सावन का दूसरा मंगला गौरी व्रत आज, जानिए व्रत की सम्पूर्ण पौराणिक कथा और इसका धार्मिक महत्व

सावन मास हिंदू धर्म में अत्यंत पावन और धार्मिक अनुष्ठानों से परिपूर्ण महीना होता है। इस मास में आने वाले प्रत्येक व्रत और त्योहार का विशेष महत्व होता है। विशेषकर, मंगलवार को किया जाने वाला मंगला गौरी व्रत विवाहित स्त्रियों के लिए अत्यंत फलदायक माना जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्ति हेतु किया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सुखी दांपत्य जीवन की कामना करते हुए व्रत करती हैं। साथ ही इस दिन मंगला गौरी व्रत की कथा पढ़ना या सुनना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। आइए, जानते हैं इस व्रत की संपूर्ण कथा जो न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्रेरणास्पद भी है।

मंगला गौरी व्रत कथा: भक्ति, श्राप और मुक्ति की एक प्रेरणादायक गाथा

बहुत पहले की बात है, एक छोटे से गांव में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ निवास करता था। साहूकार अत्यंत धनवान था और उनके घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। परंतु, उन्हें संतान की कमी सदैव सालती रहती थी, जिससे वे भीतर से दुःखी रहते थे। एक दिन उनके घर एक साधु पधारे। साहूकार ने आदरपूर्वक उनका स्वागत किया और अपने दुःख को साझा किया। साधु ने उनकी पत्नी को सावन महीने के मंगलवार को मंगला गौरी व्रत करने की सलाह दी और पूजा विधि की संपूर्ण जानकारी भी दी। साहूकार की पत्नी ने उसी वर्ष सावन के पहले मंगलवार से ही विधिवत रूप से व्रत आरंभ किया और प्रत्येक मंगलवार को संकल्पपूर्वक माता गौरी की पूजा करती रहीं। उसकी श्रद्धा और भक्ति देखकर माता पार्वती प्रसन्न हुईं और भगवान शिव से संतान सुख का वरदान दिलवाने का आग्रह किया। उस रात साहूकार को स्वप्न में एक दिव्य शक्ति ने दर्शन देकर बताया कि एक आम के पेड़ के नीचे भगवान गणेश की प्रतिमा है। उस पेड़ से आम तोड़कर पत्नी को खिलाओ, इससे संतान सुख की प्राप्ति होगी। अगली सुबह साहूकार ने अपनी पत्नी को सपना बताया और आम के पेड़ की खोज में निकल पड़ा। अंततः उसे वह पेड़ मिला और उसने आम तोड़ने के लिए पत्थर मारने शुरू किए। दुर्भाग्यवश, एक पत्थर भगवान गणेश की मूर्ति पर जा लगा, जिससे वे क्रोधित हो उठे। भगवान गणेश ने प्रकट होकर साहूकार से कहा, “हे स्वार्थी मनुष्य! तुमने अपने स्वार्थ में मुझे चोट पहुँचाई है। तुम्हें माता पार्वती की कृपा से संतान तो प्राप्त होगी, परंतु उसका जीवन केवल 21 वर्षों का ही होगा।

यह सुनकर साहूकार अत्यंत भयभीत हो गया। उसने फिर भी आम तोड़ा और उसे अपनी पत्नी को खिला दिया, लेकिन इस घटना को किसी से साझा नहीं किया। कुछ समय बाद माता पार्वती और भगवान शिव के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। साहूकार और उसकी पत्नी अब अत्यंत प्रसन्न थे, लेकिन पुत्र की अल्पायु होने की भविष्यवाणी उन्हें अंदर से डराती रहती थी। उनका पुत्र देखते ही देखते 20 वर्ष का हो गया और व्यापार में पिता का सहयोग करने लगा। एक दिन पिता-पुत्र तालाब किनारे पेड़ की छांव में बैठकर भोजन कर रहे थे। उसी समय दो कन्याएं — कमला और मंगला — वहां कपड़े धोने आईं और आपस में बातचीत करने लगीं। कमला ने मंगला से कहा कि वह इस सावन मास में हर मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रख रही है और उसे भी रखना चाहिए। कमला ने बताया कि यह व्रत करने से माता पार्वती प्रसन्न होती हैं और मनचाहा वर एवं अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है। उसकी बातें सुनकर मंगला ने भी व्रत करने का निश्चय किया। साहूकार ने यह संवाद सुन लिया और सोचा कि जो कन्या मंगला गौरी व्रत करती है, वह उसके पुत्र के लिए उत्तम वधू सिद्ध हो सकती है। उसने विवाह का प्रस्ताव उस कन्या के पिता को दिया और उसकी प्रतिष्ठा के कारण प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। विवाह के पश्चात भी कमला ने पूर्ण श्रद्धा से मंगला गौरी व्रत जारी रखा। उसकी भक्ति देखकर एक दिन माता पार्वती ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा, “मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हें अखंड सौभाग्य का वरदान देती हूँ। लेकिन तुम्हारा पति अल्पायु है। अगले महीने मंगलवार को एक सर्प उसके प्राण लेने आएगा। उन्होंने उपाय बताया: “एक प्याले में मीठा दूध और उसके पास एक खाली मटका रखना। सर्प दूध पीकर मटके में प्रवेश करेगा, तब तुम मटके को ऊपर से कपड़े से ढक देना।” कमला ने अगले मंगलवार को ठीक वैसा ही किया। सर्प आया, दूध पिया और मटके में चला गया। कमला ने कपड़े से मटका ढककर उसे जंगल में सुरक्षित रख दिया।

श्राप से मुक्ति और परिवार में आनंद

माता पार्वती की कृपा से कमला के पति के प्राण बच गए और साहूकार का पुत्र श्रापमुक्त हो गया। जब यह चमत्कार सभी को बताया गया, तो सभी चकित रह गए। साहूकार और उसकी पत्नी ने पुत्रवधु को आशीर्वाद दिया और पूरा परिवार सुख, शांति और समृद्धि के साथ जीवन व्यतीत करने लगा।

मंगला गौरी व्रत का धार्मिक और पारिवारिक महत्व

- यह व्रत विवाहित स्त्रियों को अखंड सौभाग्य, सुखी वैवाहिक जीवन और संतान सुख प्रदान करता है।

- माता गौरी की कृपा से विघ्न, बाधाएं और अशुभता दूर होती है।

- यह कथा श्रद्धा, संयम और ईश्वर में अटूट विश्वास की अद्भुत मिसाल है।