आज 23 फरवरी, मंगलवार को माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि हैं जिसे जया एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता हैं और इस दिन विष्णु का पूजन कर उनकी सेवा की जाती हैं। इस दिन किया गया व्रत सभी तरह के पाप नष्ट कर आपके जीवन में सुख-शांति लाने का काम करता हैं। आज इस कड़ी में हम आपके लिए जया एकादशी के महत्व, कथा और पूजन विधि से जुड़ी जानकारी लेकर आए हैं जो आपके लिए लाभकारी साबित होगा। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।
जया एकादशी का महत्व
पुराणों में जया एकादशी को लेकर ऐसी मान्यता चली आ रही है कि इस दिन व्रत करने वाले भक्तों को कभी भूत और पिशाच की योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता है। इसके साथ ही ऐसा भी कहा जाता है कि इस व्रत को करने से मनुष्य को ब्रह्म हत्या के दोष से भी मुक्ति प्राप्त होती है। इस दिन विधि विधान से पूरी निष्ठा के साथ श्रीहरि की पूजा करने से मनुष्य बुरी योनि को प्राप्त नहीं करता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जया एकादशी का व्रत करने वाला व्यक्ति मृत्यु के बाद स्वर्ग में स्थान प्राप्त करता है।
ऐसे रखें जया एकादशी का व्रत
शास्त्रों में बताया गया है कि जया एकादशी के दिन पवित्र मन से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। मन में द्वेष, छल-कपट, काम और वासना की भावना नहीं लानी चाहिए। नारायण स्तोत्र एवं विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। इस प्रकार से जया एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती।
जया एकादशी की कथा
शास्त्रों में जया एकादशी को लेकर एक कथा का उल्लेख किया गया है कि इन्द्र की सभा में एक गंधर्व गीत गा रहा था। परन्तु उसका मन अपनी प्रियतमा को याद कर रहा था। इस कारण से गाते समय उसकी लय बिगड़ गई। इस पर इन्द्र ने क्रोधित होकर गंधर्व और उसकी पत्नी को पिशाच योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया।
पिशाच योनि में जन्म लेकर पति पत्नी कष्ट भोग रहे थे। संयोगवश माघ शुक्ल एकादशी के दिन दुखों से व्याकुल होकर इन दोनों ने कुछ भी नहीं खाया और रात में ठंड की वजह से सो भी नहीं पाए। इस तरह अनजाने में इनसे जया एकादशी का व्रत हो गया। इस व्रत के प्रभाव से दोनों शाप मुक्त हो गये और पुनः अपने वास्तविक स्वरूप में लौटकर स्वर्ग पहुंच गये। देवराज इन्द्र ने जब गंधर्व को वापस इनके वास्तविक स्वरूप में देखा तो हैरान हुए। गंधर्व और उनकी पत्नी ने बताया कि उनसे अनजाने में ही जया एकादशी का व्रत हो गया। इस व्रत के पुण्य से ही उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है।
जया एकादशी की पूजाविधि
इस दिन व्रत करने वाले को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और पूजा का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद पूजा स्थल को साफ करें और भगवान विष्णु की मूर्ति लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर स्थापित करें। उसके बाद पीले पुष्प और हल्दी अक्षत से पूजा करें। उसके बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। उसके बाद भगवान विष्णु को उनकी प्रिय तुलसी जल, फल, नारियल, अगरबत्ती और फूल अर्पित करें। पंचामृत से भोग लगाएं और सभी में प्रसाद के रूप में बांट दें।