महाकुंभ में पितरों को जल अर्पित करते समय इन दिशाओं का रखें ध्यान, जान लें नियम

महाकुंभ में मौनी अमावस्या का दूसरा अमृत स्नान विशेष महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पितृ धरती पर आते हैं और उनकी शांति के लिए जल अर्पण करना आवश्यक होता है। लेकिन जल अर्पण करते समय दिशा और नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है। यदि आप इन नियमों का पालन नहीं करते, तो आपकी श्रद्धा व्यर्थ हो सकती है। आइए जानते हैं पितरों, देवी-देवताओं, सूर्य देव और शिवलिंग को जल अर्पण के सही तरीके।

पितरों को जल देने की दिशा

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिण दिशा आत्मा और यम देवता को समर्पित है। इसलिए महाकुंभ स्नान के बाद जब आप अपने पितरों को जल अर्पित करें, तो आपका मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। यह आपके पितरों को शांति प्रदान करता है और उनकी कृपा आपके जीवन पर बनी रहती है।

देवी-देवताओं को जल अर्पण की दिशा

देवी-देवताओं के लिए ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) को पवित्र माना गया है। जब आप किसी देवी-देवता को जल अर्पित करें, तो ईशान कोण की ओर मुख करें। यह आपकी भक्ति को सफल बनाता है और आपके भाग्य को प्रबल करता है।

सूर्य देव को जल अर्पित करने की दिशा

सूर्य को जल अर्पण करने का समय और दिशा भी विशेष महत्व रखती है:

सुबह: उगते सूर्य को जल अर्पित करें और मुख पूर्व दिशा की ओर रखें।
शाम: सूर्यास्त के समय जल अर्पित करते समय मुख पश्चिम दिशा की ओर रखें।
सूर्य को जल देने से ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

शिवलिंग पर जल चढ़ाने के नियम


यदि आप स्नान के बाद शिवलिंग पर जल चढ़ा रहे हैं, तो कुछ विशेष नियमों का पालन करना अनिवार्य है। जल चढ़ाते समय आपको उत्तर दिशा से शिवलिंग के सामने खड़ा होना चाहिए। इसके अलावा, शिवलिंग की अर्धचंद्राकार परिक्रमा करना जरूरी है। ध्यान रखें कि शिवलिंग से गिर रहे जल को कभी लांघें नहीं। इन नियमों का पालन करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।