जब किसी लडक़ा और लडक़ी के बीच प्रेम होता है तो वे साथ साथ जीवन बीताने की ख्वाहिश रखते हैं और विवाह करना चाहते हैं। कोई प्रेमी अपनी मंजिल पाने में सफल होता है यानी उनकी शादी उसी से होती है जिसे वे चाहते हैं और कुछ इसमे नाकामयाब होते हैं। ज्योतिषशास्त्री इसके लिए ग्रह योग को जिम्मेवार मानते हैं। देखते हैं ग्रह योग कुण्डली में क्या कहते हैं। आज का युवा वर्ग प्रेम के विवाह के बारे में ज्यादा सोचने लगा है अनेक युवक जानना चाहते हैं कि प्रेम विवाह होगा या नहीं, कहीं हमारा विवाह असफल तो नहीं होगा या तीसरे व्यक्ति के कारण जीवन में संघर्ष तो शुरू नहीं हो जाएगा।
आपके भावी जीवन साथी की जन्म कुंडली में यदि आपके अनुकूल स्थितियां हों तो प्रेम विवाह के बाद दाम्पत्य जीवन पूर्ण सुखी व सफल रहता है और भाग्योन्नति होती है, तो आइये जानते हैं कैसे योग बनते हैं प्रेम विवाह के -
- जन्म कुंडली का पंचम भाव प्रणय संबंध और सप्तम भाव विवाह से संबंधित होता है। शुक्र सप्तम भाव का कारक है। अत: जब पंचमेश, सप्तमेश और शुक्र का शुभ संयोग होता है तो दोनों में घनिष्ठ स्नेह होता है। दोनों की राशियां एक दूसरे से समसप्तक हों या एक से अधिक ग्रह समसप्तक हों जैसे एक का चंद्रमा लग्न में तथा दूसरे का सप्तम भाव में हो।
- दोनों के शुभ ग्रह समान भाव में हों अर्थात एक की कुंडली में शुभ ग्रह यदि लग्न, पंचम, नवम या केंद्र में हों तथा दूसरे के भी इन्हीं भावों में हों। दोनों के लग्नेश और राशि स्वामी एक ही ग्रह हों। जैसे एक की राशि मीन हो और दूसरे की जन्म लग्न मीन होने पर दोनों का राशि स्वामी गुरु होगा। दोनों के लग्नेश, राशि स्वामी या सप्तमेश समान भाव में या एक दूसरे के सम-सप्तक होने पर रिश्तों में प्रगाढ़ता प्रदान करेंगे।
- दोनों की कुंडलियों के ग्रहों में समान दृष्टि संबंध हो। जैसे एक के गुरु चंद्र में दृष्टि संबंध हो तो दूसरे की कुंडली में भी यही ग्रह दृष्टि संबंध बनाएं। सप्तम एवं नवम भाव में राशि परिवर्तन हो तो शादी के बाद भाग्योदय होता है।
- सप्तमेश ग्यारहवें या द्वितीय भाव में स्थित हो तथा नवमांश कुंडली में भी सप्तमेश 2, 5 या 11वें भाव में हो तो ऐसी ग्रह स्थिति वाले जीवन साथी से आर्थिक लाभ होता है। उपरोक्त ग्रह स्थितियों में से जितनी अधिक ग्रह स्थितियां दोनों की कुंडलियों में पाई जाएंगी,उनमें उतना ही अधिक सामंजस्य होकर गृहस्थ जीवन सुखी रहेगा। इसी प्रकार कुछ विषम ग्रह स्थितियां दाम्पत्य जीवन को दुखदायी बना सकती हैं। अत: ऐसी ग्रह स्थितियों में दोनों की कुंडलियों का मिलान कराने के बाद ही विवाह करें।
- शनि, सूर्य, राहु, 12वें भाव का स्वामी तथा राहु अधिष्ठित राशि का स्वामी, जैसे राहु मीन राशि में हो तो, मीन का स्वामी गुरु राहु अधिष्ठित राशि का स्वामी होग। यह पांच ग्रह विच्छेदात्मक प्रवृति के होते हैं। इनमें से किन्हीं दो या अधिक ग्रहों का युति अथवा दृष्टि संबंध जन्म कुंडली के जिस भाव-भाव स्वामी से होता है तो उसे नुकसान पहुंचाते हैं।
- सप्तम भाव व उसके स्वामी को इन ग्रहों से प्रभावित करने पर दाम्पत्य में कटुता आती है। सप्तमेश जन्म लग्न से 6, 8, 12वें भाव में हो अथवा सप्तम भाव से 2, 6 या 12 वें भाव में हो अथवा नीच, शत्रु क्षेत्रीय या अस्त हो तो वैवाहिक जीवन में तनाव पैदा होगा।