हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस बार करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर 2023 को रखा जाएगा। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं और सोलह श्रृंगार करके पूजा करती हैं। इस दिन महिलाएं चांद देखने के बाद ही निर्जला व्रत का पारण करती हैं। चलिए आज हम जानते है करवा चौथ पर रखें जाने वाले व्रत के बारे में 10 पौराणिक बातें साथ ही करवा चौथ की थाली में क्या- क्या सामग्री होनी चाहिए।
कुवांरी लड़कियांकुंआरी लड़कियां भी करवा चौथ का व्रत रखती है। कुंआरी लड़कियों द्वारा व्रत रखने के पीछे 4 कारण होते हैं। पहला मनोवांछित पति की प्राप्ति के लिए, दूसरा मंगनी हो गई है तो मंगेतर के लिए, तीसरे यदि किसी के साथ प्रेम के रिश्ते में है तो उसके लिए और चौथा अपने भावी पति के लिए। कहते हैं कि अविवाहित लड़कियां यदि यह व्रत रखती हैं तो उन्हें करवा माता का आशीर्वाद मिलता है। करवा चौथ के दिन कुंआरी लड़कियां निर्जल की जगह निराहार व्रत रख सकती हैं और चांद को न देखकर तारों को देखकर अपना व्रत खोलती हैं। तारे देखने के लिए छलनी का इस्तेमाल नहीं करना होता है, क्योंकि उन्हें छलनी में किसी की सूरत भी नहीं देखनी होती है। चांद की जगह तारों को अर्घ्य दिया जाता है।
नारी शक्ति करवा चौथ विशेष तौर पर नारियों का त्योहार है। हिन्दू धर्म में नारी शक्ति को शक्ति का रूप माना जाता है। कहते हैं कि नारी को यह वरदान है कि वो जिस भी कार्य या मनोकामना के लिए तप या व्रत करेगी तो उसका फल उसे अवश्य प्राप्त होगा। खासकर अपने पति के लिए यदि वे कोई भी व्रत करती है तो उसका फल उन्हें जरुर प्राप्त होता है। पौराणिक कथाओं में एक जोर जहां माता पार्वती अपने पति शिवजी को पाने के लिए तप और व्रत करती है और उसमें सफल हो जाती है तो दूसरी ओर सावित्री अपने मृत पति को अपने तप के बल पर यमराज से भी छुड़ाकर ले आती है। यानी स्त्री में इतनी शक्ति होती है कि वो यदि चाहे, तो कुछ भी हासिल कर सकती है। इसीलिए महिलाएं करवा चौथ के व्रत के रूप में अपने पति की लंबी उम्र के लिए एक तरह से तप करती हैं।
क्या है करवा?करवा मिट्टी का एक बर्तन होता है। काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी की वस्तु को करवा कहते हैं। कुछ लोग तांबे के बने करवे लाते हैं। इस तरह दो करवे बनाए जाते हैं। करवा में रक्षासूत्र बांधकर, हल्दी और आटे के सम्मिश्रण से एक स्वस्तिक बनाते हैं। एक करवे में जल तथा दूसरे करवे में दूध भरते हैं और इसमें ताम्बे या चांदी का सिक्का डालते हैं। जब बहू व्रत शुरू करती है, तो सास उसे करवा देती है, उसी तरह बहू भी सास को करवा देती है। पूजा करते समय और कथा सुनते समय दो करवे रखने होते हैं- एक वो जिससे महिलाएं अर्घ्य देती हैं यानी जिसे उनकी सास ने दिया होता है और दूसरा वो जिसमें पानी भरकर बायना देते समय उनकी सास को देती हैं। सास उस पानी को किसी पौधे में डाल देती हैं और अपने पानी वाले लोटे से चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। मिट्टी का करवा महिलाएं इसलिए लेती हैं, क्योंकि उसे डिस्पोज किया जा सकता है। मिट्टी का करवा न हो तो कुछ महिलाएं स्टील के लोटे का प्रयोग भी कर लेती हैं।
क्या होती है सरगी?यह रस्म अक्सर पंजाब प्रांत में मनाई जाती है। कोई भी महिला जब करवा चौथ का व्रत रखती है तो उसकी सास उसे सरगी बनाकर देती है। सरगी एक भोजन की थाली है जिसमें खाने की कुछ चीजें होती हैं। जिसको खान के बाद दिनभर निर्जला उपवास रखा जाता है और फिर रात में चांद की पूजा करने के बाद ही खाया जाता है। चूंकि सरगी को खाकर व्रत की शुरुआत की जाती है इसलिए सरगी की थाली में ऐसी चीजें होती है जिसे खाने से भूख और प्यास कम लगती है और दिनभर एनर्जी बनी रहती। इसमें अक्सर सूखे मेवे और फल होते हैं। सास द्वारा दी हुई सरगी से बहू अपने व्रत की शुरुआत करती है। अगर सास साथ में नहीं हैं, तो वो बहू को पैसे भिजवा सकती हैं, ताकि वो अपने लिए सरगी का सारा सामान खरीद सके। इस सरगी में कपड़े, सुहाग की चीजे, फेनिया, फ्रूट, ड्राईफ्रूट, नारियल आदि रखे होते हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश और बिहार में इस त्योहार को मनाने का तरीका अलग है।
करवा नाम की महिलायह भी कहा जाता है कि करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री के नाम पर ही करवा चौथ का नाम करवा चौथ पड़ा है। कहते हैं कि करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गांव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान कर रहा था तभी एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा। उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी हुई आई और आकर उसने मगरम्छ को कच्चे धागे से बांध दिया। मगर को बांधकर वो यमराज के यहां पहुंच गई और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप नरक में ले जाओ। यमराज बोले, 'लेकिन अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, 'अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूंगी।' सुनकर यमराज डर गए और उन्होंने मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु रहने का आशीर्वाद दे दी। तभी से उस महिला को करवा माता कहने लगे।
चांद से जुड़ा पर्व कारवा चौथ का व्रत चतुर्थी के चांद को देखकर ही खोला जाता है। हर शहर में चंद्रोदय का समय अलग अलग होता है। इस दिन महिलाएं चंद्रमा को देखे बिना न तो कुछ खाती हैं और न ही पानी ग्रहण करती हैं। चंद्रमा का उदय होने के बाद सबसे पहले महिलाएं छलनी में से चंद्रमा को देखती हैं फिर अपने पति को, इसके बाद पति अपनी पत्नियों को लोटे में से जल पिलाकर उनका व्रत पूरा करवाते हैं। चांद देखे बिना यह व्रत अधूरा रहता है।
प्राचीन काल की परंपरा उपरोक्त करवा नामक महिला की कथा के अलावा एक अन्य कथा भी है वह यह कि एक बार देवताओं और दानवों के युद्ध में देवताओं की हार होने लगी। भयभीत देवता ब्रह्मदेव के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय की कामना करनी चाहिए। ऐसा करने पर इस युद्ध में देवताओं की जीत निश्चित हो जाएगी। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।
कथा सुनना बेहद जरुरीइस व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा का विधान है। व्रत वाले दिन कथा सुनना बेहद जरूरी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि आती है और सन्तान सुख मिलता है। महाभारत में भी करवा चौथ के महात्म्य के बारे में बताया गया है। भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ की कथा सुनाते हुए कहा था कि पूरी श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं। श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा-चौथ का व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से ही पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में विजय हासिल की।
मां पार्वतीपौराणिक कथाओं में एक जोर जहां माता पार्वती अपने पति शिवजी को पाने के लिए तप और व्रत करती है और उसमें सफल हो जाती है तो दूसरी ओर सावित्री अपने मृत पति को अपने तप के बल पर यमराज से भी छुड़ाकर ले आती है। यानी स्त्री में इतनी शक्ति होती है कि वो यदि चाहे, तो कुछ भी हासिल कर सकती है। इसीलिए महिलाएं करवा चौथ के व्रत के रूप में अपने पति की लंबी उम्र के लिए एक तरह से तप करती हैं।
कठिन व्रततप का अर्थ होता है किसी चीज को त्यागना और किसी एक दिशा में आगे बढ़ना। महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत करती हैं। चौथ का चांद हमेशा देर से निकलता है। कई बार तो देर रात तक चांद नहीं दिखता। ये मौसम ऐसा होता है कि कई बार बादल घिर जाते हैं और चांद नजर ही नहीं आता। ऐसे में महिलाएं देर रात या अगले दिन तक अपना व्रत नहीं तोड़ती हैं। ये एक तरह से महिलाओं की परीक्षा होती है कि वो अपने पति के लिए कितना त्याग कर सकती हैं।
करवा चौथ पूजन सामग्रीकरवा चौथ के पूजन थाली में करें ये चीजें शामिल- चंदन, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मिठाई, गंगाजल, कुंकू, अक्षत (चावल), सिंदूर, मेहंदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूं, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, चलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलवा, दक्षिणा (दान) के लिए पैसे, इत्यादि।