हिंदू धर्म इतना सहिष्णु माना गया है कि वह प्रकृति तक से कृतज्ञता ज्ञापित करता है। सूर्य, चंद्र, वायु, जल, पृथ्वी जो भी कुछ देता है उसे देवता तुल्य माना गया है। इसी प्रकार कई पौधे-वृक्ष ऐसे हैं जिनका धार्मिक महत्व तो है ही, साथ ही उसका वैज्ञानिक आधार भी है। बरगद के पेड़ को वट का वृक्ष कहा जाता है। शास्त्रों में वटवृक्ष को पीपल के समान ही महत्व दिया गया है। पुराणों में यह स्पष्ट लिखा गया है कि वटवृक्ष की जड़ों में ब्रह्माजी, तने में विष्णुजी और डालियों एवं पत्तों में शिव का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा कहने और सुनने से मनोकामना पूरी होती है। आइये जानते हैं बरगद के पेड़ से जुड़े महत्व के बारे में।
# कुछ विशेष पेड़ों की पत्तियां ऑक्सीजन बनाने का काम करती हैं। बताया जाता है कि पत्तियां एक घंटे में 5 मिलीलीटर ऑक्सीजन बनाती हैं इसलिए जिस पेड़ में ज्यादा पत्तियां होती हैं वह पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन बनाता है। बरगद, बांस, नीम और तुलसी के पेड़ अधिक मात्रा में ऑक्सीजन देते हैं।
# ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि के दिन वटवृक्ष की पूजा का विधान है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन वटवृक्ष की पूजा से सौभाग्य व स्थायी धन और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। संयोग की बात है कि इसी दिन शनि महाराज का जन्म हुआ। सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण की रक्षा की।
# ज्योतीषीय दृष्टि में बरगद के पेड़ को मघा नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है। मघा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बरगद की पूजा करते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने घर में बरगद के पेड़ लगाते हैं। अग्निपुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है इसीलिए संतान के इच्छित लोग इसकी पूजा करते हैं। इस कारण बरगद काटा नहीं जाता। अकाल में इसके पत्ते जानवरों को खिलाए जाते हैं।
# बरगद को वटवृक्ष भी कहा जाता है। सनातन धर्म में वट-सावत्री नाम का एक त्योहार पूरी तरह वट को ही समर्पित है। चार वटवृक्षों का महत्व अधिक बताया गया है। ये हैं- अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट। कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता।
# वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करने और ऑक्सीजन छोड़ने की भी इसकी क्षमता बेजोड़ है। यह हर तरह से लोगों को जीवन देता है। ऐसे में बरगद की पूजा का खास महत्व स्वाभाविक ही है।