे मजबूत रहा है। बहुत कम संवाद होने के बावजूद उन्होंने अपने चेहरे के भावों से और अपनी बॉडी लैंग्वेज से उसे जिस तरीके से निभाया है उसकी जितनी तारीफ की जाए वह कम है। महिला पात्रों में सबसे शक्तिशाली रही तापसी पन्नू, उन्होंने किरदार को संजीदगी प्रदान की है। उनका अभिनय लाजवाब रहा है। विशेष रूप से उन दृश्यों में जब उसे पता चलता है कि उसका पति गे है। इस एक शब्द ने किरदारों के अंर्तद्वंद्व को जिस तरह से परदे पर उतारा है उसके लिए मुदस्सर अजीज बधाई के पात्र हैं।

फिल्म के दो अन्य दृश्य, जिन्हें हम फिल्म की जान कह सकते हैं, वे हैं अक्षय कुमार की युवा बेटी का पहली बार किसी के साथ हमबिस्तर होने की इजाजत लेना और इस पर जिस अंदाज में उन्होंने बेटी को समझाया है वह मानसिक रूप से सुलझे व्यक्ति की शिद्दता को पेश करता है। इस दृश्य के जरिये मुदस्सर ने कहा है कि आज की युवा पीढ़ी को हर बात के लिए टोकना, डांटना या मारपीट करने के स्थान पर उसे क्या गलत है और क्या सही है को अपने दिमाग को तनाव रहित रखते हुए यह समझाना जरूरी है।
दूसरा दृश्य जहाँ फरदीन खान अपने दोस्तों के सामने इस बात को स्वीकार करते हैं कि वे गे हैं। इस स्वीकारोक्ति के दौरान उन्होंने चेहरे पर जो भाव दर्शाये हैं उसके लिए वो बधाई के पात्र हैं। उनका यह कहना कि मुझे इस बात का डर था कि मेरी 10 साल की बेटी को जब यह पता चलेगा तो वह मुझसे नफरत करेगी दर्शकों को अंदर तक झकझोर देता है। फरदीन को यदि सिनेमाई परदे पर सफलता प्राप्त करनी है तो उन्हें इसी प्रकार के सशक्त किरदारों का चुनाव करना होगा।

फिल्म की असफलता का कारण

सिनेमाघरों में फिल्म को दर्शकों ने स्वीकार नहीं किया। इस पर यह कहा जा सकता है कि भारतीय दर्शक स्वयं को सिर्फ बातों में आधुनिकता में शामिल कर सकता है, लेकिन आन्तरिक तौर पर वो अभी भी रूढ़िवादी है, जहाँ वो इस बात को स्वीकार नहीं कर सकता कि शादी के बाद पत्नी या पति का किसी और के साथ कोई रिश्ता रहे। साथ ही वह यह भी स्वीकार नहीं कर सकता कि शादी से पहले कोई लड़की या लड़का हमबिस्तर हों। इसके अतिरिक्त इस फिल्म की असफलता का एक और कारण जो हमें समझ में आया है वह यह रहा कि लेखक निर्देशक ने भारतीय लोगों की शक करने की आदत को खुलकर सामने रखा है। इस बात को दर्शक हजम नहीं कर पाए। दूसरा यह कि फिल्म का कथानक दर्शकों की समझ से परे रहा है।

फिलहाल बात फिल्म की सफलता असफलता पर, तो ओटीटी पर यह फिल्म सफल हो गई है। देखने वाले दर्शकों की तादाद में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और दर्शक खुलकर इस फिल्म की तारीफ कर रहे हैं। जिस तरह से दर्शकों की प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर आ रही है उससे स्पष्ट झलकता है कि खेल खेल में आने वाले समय में स्वयं को कल्ट क्लासिक फिल्मों में शुमार कराने में सफल होगी।